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सिद्धू ने फिर चलाया ट्विटर बम, बताया- क्यों नहीं बने पंजाब में ऊर्जा मंत्री

नई दिल्लीः पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ काफी समय से चल रही तनातनी के बीच पंजाब कांग्रेस के विधायक नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही सरकार पर लगातार ट्विटर बम चला रहे हैं। गुरुवार को एक बार फिर से ट्वीट कर सिद्धू ने बताया कि उन्होंने ऊर्जा मंत्री बनने का प्रस्ताव क्यों ठुकरा दिया।

पद ना स्वीकार करने की बताई वजह

नवजोत सिंह सिद्धू पहले की तरह मीडिया के सामने ना आकर ट्विटर के जरिए लगातार अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। ट्विटर पर वह लगभग हर रोज बिजली संकट को लेकर अपनी सलाह और विचार साझा कर रहे हैं। इस बार उन्होंने ऊर्जा मंत्री का पद ना स्वीकार करने के पीछे की वजह बताते हुए एक के बाद एक छह ट्वीट किए। सिद्धू ने लिखा, ‘पंजाब में बिजली से संबंधित फैसला लेने की सारी शक्तियां पंजाब राज्य विद्युत नियामक आयोग (पीएसईआरसी) के पास हैं, जो सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करती हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या पंजाब के बिजली और अक्षय ऊर्जा मंत्री अपने दम पर कुछ कर सकता है? एक फीसदी भी नहीं … इसलिए मैंने यह पद स्वीकार करने की बजाय अपना सारा समय लोगों की ताकत लोगों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करने और ‘पंजाब मॉडल’ तैयार करने में लगाया है।’

फिर दोहराई पंजाब मॉडल की मांग

इसके अलावा सिद्धू ने पांच और ट्वीट किए, जिनमें उन्होंने लिखा, “नीति पर काम ना करने वाली राजनीति सिर्फ नकारात्मक प्रचार मात्र है और लोकहित एजेंडे से दूर हुए नेता सिर्फ व्यापार और अपने स्वार्थ के लिए राजनीति करते हैं !! लेकिन अविकसित राजनीति मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती… आज मैं फिर दोहराता हूं कि हमें पंजाब के विकास के लिए ‘पंजाब मॉडल’ की जरूरत है।’

बादल परिवार को बताया मगरमच्छ

पूर्व की बादल सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए उन्होंने लिखा, “मैं बादल परिवार पर दूरदर्शी ना होने का आरोप नहीं लगा रहा हूँ, क्योंकि मैं जानता हूं कि उनमें दूरदर्शिता है ही नहीं। आज सौर ऊर्जा 1.99 रुपये प्रति यूनिट है और इसके रिन्यूवल, ऑन-द-स्पॉट उपलब्धता (सौर ट्यूब-वेल) आदि जैसे ढेरों ऐसे फायदे हैं। लेकिन पूर्व की बादल सरकार ने त्रुटियों से भरे समझौते करके पंजाब को थर्मल बिजली प्लांट्स से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भर करके सूबे के हाथ बांध दिए हैं। अगर ये बिजली समझौते रद्द नहीं होते हैं, तो हमें दशकों तक इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।’’

दिल्ली मॉडल पर फिर उठाए सवाल

दिल्ली मॉडल को पंजाब में लागू ना करने की सिफारिश करते हुआ लिखा, “दिल्ली अपनी बिजली खुद पैदा नहीं करती है। इसका वितरण रिलायंस और टाटा के हाथों में है। जबकि पंजाब अपनी बिजली का 25% उत्पादन खुद करता है और राज्य बिजली आपूर्ति के माध्यम से हजारों लोगों को रोजगार भी देता है। दिल्ली मॉडल का मतलब है बादलों से भी बड़े मगरमच्छों को आमंत्रित करना।”

उन्होंने आगे लिखा, “2020-21 में, पंजाब अपने बजट का 10% (10668 करोड़) बिजली सब्सिडी के रूप में प्रदान करेगा, जबकि दिल्ली अपने बजट का महज 4% (3080 करोड़) ही सब्सिडी के रूप में देगा। लेकिन, अगर बिल 200 यूनिट्स (गरीबी रेखा से नीचे) से ऊपर और 400 यूनिट से कम हो तो 50 फीसदी और 400 यूनिट से ऊपर हो तो दिल्ली सरकार पूरा बिल चार्ज करती है। वही, दिल्ली किसानों को मुफ्त बिजली नहीं देती है और घरेलू उपयोग में दी जा रही सब्सिडी का बोझ औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र पर डालती है। ‘पंजाब मॉडल’ का अर्थ है दोषपूर्ण बिजली खरीद समझौतों को रद्द करना, सस्ती और बिना रुकावट बिजली का उत्पादन और खरीद और सभी को सस्ती बिजली देने के लिए ट्रांसमिशन लागत कम करना।”

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सिद्धू की तरफ से किए जा रहे लगातार ट्वीट्स को लेकर पंजाब में सियासी माहौल काफी गर्म है। हाल ही में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सिद्धू की बयानबाजी पर रोक लगाने की अपील की थी लेकिन सिद्धू ने अपने इन ट्वीट्स के जरिए शायद कैप्टन को समझा दिया है कि उनकी अपील का कितना असर हो रहा है।

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