महाराणा प्रताप ने क्यों चावण्ड को ही चुनी राजधानी

महाराणा प्रताप की जयंती (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, इस बार 02 जून, 2022) पर अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि 1585 ई. में उन्होंने चावण्ड को ही अपनी राजधानी क्यों बनाया? इसका जवाब यह है कि यह स्थान सामरिक और सुरक्षा के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ था। चावण्ड के आसपास के भू-भाग के सर्वेक्षण से भी यह धारणा अधिक बलवती होती है। चावण्ड को राजधानी बनाने से पहले महाराणा को इस इलाके में मुगलों से मुकाबला करना पड़ा था। तब महाराणा प्रताप ने बलुआ गांव के आसपास युद्धकालीन आवास बनाया।

चावण्ड उदयपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर-अहमदाबाद राजमार्ग संख्या-8 पर गरगल नदी के बाएं किनारे पर बसा हुआ है। वर्तमान चावण्ड ग्राम से आधा किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित एक मगरी पर महाराणा ने अपनी नवीन राजधानी का निर्माण कराया था। इस स्थान के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि मगरी की चोटी पर महल रहा होगा और मगरी की ढलान और तलहटी पर सामंतों के रहने के लिए भवन आदि बनाए गए होंगे। सर्वेक्षण के आधार पर यह कहना काफी तर्कसंगत प्रतीत होता है कि महल की पूर्व दिशा में प्रताप की आराध्या मां चामुण्डा की अत्यंत नयनाभिराम मूर्ति है तथा राजमहल के उत्तर में काफी बड़ी भवन संरचना के अवशेष मिलते है, जो संभवतः भामाशाह का आवास रहा होगा। इसके साथ ही यह संभावना भी काफी सशक्त है कि महल की एक किमी की परिधि में सामान्य प्रजा रहती होगी, क्योंकि यहां से खपरैलों के अवशेष बड़ी संख्या में मिले हैं। यहां पर एक कटावला का तालाब भी है जो खेती हेतु पानी का प्रधान स्रोत रहा था। आज भी यहां कि मिट्टी अत्यंत उर्वरा है जो उस समय में भी कृषि उपज की दृष्टि से महत्वपूर्ण था।

इस गांव में उदैय की पहाड़ियां सामरिक दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं। इनकी गुफाओं में आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता। महाराणा के यहां रहने की वजह इस क्षेत्र के सर्वमान्य और प्रतापी भील सेना नायक जयसिंघ कोटड़िया का होना भी रहा होगा। कोटड़िया समृद्ध जमीदार था। उदैय की पहाड़ियों के चारों ओर निर्मित सुरक्षा दीवार, समीपस्थ अन्य तीन पहाड़ियों में सामंतों, सैनिकों और प्रजा के लिए निर्माण की पुष्टि क्षेत्र के सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त भौतिक अवशेषों से भी होती है। इस क्षेत्र से तीन बावड़ियों का मिलना भी इस भू-भाग में बसावट को सिद्ध करता है। इन उदैय की पहाड़ियों में अपने निवास को सम्पूर्णरूप से सुरक्षित करने के प्रमाण इसकी समीपवर्ती धजोल और बठौड़ी की पहाड़ियों पर बनी सैनिक छावनियों से भी होती है।

चावण्ड की उत्तर-पूर्व दिशा में लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित नठारा-की-पाल का अधिकांश भाग पहाड़ियों की श्रृंखलाओं से चहुंओर घिरा हुआ है। इस क्षेत्र का व्यापक सर्वेक्षण करने से इस क्षेत्र में बसासत के प्रमाण प्राप्त हुए हैं, इसकी पुष्टि बसावट के अवशेषों और स्थानीय भील समुदाय में प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि इस क्षेत्र में महाराणा के समय बस्ती थी और यहां के भील मुखिया पूंजा कटारा के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी सदैव सहायता के लिए रहती थी। चावण्ड से दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग आठ किमी की दूरी पर गांव पाल-लिम्बोदा स्थित है। यह गांव तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है तथा यह चावण्ड और उदैय की पहाड़ियों के मध्य स्थित होने से बहुत महत्वपूर्ण रहा होगा तथा युद्धकाल में महाराणा को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने के अलावा सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्व का रहा होगा।

सन 2001 में भारतीय पुरातत्व विभाग की जयपुर शाखा के द्वारा डॉ. डिमरी के नेतृत्व में बीआर सिंह, राजेंद्र यादव और विपिन उप्पल आदि के दल ने यहां वैज्ञानिक तरीके से उत्खनन कराया जिससे यह पता चला कि सम्पूर्ण संरचना का निर्माण तीन अवस्थाओं में कराया गया होगा। यहां किए गए उत्खनन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इस निर्माण में पकी हुई मिट्टी की ईंटों, प्रस्तरखंडों को प्रयुक्त किया गया था तथा मसाले में चूना प्रमुख रूप से उपयोग में लिया गया था।

इस स्थल के उत्खनन द्वारा एक अत्यंत विलक्षण और आश्चर्यजनक संरचना प्राप्त हुई है जो प्रतापकालीन उच्च अभियांत्रिकी का और जल संग्रहण के प्रबंधन का अद्वितीय उदाहरण है। यह संपूर्ण जल संरचना 8.85 गुना 6.70 मीटर की है। इसके के मध्य में एक केंद्रीय कक्ष है जो 2.95 गुना 1.8 मीटर का है और इसके चारों ओर 26 वर्गाकार कक्ष हैं जिनकी माप 74 गुना 74 सेमी है।

इन तथ्यों के आधार पर यह कहना पूर्णतः समीचीन है किमहाराणा प्रताप एक असाधारण प्रतिभा के ऐसे वीर योद्धा थे जिसकी तुलना करना असंभव ही है। साथ ही, उनमें संगठनात्मक एकता विकसित कर रचनात्मक कार्य करने की अप्रतिम क्षमता थी। वह एक कुशल प्रशासक, वास्तुविद और अभियांत्रिकी के जानकार भी थे जिसकी पुष्टि चावण्ड को राजधानी बनाने से होती है। अत्यंत विषम परिस्थितियों में अल्प समय का समुचित उपयोग करने की तमाम विलक्षण प्रतिभा उनमें थी। उन्होंने जिस तरीके से चावण्ड के चारों ओर सेटेलाइट बस्तियां बसाकर स्थानीय निवासियों में पारस्परिक विश्वास की भावना विकसित कर अपने चारों ओर जो सुरक्षात्मक दीवार बना न केवल सामरिक दृष्टि से अपने राज्य को कंटकविहीन तो किया ही साथ ही स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर अपने राज्य को शक्ति संपन्न बनाया। इस प्रकार से महाराणा में आपदाकाल को अवसर में बदलने की अप्रतिम क्षमता तो थी ही, साथ ही वह मानवीय प्रयासों से भौगोलिक विषमताओं पर विजय प्राप्त करने के ऐसे गुणसम्पन्न व्यक्तित्व के धनी थे जिसका दूसरा उदाहरण इतिहास में मिलना असंभव ही है। और, इसी कारण वे देश काल की सीमाओं से परे जाकर अनेक राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का प्रेरणापुंज बन गए।

  • डॉ.ललित पांडेय