कुछ समय पूर्व दिलचस्प खबर, उड़ने वाला ‘विंगसूट‘ पहनकर इंसान के उड़ने की आई। इन्हें पंख-वस्त्र या उड़ान-परिधान कह सकते हैं। कार निर्माता कंपनी बीएमडब्ल्यू ने इस विद्युत उपकरण का निर्माण कराया है। इसकी परिकल्पना पीटर सैल्जमैन ने की थी। पीटर पेशे से विंगसूट पायलट और पैराग्लाइडिंग प्रशिक्षण हैं। बीएमडब्ल्यू आई और डिजाइन वर्कर्स ने इसे मिलकर तैयार किया है।
इसका पहला परीक्षण पीटर ने ऑस्ट्रिया के पहाड़ी क्षेत्र में एक हेलीकॉप्टर से 9,800 फीट की ऊंचाई से कूदकर किया। आमतौर से एक इलेक्ट्रिक उड़ान-वस्त्र की सामान्य गति 100 किमी प्रति घंटे होती है, किंतु इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसकी गति 300 किमी प्रति घंटे से भी अधिक है। हॉवरक्रॉफ्ट नाम के यंत्र से इसी प्रकार न्यूजीलैंड के ग्लेन मार्टिन ने 100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से सौ घंटों तक आसमान में उड़कर दिखाया था। उनके इस प्रयोग को देश-दुनिया के समाचार चैनलों ने 3 सितंबर 2010 को प्रसारित किया था। इन व्यक्तिगत उड़ानों से तय होता है कि अकेला मानव आसमान में उड़ान भर सकता है।
अब बात रामभक्त हनुमान की जो समुद्र के ऊपर उड़ान भरकर लंका पहुंचे। डॉ. ओंकारनाथ श्रीवास्तव ने अनेक पाश्चात्य अनुसंधानों के मतों के आधार पर निश्चित किया था कि रामायण व अन्यान्य राम कथाओं में उल्लेखित हनुमान की वायु-यात्राएं ऐसे ही आकाशगामी यानों से की यात्राएं थीं। हनुमान उड़ान-वस्त्र और रॉकेट बेल्ट बांधकर आकाशगमन करते थे। आज के अंतरिक्ष यात्री भी यही यंत्र धारण करते हैं। हनुमान व रावण-पुत्र मेघनाद में हुआ युद्ध भी हॉवरक्रॉफ्ट से मिलता-जुलता है। अब यह भी प्रमाणित हुआ है कि लंका की पहाड़ियों पर जो चौकस मैदान हैं, वे उस कालखंड के हवाई-अड्डे हैं। दक्षिण-भारत के मंदिरों और कुछ गुफा-चित्रों में वायुयान, आकाशचारी मानव और अंतरिक्ष वेशभूषा से युक्त व्यक्तियों के चित्रों की पत्थरों पर उत्कीर्ण मूर्तियां मिलती हैं। मिस्र में दुनिया का ऐसा मानचित्र मिला है, जिस पर अंकित रेखांकन आकाश में उड़ान सुविधा की पुष्टि करता है।
रावण के ससुर मयासुर ने विश्वकर्मा से वैमानिकी विद्या सीखी और पुष्पक विमान बनाया, जो कालांतर में विष्णु की कृपा से कुबेर को प्राप्त हुआ और फिर रावण के पास आया। महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित ‘यंत्र सर्वेश्वयं‘ में विमान निर्माण से लेकर संचालन के तरीकों तक का विवरण है। ये वर्णन कोरी कल्पनाएं न होकर उस समय के उड़ान तकनीक से जुड़े विज्ञान सम्मत आविष्कार हैं, जो प्रलय जैसी प्राकृतिक आपदाओं और रामायण एवं महाभारत में दर्शाए वैश्विक युद्धों के चलते तकनीकी ज्ञान सहित नष्ट हो गए।
