लखनऊः इन दिनों हर जगह पर नक्कालों ने अपनी पैठ बना ली है। नर्सरियों से लेकर दुकानों और बीज क्रय केंद्रों में भी अब नक्काल काफी हावी हो गए हैं। ऐसे में किसान के महीनों की मेहनत बेकार जा रही है और वह आर्थिक रूप से काफी कमजोर होते जा रहे हैं। शिकायत के बाद भी जिम्मेदार इन नक्कालों पर कोई कार्रवाई नही कर रहे हैं।
राजधानी में इन दिनों एक-दो नहीं, बल्कि तमाम बीज विक्रय केंद्र खुले हुए हैं। इन दुकानों का अपना लाइसेंस है, जबकि कई दुकानों के एक लाइसेंस पर दो दुकानें चल रही हैं लेकिन बीजों की गारंटी के लिए कोई लिखा-पढ़ी की व्यवस्था नहीं है। इसका फायदा नकली बीज तैयार करने वाले जमकर उठाते हैं। वैसे तो वर्मा बीज सेंटर, निर्मल बीज सीड सेंटर, काशीअवध कृषि केंद्र, कृषि धान सीड लिमिटेड, रिशी मौर्या बीज केंद्र, मौर्या बीज भंडार, सिंह बीज भंडार, मनकापुर सीड कंपनी, चंद्रा सीड स्टोर, नेशनल एग्रो सीड काॅर्पोरेशन, प्रभा सीड, शिव बीज भंडार आदि के अलावा तमाम बीज केंद्र हैं।
प्रदेश सरकार की ओर से इनको लाइसेंस भी मिले हुए हैं, पर इन नामों के अलावा शहर में करीब तीन सौ बीज क्रय केंद्र हैं। यह केंद्र किसानों को सस्ते बीज के नाम पर अपना शिकार बनाते हैं और अधिकतर किसान उनके इस चंगुल में फंस जाते हैं। किसान जब सस्ते बीज की जानकारी पाते हैं, तो वह ऐसे लोगों के पास पहुंच जाते है जो सस्ता और अच्छा बीज बेचने का दावा कर नकली बीज बेचते हैं। कुछ ऐसे पौधे और प्रयोग के लिए बीज भी इनके पास होते हैं, जिन्हें दिखाकर यह किसान को अपनी जाल में फंसाते हैं। किसान इनकी अच्छाई को आंखों से देखने के बाद यहीं से बीज खरीद लेता है लेकिन जब बोने के कई दिनों तक यह उगते ही नहीं हैं, तो किसान के पास पछतावे के अलावा कुछ और नहीं है।
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किसानों को भटकने की जरूरत नहीं
उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम के उपाध्यक्ष राजेश्वर सिंह का कहना है कि बीज विकास निगम शोधित बीजों को ही बाजारों में बेचने की सलाह देता है। उनका कहना है कि उनके पास ऐसी तमाम समस्याएं हैं, जिनमें बताया गया कि कई माह तक लौकी और तरोई जैसी सब्जियां न उगने के कारण निराश करती हैं। इसका कारण यह है कि जिस समय जो बीज बोना चाहिए, उस समय के बारे में शोधित बीज नहीं होते हैं। इसकी जानकारी भी बीज में अंकित नहीं होती है। किसान जब कभी इनको खरीदता है, दुकानदार कमाई के चक्कर में यही बीज बेच देता है। ऐसे में बीज खरीदते समय किसानों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
यहां के किसानों का हुआ नुकसान
शहर से सटे माती गांव के किसानों ने तराई की बुवाई की थी। बीते साल बारिश और ठंडक तक इनमें अच्छी तराई निकलती रहीं, लेकिन यही बीज केंद्रों तक पहुंच गए। यह बीज जहां भी गए, लोगों ने इनको गर्मी में भी बो दिया। मार्च से उगे यह पौधे जुलाई तक केवल बढ़ते गए। तमाम किसानों ने इनको बेकार समझकर उजाड़ दिया। जिनके पास पौधे बचे थे, उनके पौधों में अगस्त के अंतिम दिनों में फल आने लगे। सवाल यह है कि यह गड़बड़ी हुई कहां से? किसान श्रवण साहू कहते हैं कि अच्छी तरोई होने के कारण इनके बीजों की मांग बढ़़ गई थी। इसका फायदा बीजों के सौदागरों ने उठाने के लिए यही बीज हाईब्रिड बताकर पैक करवा लिए। जहां भी यह तरोई है, अब फल दे रही है।
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