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राहुल जी, कभी शिशु वाटिका जाइए ना !

महात्मा गाँधी के विभिन्न रूपों से बच्चों को परिचित कराने वाली अनु बंदोपाध्याय की पुस्तक बहुरूपी गाँधी की भूमिका में नेहरू जी ने लिखा- यह पुस्तक बच्चों के लिए है किन्तु बहुत से बड़े लोग भी इसे खुशी से पढ़ेंगे। आज यदि नेहरू जी होते तो वर्तमान गाँधी (राहुल गांधी) के विभिन्न रूपों पर रीझते या खीजते, इसका अनुमान तो पुराने कांग्रेसी ही लगा सकते हैं। राहुल गांधी किसे प्रभावित करने के लिए बार-बार रूप और विचार बदल देते हैं यह भी अपने आप में एक पहेली है। बड़ों के लिए या बच्चों के लिए ! उनका प्रत्येक नया रूप, नया वक्तव्य अपने ही पुराने रूप और वक्तव्य से व्युत्क्रम अनुपात में होता है।

राहुल गांधी एक ओर संसद में आँख मारकर हँसमुख-रँगीले-युवा की छवि में दिखते हैं तो दूसरी ओर किसी आमसभा में आस्तीनें चढ़ाकर बाहुबली दिखने का प्रयास करते हैं। कभी इनोसेंट युवा बन जाते हैं तो कभी अपने पिताजी की स्टाइल में आ जाते हैं। कभी-कभी अल्वर्ट आइन्स्टीन वाले लुक में वीडियो पोस्ट कर स्वयं को गंभीर दिखाने का प्रयास करते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड में संभवतः इसीलिये उन्हें एक ऐसा नर्वस और अपरिपक्व छात्र कहा, जिसने अपना होमवर्क किया है और टीचर को इम्प्रेस करने की कोशिश में है। प्रश्न यह है कि क्या राहुल गांधी किसी को इम्प्रेस करना चाहते हैं या किसी तय एजेंडे के अनुसार भ्रमित किये जा रहे हैं। वे अभीतक किसी एक निश्चित छवि में नहीं ढल पाए हैं। स्वयं कांग्रेस पार्टी को इससे भारी क्षति उठानी पड़ रही है।

राहुल गांधी एक ओर जनेऊ पहनकर भारतीय संस्कृति में रंगे दिखना चाहते हैं दूसरी ओर भारत की सांस्कृतिक संस्थाओं की तुलना पाकिस्तान के जिहादी मदरसों से कर देते हैं। क्या उन्हें पता है कि भारत के कई मदरसे भी संदिग्ध गतिविधियों में संलग्न हैं। क्या राहुल गांधी ने कभी सोचा है कि उनकी इस भयानक टिप्पणी से देश के हजारों सरस्वती शिशु मंदिरों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों के मन पर क्या बीतेगी? आज देश में असंख्य डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, वैज्ञानिक, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता शिशुमंदिरों से निकले छात्र-छात्राएं हैं। क्या राहुल गांधी को पता है कि उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो शिशु मंदिरों में पढ़े हैं या उनके बच्चे पढ़ रहे हैं।

यह जानते हुए भी कि भारत में इसाई मिशनरियाँ शिक्षा के नाम पर धर्मान्तरण कराती रही हैं और अभी भी करा रही हैं, राहुल गांधी तमिलनाडु के इसाई विद्यालय सेंट जोसेफ में नाचते हैं, दण्ड बैठक करते हैं और फिर भारतीय संस्कृति का प्रचार करने वाली शैक्षणिक संस्थाओं पर कीचड़ उछालते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि वनवासी अंचलों में इसाई मिशनरियों को संघ प्रेरित संस्थाओं से चुनौती मिल रही है। क्या राहुल गाँधी इसाई मिशनरियों और मुसलामानों को प्रसन्न करने के लिए ही इस नए रूप में आ रहे हैं।

सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षा की भारतीय पद्धति के श्री विग्रह हैं। वह विग्रह जिसे अँगरेजों ने खंडित कर दिया था ये वही विग्रह है जिसे बापू ने द ब्यूटीफुल ट्री कहकर नैवद्य अर्पित किया था। महात्मा गाँधी ने दुनिया को बताया कि भारत के लोगों को अँगरेजों ने पढ़ना-लिखना नहीं सिखाया अपितु अँगरेजों के आने से पूर्व भी भारत में शिक्षा का एक बहुत सुन्दर वृक्ष था जिसे अँगरेजों ने नष्ट कर दिया। आर्यभट्ट, महर्षि पाणिनी, वरःमिहिर, चरक, सुश्रुत, चाणक्य, नागार्जुन से होती हुई कालिदास, भवभूति और तानसेन तक वह किसी न किसी गुरुकुल के माध्यम से सतत चलती रही।

इतिहासकार धर्मपाल जी ने एक शोधग्रन्थ लिखकर सप्रमाण सिद्ध किया है कि अँगरेजों के आने से पूर्व भारत में एक सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली अस्तित्व में थी जो हजारों वर्षों से निरंतर चली आ रही थी। देश पर अंग्रेजी हुकूमत शुरू होने के समय देश के लगभग सभी गाँवों में एक विद्यालय संचालित था। यह समझने वाली बात है कि शिक्षा की जिस भारतीय व्यवस्था ने देश को आयुर्वेद, गणित खगोल, ज्योतिष आदि के विश्व पूज्य विद्वान दिए, हमने अबतक उसकी उपेक्षा ही की है। विद्याभारती शिक्षा के उसी भारतीय मॉडल पर कार्य कर रहा है। क्या हमारी हजारों वर्ष प्राचीन शिक्षा की आचार्य परंपरा जिहादी है? राहुल गांधी के परामर्श मंडल में कौन लोग हैं? जो उन्हें लाखों विद्यार्थियों के मध्य अलोकप्रिय बनाना चाहते हैं।

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मेरे विचार से राहुल गांधी को एकबार शिशु मंदिरों का भ्रमण अवश्य कर लेना चाहिए। वहाँ की कार्यपद्धति, पाठ्यक्रम, संस्कार परिमार्जन का अवलोकन किये बिना गंभीर आरोप लगा देने से उनकी आपनी छवि धूमिल हो रही है। मेरा सुझाव है, राहुल जी कभी शिशु वाटिका में जाकर वहाँ लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद रूपों को साक्षात् देखिये। माँ भारती की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले भगत सिंह जी, बिस्मिल जी आदि हुतात्माओं के चित्रों से सजे परिसरों को देखिये। भारतमाता का पूजन कैसे किया जाता है, अपनी मिट्टी, अपने देश, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व कैसे किया जाता है, ये सब शिशु वाटिका में ही सिखाया जाता है। पशु-पक्षियों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों तक से प्रेम करो, आपस में भैया-बहन कहो, बड़ों का अभिवादन करो, ये शिशु मंदिरों के सहज संस्कार हैं। आप स्वयं जाकर देखिये। मुझे विश्वास है जब आप वहाँ जाएँगे तो स्वयं को एक नए रूप में अनुभव करेंगे।

डॉ. रामकिशोर उपाध्याय

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