सीता हरण के बाद जामवंत के नेतृत्व में सीता की खोज में लगा वानर-दल समुद्र के किनारे स्थित गंधमादन पर्वत पर पहुंचता है। यहां जामवंत की मुलाकात संपाती से होती है। जटायु संपाती का ही बड़ा भाई था। जटायु, संपाती और संपाती-पुत्र सुपाष्र्व बड़े जानकार थे। उन्होंने गिद्ध नगरी में रहते हुए लघु और मंझोले किस्म के वायुयानों और पंख-वस्त्रों (विंगसूट) का निर्माण किया था। जटायु ने रावण से सीता के मुक्ति के लिए जो युद्ध किया था, तब वह यही वस्त्र पहने हुए थे। जामवंत ने ही संपाती को बताया था कि जटायु की रावण ने हत्या कर दी है। इससे संपाती में प्रतिशोध की भावना उग्र हो उठी। संपाती ने रावण को एक स्त्री का अपहरण कर ले जाते हुए भी देखा था। यहीं से संपाती ने एक शक्तिशाली दूरबीन के जरिए लंका और अशोक वाटिका हनुमान को दिखाई थी। इसी गंधमादन पर्वत से हनुमान ने संपाती-पुत्र सुपाष्र्व के साथ पंख-वस्त्र धारण करके लंका की ओर कूच किया था। मदन मोहन शर्मा ‘शाही’ के शोधपूर्ण उपन्यास ‘लंकेश्वर’ में इस यात्रा को लघु-विमान से पंख-वस्त्र पहनकर किया जाना बताया गया है। तय है, हनुमान ने समुद्र को यांत्रिक उड़ान-वस्त्र पहनकर पार किया और सीता की खोज की।
किंवदंती यह भी है कि भगवान गौतम बुद्ध ने वायु यान द्वारा तीन बार लंका की यात्रा की थी। ऐरिक फॉन डॉनिकेन की पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गाॉड्स‘ में तो भारत समेत कई प्राचीन देशों से प्रमाण एकत्र करके वायु यानों की तत्कालीन उपस्थित की पुष्टि की गई है। वाल्मीकि रामायण एवं अन्य रामायणों तथा अन्य ग्रंथों में पुष्पक विमान के उपयोग में लाने के विवरण हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उस युग में राक्षस व देवता न केवल विमान शास्त्र के ज्ञाता थे, बल्कि सुविधायुक्त आकाशगामी साधनों के रूप में वाहन उपलब्ध थे।
रामायण के अनुसार पुष्पक विमान के निर्माता ब्रह्मा थे। ब्रह्मा ने यह विमान कुबेर को भेंट किया था। कुबेर से इसे रावण से छीन लिया। रावण की मृत्यु के बाद विभीषण इसका अधिपति बना और उसने फिर से इसे कुबेर को दे दिया। लंका पर विजय के बाद भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान इसी विमान में बैठकर अयोध्या आए थे।
राम-रावण युद्ध में प्रयोग में लाई गईं शक्तियों को मायावी या दैवीय शक्ति कहकर उनके वास्तविक महत्व, आविष्कार के ज्ञान व सामर्थ्य को सर्वथा नकारने की अवैज्ञानिक कोशिशें पूर्व में होती रही हैं। लेकिन अब इन्हें विज्ञान-सम्मत ज्ञान के सूत्र मानकर इनकी सच्चाइयों को खंगालने के उपक्रम में वैज्ञानिक व विज्ञान संस्थान आगे बढ़ रहे हैं। दुनिया अब मान रही है कि वास्तव में यह विध्वंसकारी परमाणु अस्त्र-शस्त्र एवं अद्भुत भौतिक यंत्र थे। इनकी सूक्ष्म और यथार्थ विवेचना के लिए इनके रहस्यों को जानना समझना अवश्यक है।
अतएव विश्वविद्यालयों में प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में उल्लेखित अंशों को पाठ के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। इससे विद्यार्थियों में प्राचीन भारतीय विज्ञान को जानने की जिज्ञासा जन्म लेगी और छात्र उस मिथक को तोड़ेगे, जिसे कवि की कपोल-कल्पना कहकर उपेक्षा की जाती रही है। इस सिलसिले में हनुमान की उड़ान को भी विज्ञान-सम्मत दृष्टि से देखने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव