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सरिस्का बाघ परियोजना के तालवृक्ष में दिखती है प्रकृति की मनोरम छटा

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अलवरः सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र स्थित तालवृक्ष अपनी सुंदरता व हरियाली के लिए जिले में अपना विशेष स्थान रखता है। यह अलवर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां गंगा माता का मंदिर है। मंदिर के नीचे गर्म व ठंडे पानी के कुंड बने हुए है। जहां प्राकृतिक रूप से पानी आता है। इस स्थल को गंगा के समान माना गया है। ग्रामीणों में ऐसी मान्यता है कि यहां नहाने से सभी पाप धुल जाते है। जिस कारण अलवर जिले सहित आसपास के जिलों से भी लोग यहां नहाने आते है। प्रकृति की अलग छवि देखने यहां देशी-विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। यहां के गर्म कुंडे में नहाने से चर्म रोग दूर हो जाते है।

तालवृक्ष में मुगलकालीन कई छतरियां बनी हुई हैं। छतरियां ताल वृक्ष की सुंदर प्राकृतिक नजारे में चार चांद लगा देती हैं। छतरियों के अंदर की तरफ मुगलकालीन समय की पेंटिंग बनी हुई है। हालांकि इन दिनों देखरेख के अभाव में यह छतरियां जर्जर हो रही है।


यहां साल में दो बार कार्तिक पूर्णिमा और वैशाख पूर्णिमा को मेला लगता है। यहां गंगा माता का प्राचीन मंदिर है। साथ ही संतोषी माता का मंदिर भी बना हुआ है। बताया जाता है कि यहां मांडव ऋषि ने तपस्या की थी। तपस्या के फलस्वरुप गंगा माता यहां विराजमान हुई थी। गंगा माता के मंदिर के सामने रोड के दूसरी साइड भूतेश्वर महादेव का मंदिर है। जहां बताते है कि प्राचीन समय में पृथ्वी के गर्भ से शिवलिंग निकला था। यह शिवलिंग करीब 6 फीट का है। यह मंदिर भी मुगलकालीन है।

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अलवर जिले का धार्मिक स्थल तालवृक्ष सरिस्का परियोजना अंतर्गत आता है। जिस कारण यहां घना जंगल है। साथ ही खजूर के पेड़ अत्यधिक मात्रा में खड़े हुए हैं। घना जंगल होने के कारण यहां बन्दर, चीतल, कबूतर, रोज, नीलगाय, कबूतर, पैंथर, टाइगर सहित कई प्रकार के वन्यजीव भी वितरण करते हैं।