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सनातन संस्कृति के पुनरोदय का विजय स्तम्भ है राम मंदिर

देश दुनिया के करोड़ों सनातनधर्मियों के लिए ‘राम’ केवल एक नाम भर नहीं हैं, बल्कि उनके जीवन-आधार हैं। हमारी देवभूमि के जिस महामानव ने अपने आचरण से मर्यादा का सर्वोच्च आदर्श समूची दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत किया था, वे आज संपूर्ण विश्व में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के रूप में पूजित वंदित हैं। अपार हर्ष का विषय है कि सैकड़ों वर्षों तक आक्रांताओं के षड्यंत्रों के पाश में जकड़ी रामनगरी अब राममय हो चुकी है। प्रभु श्रीराम के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर (Ram temple) के निर्माण से लगभग 500 वर्षों से संघर्षरत हिंदू समाज की चिर आकांक्षा पूर्ण हो रही है। तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के शब्दों में कहें तो अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण को भारत की सनातन संस्कृति पर आधारित परम वैभवशाली राष्ट्र के पुनर्जागरण की दिशा में मील का पत्थर कहा जाना चाहिए।

अयोध्या का राम मंदिर सनातन संस्कृति के पुनरोदय का ऐसा विजय स्तम्भ है, जो आने वाले युगों-युगों तक विश्व मानवता को आलोकित करता रहेगा। उनके अनुसार राम विराट भारतीय संस्कृति के महानतम आदर्श हैं। राम-संस्कृति का अर्थ है मानवीय संस्कृति और विश्व संस्कृति। राम का आदर्श जीवन भारतीय संस्कृति का एक ऐसा दिव्य प्रभामण्डल है, जो समस्त राष्ट्र तथा विश्व को सदैव आलोकित करता रहेगा। वास्तव में राम मात्र भारतीय संस्कृति के प्राण पुरुष ही नहीं हैं, वरन् वे विश्व संस्कृति के महानायक हैं। विश्व जनमानस ने उन्हें आदर्श पुरुष के रूप में स्वीकार किया है। भगवान श्रीराम का स्वरूप अत्यन्त व्यापक एवं गहन है। देश देशान्तरों में फैली राम कथा के अनेकानेक रूप हैं, विविध पक्ष हैं। त्रेतायुग से आज तक पतित पावनी गंगा की भांति प्रवाहमान रामकथा मानव सभ्यता को पोषित करती आ रही है।

भारतवर्ष का पुरा इतिहास इस बात का साक्षी है कि अखंड भारत सात प्राचीनतम पौराणिक नगरियों (अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका) में शामिल अयोध्या नगरी अत्यंत गौरवशाली सभ्यता व संस्कृति की पोषक मानी जाती है। गोस्वामी तुलसीदास की कालजयी कृति श्रीरामचरित मानस जो सनातन धर्मियों के मध्य मानव जीवन की सर्वोच्च आचार संहिता के रूप में स्थापित है, उसमें स्वयं प्रभु श्रीराम अपनी मातृ भूमि का प्रशस्तिगान करते हुए कहते हैं- ‘’जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।। जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।।‘’ अर्थात यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर दिशा में सभी जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना ही परिश्रम मेरे समीप निवास (सामिप्य मुक्ति) पा जाते हैं।

गौरतलब हो कि प्रभु श्रीराम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि, जिन्होंने सर्वप्रथम रामायण महाकाव्य की रचना कर श्रीराम की अनुकरणीय जीवनगाथा को जनमानस के प्रस्तुत किया था, अपनी इस कालजयी कृति में लिखते हैं कि त्रेतायुग में इसी पावन अवधपुरी में जन्में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामराज्य युगों बाद भी आज तक शासन का सर्वोत्तम स्वरूप माना जाता है। इसी तरह लोकमंगल के अमर गायक गोस्वमी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में रामराज्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है- राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।। बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।। नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।। सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।

