रेलवे ने पहली बार ‘त्रिशूल’ और ‘गरुड़’ मालगाड़ियों का किया सफलतापूर्वक संचालन

नई दिल्ली: भारतीय रेलवे ने दक्षिण मध्य रेलवे (एससीआर) पर पहली बार दो लंबी दूरी की मालगाड़ियों “त्रिशूल” और “गरुड़” का सफलतापूर्वक संचालन किया है। आम मालगाड़ियों के मुकाबले इनमें तीन गुना अधिक वैगन हैं। इस प्रकार की मालगाड़ियों से ज्यादा से ज्यादा माल ढुलाई की जा सकती है।

रेल मंत्रालय ने रविवार को कहा कि मालगाड़ियों की सामान्य संरचना से दोगुनी या कई गुना बड़ी, लंबी दूरी की यह रेल महत्वपूर्ण खंडों में क्षमता की कमी की समस्या का एक बहुत प्रभावी समाधान हैं।

त्रिशूल दक्षिण मध्य रेलवे की पहली लंबी दूरी की रेल है जिसमें तीन मालगाड़ियां, यानी 177 वैगन शामिल हैं। यह रेल 7 अक्टूबर को विजयवाड़ा मंडल के कोंडापल्ली स्टेशन से पूर्वी तट रेलवे के खुर्दा मंडल के लिए रवाना हुई थी। एससीआर ने इसके बाद 8 अक्टूबर को गुंतकल डिवीजन के रायचूर से सिकंदराबाद डिवीजन के मनुगुरु तक इसी तरह की एक और रेल को रवाना किया और इसे गरुड़ नाम दिया गया है। दोनों ही मामलों में लंबी दूरी की रेलों में मुख्य रूप से थर्मल पावर स्टेशनों के लिए कोयले की लदान के लिए खाली खुले वैगन शामिल थे। एससीआर भारतीय रेल पर पांच प्रमुख माल ढुलाई वाले रेलवे में से एक है। विशाखापत्तनम-विजयवाड़ा-गुडुर-रेनिगुंटा,बल्लारशाह-काजीपेट-विजयवाड़ा, काजीपेट-सिकंदराबाद-वाडी, विजयवाड़ा-गुंटूर-गुंतकल खंडों जैसे कुछ मुख्य मार्गों पर एससीआर थोक माल के यातायात का संचालन करता है।

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चूंकि इसके अधिकांश माल यातायात को इन प्रमुख मार्गों से होकर गुजरना पड़ता है, इसलिए लंबी दूरी की इन रेलों के माध्यैम से परिचालन में भीड़भाड़ वाले मार्गों पर पथ की बचत, शीघ्र आवागमन समय, महत्वपूर्ण सैक्सन में प्रवाह क्षमता को अधिकतम करना, चालक दल में बचत करना जैसे लाभ शामिल हैं। इन उपायों के माध्यशम से भारतीय रेल अपने मालवाहक ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने में मदद करती है।

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