लखनऊः शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना होती है और चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्माण्डा की पूजा होती है। इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन होने के कारण नवरात्र के तीसरे दिन शनिवार को ही मां चंद्रघंटा और माता कूष्माण्डा की एक साथ आराधना होगी।
मां चंद्रघण्टा के मस्तक पर भगवान शिव की तरह अर्द्ध चंद्र सुशोभित है इसीलिए यह चंद्रघण्टा कहलाती हैं। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं, जिनमें वह खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। सिंह पर सवार देवी दैत्यों के नाश और भक्तों को अभयदान प्रदान करती हैं। मां की घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं। वहीं माता कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण कूष्माण्डा देवी के नाम से जानी जाती हैं। इनकी पूजा के दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है। कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है। इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।
इस तरह करें आराधना
नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करें। पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।” देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं। अतः इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी के हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल के फूल का बीज) का माला है। यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है। इस देवी का निवास सूर्य मण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।
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मां चंद्रघण्टा का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
कूष्मांडा देवी का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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