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रिसर्च में हुआ खुलासा, फेफड़ों पर असर कम होने के चलते ओमिक्रोन ज्यादा घातक नहीं

न्यूयार्कः विश्व में सबसे तेजी से फैल रहा ओमिक्रोन वैरिएंट फेफड़ों को अधिक निशाना नहीं बना रहा है जिसकी वजह से यह कम घातक है। हाल ही में किए गए शोधों के हवाले से मीडिया में यह जानकारी दी गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चूहों और अन्य छोटे जीवों हेम्सटर पर किए गए शोध अध्ययनों से पता चला कि यह वैरिएंट फेफड़ों को कम नुकसान करता है और इसका अधिकतर असर नाक, गले तथा श्वास नली तक ही रहता है। इससे पहले वाले कोरोना विषाणु फेफड़ों में जख्म बनाकर सांस लेने की प्रकिया को बुरी तरह प्रभावित करते थे और इससे उनकी सिकुड़ने तथा फैलने की क्षमता समाप्त हो जाती थी।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह कहना काफी सही होगा कि ओमिक्रोन से उपरी श्वसन तंत्र में संक्रमण हो रहा है और पहले के वैरिएंट की तुलना में यह कम घातक है। बर्लिन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के जीव विज्ञानी रोनालड इल्स ने बताया कि यह वेरिएंट संक्रमित जीव की शवास नली को प्रभावित करता है और एक शोध में यह भी पाया गया है कि फेंफड़ों में ओमिक्रोन का स्तर कुल संक्रमण लोड का दसवां हिस्सा था या अन्य वैरिएंट की तुलना में काफी कम पाया गया था। गौरतलब है कि इससे पहले अन्य कई शोधों में कहा गया था कि ओमिक्रोन कोरोना के डेल्टा विषाणु की तुलना में उतना घातक नहीं है और इस बात के प्रमाण भी हैं।

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ओमिक्रोन का पता सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना में नवंबर के अंतिम माह में लगा था और धीरे धीरे यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गया और वहां दिसंबर में मध्य तक प्रतिदिन 26,000 मामले दर्ज किए गए थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह विषाणु इस समय विश्व के 100 से अधिक देशों में मौजूद है और यह उन लोगों को भी संक्रमित कर सकता है जिन्हें कोरोना की दोनों वैक्सीन लग चुकी हैं या पहले कोरोना संक्रमण हुआ था। यह भी पाया गया है कि इसके संक्रमण से लोगों में अस्पताल में भर्ती होने की दर अधिक नहीं देखी गई है लेकिन फिर भी लोगों को सावधान रहने की सलाह दी गई है। भारत में इस समय ओमिक्रोन के मामले बढ़कर 1,431 हो गए हैं।

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