देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic) (SUP) के इस्तेमाल पर लगे प्रतिबंध को भले ही दो साल हो गए हो, लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक अब तक नहीं लग पाई है। आलम यह है कि कमोवेश सभी जगह एसयूपी (एकल उपयोग) उत्पाद न केवल उपलब्ध हैं, बल्कि इनका इस्तेमाल भी खूब धड़ल्ले से हो रहा है। यहां तक कि इससे संबंद्ध शिकायतों का निपटान भी गंभीरता से नहीं हो रहा है। बैन की हुई प्लास्टिक थैलियों का उपयोग शासन के आदेश की धज्जियां उड़ा रहा हैं। दुकानदार, सब्जी वाले, ठेला वाले आदि सभी शासन द्वारा बैन की हुई प्लास्टिक थैलियों का खुलेआम इस्तेमाल कर रहे हैं।
प्लास्टिक से बनी कई चीजों पर लगा है प्रतिबंध
प्रदेश के नगर निगम और नगर पालिकाएं भी जान-बूझकर चुप्पी साधे हुए है। गौरतलब है कि शासन द्वारा कम माइक्रोन की प्लास्टिक थैलियों पर पूर्णतया बैन लगाया गया है। प्लास्टिक थैलियों से प्रदूषण सहित नाली, गटर जाम होने की समस्या उत्पन्न होती है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने 01 जुलाई, 2022 से सिंगल यूज़ या एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध के तहत पॉलीस्टायरीन और विस्तारित पॉलिस्ट्रीन जैसे प्लास्टिक का निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और इस्तेमाल पर रोक है। प्रतिबंध के तहत सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी करीब डेढ़ दर्जन से ज्यादा चीजों पर पाबंदी लगाई गई है। एक पदार्थ के रूप में प्लास्टिक गैर-बायोडिग्रेडेबल है और इस प्रकार प्लास्टिक की थैलियां सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में रहती हैं और इसे अत्यधिक प्रदूषित करती हैं।
इससे पहले कि प्लास्टिक थैलियां हमारे ग्रह को पूरी तरह बर्बाद कर दें, उनके इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगाना जरूरी हो गया है। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम के तहत सिंगल यूज प्लास्टिक की कुल 19 वस्तुओं पर यह प्रतिबंध लगाया गया है। इनमें थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, गिलास, कटलरी जैसे- कांटे चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे, मिठाई के बक्सों पर लपेटी जाने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट पैकेट की फिल्म, प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे की छड़ें और आइसक्रीम पर लगने वाली स्टिक, क्रीम, कैंडी स्टिक और 100 माइक्रोन से कम के बैनर शामिल हैं।
Single use plastic कई तरह से नुकसानदेह
अगस्त 2021 में अधिसूचित नियम और 2022 के दौरान Single use plastic को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के भारत के प्रयासों के तहत 31 दिसंबर, 2022 तक प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को मौजूदा 75 माइक्रॉन से 120 माइक्रॉन में बदलने के आदेश हैं। सरकार की तरफ से प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए हैं। अधिकारियों की टीम को प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं के अवैध उत्पादन, आयात, वितरण, बिक्री रोकने का काम सौंपा गया है। फिर भी यह सारे प्रयास निष्फल साबित हो रहे हैं।
यहां बतातें चलें कि देश में सालाना 2.4 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जबकि 18 ग्राम प्रति व्यक्ति खपत है। दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर यह खपत 28 ग्राम प्रति व्यक्ति है। भारत में 60 हजार करोड़ रुपए का प्लास्टिक उद्योग है। इसके निर्माण में 88 हजार इकाइयां लगी हैं जबकि प्लास्टिक उद्योग से 10 लाख लोग जुड़े हैं। सालाना एक्सपोर्ट 25 हजार करोड़ रुपये लगभग है। कम माइक्रॉन की प्लास्टिक थैलियों में खाद्य पदार्थ लेने से रासायनिक संक्रमण होने से शरीर में घातक बीमारियां पैदा होती हैं। कहने को तो शासन के निर्देशानुसार महानगरपालिका प्रशासन द्वारा सभी 05 प्रभागों में प्रतिबंधित प्लास्टिक