Home देश सुबह-सुबह पुरी बीच पर टहलने पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, साझा की भावनाएं

सुबह-सुबह पुरी बीच पर टहलने पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, साझा की भावनाएं

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Draupadi Murmu: ओडिशा में भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा में शामिल होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू समुद्र तट पर पहुंचीं समुद्र तट पर उन्होंने कुछ देर बिताए, जहां उन्होनें गहन शांति महसूस की। राष्ट्रपति भवन ने उनकी यात्रा के कुछ चित्र और उनके विचार एक्स हैंडल पर साझा किए हैं।

एक्स पर किया ये पोस्ट   

एक्स पर पोस्ट करते हुए President Draupadi Murmu ने कहा कि, ” कुछ ऐसे स्थान हैं जो हमें जीवन के सार के करीब लाते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि, हम प्रकृति का हिस्सा हैं। पहाड़, जंगल, नदियां और समुद्र तट हमारे भीतर की किसी गहरी चीज को आकर्षित करते हैं। जैसे ही मैं आज समुद्र के किनारे चल रही थी, मुझे आसपास के वातावरण के साथ एक जुड़ाव महसूस हुआ- हल्की हवा, लहरों की गड़गड़ाहट और पानी का विशाल विस्तार। यह एक ध्यानपूर्ण अनुभव था।”

साथ ही उन्होंने कहा कि, ” इससे मुझे गहन आंतरिक शांति मिली, जो मुझे तब भी महसूस हुई जब मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन किए। और ऐसा अनुभव पाने वाली मैं अकेली नहीं हूं। हम सभी इस तरह महसूस कर सकते हैं जब हमारा सामना किसी ऐसी चीज से होता है जो हमसे कहीं बड़ी है, जो हमें सहारा देती है और जो हमारे जीवन को सार्थक बनाती है।”

मानव जाति ने प्रकृति पर किया कब्जा – Draupadi Murmu

President Draupadi Murmu ने लिखा है, ”दैनिक कामकाज की आपाधापी में हम प्रकृति के साथ इस संबंध को खो देते हैं। मानव जाति ने प्रकृति पर कब्जा कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए इसका दोहन कर रही है। नतीजा सबके सामने है। इस गर्मी में भारत के कई हिस्सों को लू की भयानक शृंखला का सामना करना पड़ा। हाल के वर्षों में दुनिया भर में मौसम में बदलाव हुआ है। आने वाले दशकों में स्थिति और भी बदतर होने का अनुमान है।”

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा है, ”पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत से अधिक भाग महासागरों से बना है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने का खतरा है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण महासागरों और वहां पाई जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को भारी नुकसान हुआ है।”

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उन्होंने कहा है, ” सौभाग्य से प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएं कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों के निवासी हवाओं और समुद्र की लहरों की भाषा जानते हैं। अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए, वे समुद्र को भगवान के रूप में पूजते हैं। मेरा मानना ​​है कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती से निपटने के दो तरीके हैं। पहला- सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को व्यापक कदम उठाने चाहिए। दूसरा स्थानीय स्तर पर नागरिक भी इसमें सहयोग करें। आइए बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत रूप से स्थानीय स्तर पर जो कुछ भी हम कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें।”

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