मानवता को आदर्श व्यवहार का संदेश देगा मंदिर

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति रजनीश कुमार शुक्ल की मानें तो श्रीराम ने अवध को जो लोक कल्याणकारी शासन दिया था, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सदैव आजाद भारत में उस रामराज्य के पक्षधर थे, जिसके मूल में सभी के कल्याण और सेवा का भाव निहित था। संभवतः इसी कारण हमारे राष्ट्र के नीति-निर्माताओं ने देश की संविधान पुस्तिका के पृष्ठों पर राम जी के चित्र को उकेरा था। उनके अनुसार स्वाधीनता आंदोलन में जिस आदर्श का सबसे अधिक शब्द प्रयोग हुआ वह है रामराज्य। वस्तुत रामराज्य की अवधारणा केवल स्वतंत्रता का राजनीतिक अर्थ प्रस्तुत नहीं करती, अपितु यह मानव सभ्यता में एक ऐसे विशिष्ट राष्ट्र की कल्पना है, जिसमें सभी नागरिक विधिसम्मत मर्यादा में रहकर धर्म का पालन करते हैं।

उनके मुताबिक रामराज्य की विधि या धर्मसम्मत मर्यादा की अवधारणा केवल राजा या शासक के कर्तव्यों का विचार नहीं है अपितु एक ऐसी समग्र राज्य व्यवस्था की निर्मिति है, जिसमें सामाजिक जीवन का प्रत्येक कोना धर्म के चार चरणों- सत्य, सोच, दया और दान पर अवलंबित होता है। यह एक ऐसी चतुष्पाद व्यवस्था है, जो राज्य और समाज के सभी आधारभूत घटकों को सच्ची श्रद्धा से ओत-प्रोत करते हुए सबकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। रामराज्य में मनुष्य और प्रकृति सभी निजधर्म का पालन करते हैं। वे सभी कल्याण के लिए उदारचेता होकर त्याग करते हैं। उनमें संग्रह की प्रवृत्ति नहीं है।

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रामराज्य में एक राजा से अपेक्षित है कि वह प्रेम, सद्भावना, शांति और स्वशासन की स्थापना करे। एक राजा के रूप में जिस धर्म और मर्यादा की स्थापना भगवान श्रीराम करते हैं। महात्मा गांधी ने इसी भारत की कल्पना ‘हिंद स्वराज’ में की है। रामराज्य के स्वप्न को स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं ‘’रामायण का प्राचीन आदर्श रामराज्य निःसंदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है। मेरे सपनों का रामराज्य राजा और निर्धन दोनों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करता है। मैं जिस रामराज्य का वर्णन करता हूं, वह नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है। इस स्वप्न को चरितार्थ करता हुआ जो महान कालखंड भारतीय इतिहास में सदा सर्वदा स्पृहा का विषय रहा है, वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्य है।‘’

बताते चलें कि रामराज्य का यह स्वरूप भारत के इतिहास में अनेक कालखंडों में दोहराया गया है। इसके लिए मेगास्थनीज की इंडिका, फाह्यान द्वारा हर्षवर्धन के राज्य काल के वृत्तांत, समुद्रगुप्त और स्कंदगुप्त के शासन के पौराणिक आख्यान, ललितादित्य के महान शासन के राजतरंगिणी के आख्यान, छत्रपति शिवाजी के हिंदूपदपादशाही के सुशासन स्वराज के दस्तावेजों की ओर भी ध्यान देना होगा। इतिहास में विस्मृत इन कालखंडों का ध्यान रखते हुए हमें स्वबोध, स्वराज और सुराज की उस व्यवस्था का भी स्मरण करना होगा, जिसमें मैकाले को भारत में कोई भिखारी, कोई निरक्षर नहीं दिखाई देता था। ज्ञातव्य हो कि आज देश व दुनिया के सम्मुख जो भी समस्याएं दीवार की तरह खड़ी हैं, उन सब का समाधान प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र में दिखाई देता है।

