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पीएम मोदी महापरिनिर्वाण प्रतिमा के समक्ष हुए नतमस्तक, वैश्विक शांति के लिए की अस्थि अवशेषों की पूजा

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कुशीनगरः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार शाम लुम्बनी से वापसी के बाद कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मन्दिर पहुंचे। यहां स्थित बुद्ध की पांचवीं सदी की शयनमुद्रा वाली प्रतिमा के समक्ष मत्था टेका, चीवर अर्पित किया और प्रतिमा की परिक्रमा की। प्रधानमंत्री ने महापरिनिर्वाण मन्दिर के पीछे स्थित बुद्ध के अस्थि अवशेष समेटे स्तूप की पूजा कर देश के विकास व खुशहाली की कामना करते हुए बौद्ध भिक्षुओं को संघ दान दिया। म्यांमार बौद्ध विहार के प्रबन्धक भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेरो व भंते अशोक व भंते नन्दरत्न व भंते महेंद्र ने प्रधानमंत्री के हाथों चीवर अर्पण व विशेष पूजा सम्पन्न कराई। बौद्ध भिक्षुओं ने धम्म पाठ कर प्रधानमंत्री के दीर्घायु व निरोग जीवन के साथ ही पूरी दुनिया में शांति, अहिंसा व विकास के लिए विशेष पूजा प्रार्थना की। पूजन के दौरान वह पूरी तरह भावविभोर दिखे।

प्रधानमंत्री के साथ सांसद रमापति राम त्रिपाठी, सांसद विजय दुबे, कुशीनगर के विधायक पीएन पाठक व पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह उपस्थित रहे। पूजन के पश्चात बौद्ध भिक्षुओं ने प्रधानमंत्री को बुद्ध के अस्थि अवशेषों के सम्बंध में जानकारी दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद शिष्यों ने उनकी अस्थियों को सात भागों में विभक्त किया था। उसी समय से अस्थि अवशेष का एक भाग यहां मौजूद था। 1876 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में प्रतिमा अस्थियां प्राप्त हुई। मन्दिर व स्तूप बनाकर प्रतिमा व अस्थियों को संरक्षित किया गया। गत बार आए प्रधानमंत्री अस्थियों का पूजन नहीं कर पाए थे।

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देखी प्रतिमा की खूबियां
प्रधानमंत्री प्रतिमा की परिक्रमा के दौरान उसकी विशेषताओं को निहारते रहे। बौद्ध भिक्षुओं ने पीएम को प्रतिमा की खूबियां बताई। बुद्ध प्रतिमा सिर के तरफ से मुस्कुराती हुई, मध्य से चिंतन मुद्रा और पैर के तरफ शयन मुद्रा में प्रतीत होती है। प्रतिमा की इस विशेषता को महसूस करने के लिए देश दुनिया से सैलानी खिंचे चले आते हैं। गुप्तकाल में निर्मित यह प्रतिमा पुरातात्विक अवशेषों की खुदाई के दौरान वर्ष 1876 में प्राप्त हुई थी। बलुए पत्थर से बनी 6.10 मीटर लम्बी यह प्रतिमा के प्रस्तर फलक पर बुद्ध के अंतिम समय में साथ रहे तीन शिष्यों का चित्रण है। पांचवी शताब्दी का एक अभिलेख भी है जिस पर प्रतिमा के समर्पणकर्ता हरिबल का भी उल्लेख है।

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