थैली की बिक्री और उपयोग की रोकथाम के लिए महानगरपालिका कर्मियों की कमेटी बनाई गई है, बावजूद प्लास्टिक थैलियों का उपयोग धड़ल्ले से बाजारों में देखा जा रहा है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 तथा मंत्रालय की सूचना के मुताबिक, गुटखा, तंबाकू और पान मसाला के भंडारण, पैकिंग या बिक्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक सामग्री का उपयोग करने वाले पाउच पर प्रतिबंध है। इसके अलावा प्लास्टिक की डंडी, प्लास्टिक के गुब्बारे की डंडी, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी की स्टिक, आइसक्रीम की प्लास्टिक स्टिक, पॉलीस्टायरीन की सजावट के साथ-साथ प्लेट, कांटे, चम्मच, चाकू, चश्मा, पुआल और ट्रे जैसे कटलरी आइटम पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं में प्लास्टिक से बने मिठाई के बॉक्स, प्लास्टिक से बने निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट, प्लास्टिक स्टिरर और प्लास्टिक या पीवीसी बैनर के चारों ओर रैपिंग फिल्म शामिल है, जो 100 माइक्रॉन से कम हैं। भारत सरकार ने सितंबर 2021 में पहले ही 75 माइक्रॉन से कम के पॉलीथीन बैग पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें पहले के 50 माइक्रॉन की सीमा को बढ़ा दिया गया था।
उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध का नहीं दिख रहा असर
उत्तर प्रदेश भारत में सबसे अधिक जिले वाला राज्य है। यहां कुल जिलों की संख्या 75 है, जो कि 18 मंडलों में आते हैं। राज्य की पूर्व से पश्चिम तक लंबाई 650 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई की 240 किलोमीटर है। उत्तर प्रदेश का सबसे पूर्वी जिला बलिया, तो सबसे पश्चिमी जिला शामली है। सबसे उत्तरी जिला सहारनपुर, तो सबसे दक्षिणी जिला सोनभद्र है। उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर खीरी है, जिसका कुल क्षेत्रफल 7,680 वर्ग किलोमीटर है जबकि सबसे छोटा जिला क्षेत्रफल के हिसाब से हापुड़ है, जिसका कुल क्षेत्रफल 660 वर्ग किलोमीटर है। उत्तर प्रदेश में कुल 17 नगर निगम, 437 नगर पंचायत, 350 तहसील, 59,163 ग्राम पंचायत, 05 विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण और 822 सामुदायिक विकास खंड मौजूद हैं।
इन सभी स्थानों पर प्लास्टिक का उपयोग जबर्दस्त तरीके से हो रहा है। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो यहां जुलाई 2018 में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने योगी सरकार के अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की थी। जारी अध्यादेश में हुए प्रावधान के मुताबिक, 50 माइक्रॉन से पतली प्लास्टिक पर प्रतिबंध रहेगा। नियमों के अनुसार, यूपी में पहली बार प्रतिबंधित प्लास्टिक के इस्तेमाल पर सख्त प्रावधान किए गए थे। इसके अंतर्गत एक महीने का कारावास या कम से कम एक हजार और अधिकतम दस हजार रुपये तक जुर्माना लगाने की बात कही गई थी। इसके अलावा प्रतिबंधित प्लास्टिक बैग बेचने, रखने और भंडारण का भी दोषी पाए जाने पर छह महीने की कारावास या कम से कम 10 हजार व अधिकतम 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।
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यहीं नहीं, दुनिया के 25 से ज्यादा देश अपना 1,21,000 मीट्रिक टन कचरा किसी न किसी रूप में भारत भेज देते हैं। इस प्लास्टिक को रीसाइकिल करने के बाद भारत भेजा जाता है। पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय आ गया है कि सरकार को प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए। हमारे देश में 55,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक का कचरा पाकिस्तान और बांग्लादेश से आयात किया जाता है। इसे आयात करने का मकसद रीसाइकिलिंग करना है। इन दोनों देशों के अलावा मिडिल ईस्ट, यूरोप और अमेरिका से भी इस प्रकार का कचरा आता है।
श्रीधर अग्निहोत्री
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