समाज में जो शक्तियां सवर्ण-दलित, शहरवासी-वनवासी (जनजाति), संपन्न-गरीब की खाई को बढ़ाकर संघर्ष उत्पन्न करना चाहती हैं, उनको राम का महाराज निषाद एवं माता शबरी के जूठे बेर खाना, सटीक उत्तर है। वन में उनका व्यवहार एवं पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि के प्रति प्रेम पर्यावरण एवं जैव विविधता के प्रति उनकी दृष्टि को प्रकट करता है। मानवता के शत्रु राक्षसों का वध करके आतंक का उन्मूलन तो उन्होंने करके ही दिखाया है। उनका सारा जीवन इसी की प्रेरणा है। पिता-पुत्र, भाई-भाई, शिक्षक, पत्नी आदि के प्रति उनका व्यवहार मानवीय मूल्यों की पराकाष्ठा है। इस कारण राम मंदिर का निर्माण एक पूजा स्थान मात्र नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन के इस वातावरण में मानवता को आदर्श व्यवहार का संदेश भी देगा। गर्व का विषय है कि राम मंदिर के निर्माण के साथ आज का भारत नई करवट ले रहा है। सबको साथ लेकर चलता हुआ भारत, सर्वत्र बढ़ता हुआ भारत रामराज्य की नई परिभाषा लिखने की दिशा में बढ़ चला है।

श्रीराम की वैश्विक स्वीकार्यता

सत्य, सौहार्द, करुणा, आस्था, आदर्श, त्याग और तप के अप्रतिम प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की स्वीकार्यता पुरातन काल से ही पूरे विश्व में प्रमाणिकता के साथ मौजूद है। श्रीराम के आदर्शों ने विश्व के विभिन्न देशों के समुदायों का मार्गदर्शन किया है। पूरी दुनिया में श्रीराम की उपस्थिति के उदाहरण उपलब्ध हैं। बताते चलें कि ईरान-इराक की सीमा पर स्थित बेलुला में लगभग 4,000 वर्ष प्राचीन श्रीराम से संबंधित गुफा चित्र मिले हैं, तो वहीं मिश्र में 1,500 वर्ष पूर्व राजाओं के नाम तथा कहानियां ‘राम’ की भांति ही मिलती हैं। इटली में पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व रामायण से मिलते-जुलते चित्र दीवारों पर मिलते हैं।

इटली में प्राप्त इन चित्रों में राम, लक्ष्मण, सीताजी का वन गमन, सीताहरण, लव-कुश का घोड़ा पकड़ना, हनुमानजी का संजीवनी लाना आदि प्रमुख हैं। इसी तरह शोधकर्ताओं को मध्य पूर्व ईराक, सीरिया, मिश्र सहित यूरोप इंग्लैड, बेल्जियम और मध्य अमेरिका के होण्डुरास और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, कम्बोडिया और कैरेबियन देश वेस्टइंडीज, सूरीनाम व मारीशस में भी श्रीराम से संबंधित अनेक प्रसंग जीवंत मिले हैं। भारत ही नहीं, विश्व के विभिन्न देशों में रहने वाले रामभक्तों के लिए प्रभु श्रीराम की यह वैश्विक स्वीकार्यता अत्यंत उल्लास, आनंद, गौरव एवं आत्मसंतोष का विषय है।

बताते चलें कि गुलामी के कालखंड में अंग्रेज हमारे देशवासियों को भारत के बाहर दास बनाकर लेकर गए थे। दुनिया के अनेक देशों में गिरमिटिया मजदूर कहलाने वाले यह भारतीय अपने पुरुषार्थ के कारण आज वहां पर भी प्रभावी बन गए हैं और उनमें से अनेक वहां के संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन देशों की सेवा भी कर रहे हैं। क्या इसका कारण जानते हैं आप ? दरअसल, ये भारतवासी विदेश जाते समय अपने साथ रामायण, श्रीरामचरितमानस एवं प्रभु श्रीराम का विग्रह साथ लेकर गए थे। प्रभु राम ने उनको संकटों में भी धैर्य से जीवन जीना सिखाया। उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आज उन सभी देशों में प्रभु श्रीराम के मंदिर, रामलीला का मंचन एवं रामायण वर्तमान पीढ़ी का मार्गदर्शन कर रही है। इस तरह प्रभु श्रीराम, केवल भारत ही नहीं विश्व भर में फैले असंख्य भारतीयों के साथ-साथ विश्व भर के नागरिकों में मर्यादापूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दे रहे हैं।

विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस हो रही रामनगरी

22 जनवरी 2024 को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के उपरांत बड़ी संख्या में देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के अयोध्या आगमन का सिलसिला तेजी से शुरू हो जाएगा। इसी के मद्देनजर केंद्र व प्रदेश सरकार भारत के संस्कृति पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या को विश्वस्तरीय तीर्थ नगरी के रूप में विकसित करने में पूर्ण मनोयोग से जुटी हुई है। योगी सरकार ने रामजन्मभूमि तक पर्यटन सुविधाएं व कनेक्टिविटी बढ़ाने तथा पौराणिक तीर्थों के सुंदरीकरण के लिए अपनी दूसरी पारी के पहले बजट में अयोध्या को 750 करोड़ की सौगात दी है। उनके इस बजट में रामनगरी की पौराणिकता को सहेजने के साथ-साथ उसे आधुनिक सुविधाओं से भी लैस करने की प्रतिबद्धता साफ दिखाई देती है।

इन जन सुविधाओं के तहत नगर में हवाई अड्डे, रेलवे सुविधाओं, नई सड़कों और अस्पताल सुविधाओं का निर्माण तेज गति से चल रहा है। नगर के 37 पर्यटन स्थलों में स्ट्रीट लाइट, सीसीटीवी और अन्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं तथा अयोध्या को जोड़ने वाले विभिन्न संपर्क मार्गों का चैड़ीकरण और सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार ताज, रेडिसन, इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (आईएचसीएल), मैरियट इंटरनेशनल, सरोवर होटल्स एंड रिसॉट्र्स और विंडहैम होटल्स एंड रिसॉट्र्स जैसी नामचीन होटल श्रृंखलाएं अयोध्या में होटलों के लिए सौदे कर चुकी हैं। इन होटलों के निर्माण से वैश्विक पर्यटन को तो बढ़ावा मिलेगा ही, इस पुरातन नगरी की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ेगी। इसी के साथ मध्यम व निम्न आय वर्ग के श्रद्धालुओं के आवास के लिए धर्मशालाओं जैसे किफायती विकल्पों सहित विभिन्न प्रकार के होटलों की योजना बनाई जा रही है।

इसी के साथ यहां आने वाले श्रद्धालुओं/पर्यटकों को भोजन व आवास की विश्वस्तरीय जनसुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा सरयू नदी के निकट 75 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में गुजरात की जानी-मानी निर्माण कंपनी ‘प्रवेज’ की ओर से छह टेंट नगरियों का निर्माण कराया जा रहा है। गुप्तारघाट, ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा, रामकथा संग्रहालय के पीछे, बाग बिजेसी, कारसेवकपुरम और मणिरामदास छावनी के परिसर में इन टेंट नगरियों का निर्माण प्रस्तावित है, जिनमें करीब 88,000 श्रद्धालुओं को रहने की सुविधा उपलब्ध होगी। हर्ष का विषय है कि अयोध्या आने वाले कम आय वर्ग के श्रद्धालुओं के भोजन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने रुकने की व्यवस्था सहित 350 रुपए में दो समय भोजन देने की भी योजना बनाई है।

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इसके लिए पूरे नगर निगम क्षेत्र में 40 से अधिक स्थान चयनित किए जा चुके हैं। मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा का कहना है कि जिस प्रकार अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण युद्धस्तर पर हो रहा है, ठीक उसी तरह राम जन्मभूमि परिसर में यात्री सुविधा केंद्र, बिजली के लिए उपकेंद्र, जलापूर्ति के लिए केंद्र बनाए जाने के साथ जन्मभूमि पथ सहित परिसर में श्रद्धालुओं के भोजन व प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्थाओं को विकसित किया जा रहा है। सुरक्षा के तहत पुलिसिंग व्यवस्था भी सुदृढ़ की जा रही है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्र के अनुसार तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए नगर में 25,000 दर्शनार्थियों की क्षमता के एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र का निर्माण कराया गया है। इस सुविधा केंद्र में निःशुल्क लॉकर, उठने-बैठने की व्यवस्था, शौचालय की सुविधा के साथ व्हीलचेयर की व्यवस्था भी की गई है।

पूनम नेगी

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