स्टेराॅयड की अधिकता के चलते ब्लैक फंगस की चपेट में आ रहे लोग

जयपुरः राजस्थान में ब्लैक फंगस (म्यूकोर माइकोसिस) के बढ़ते मरीजों के बीच राजधानी के सवाई मानसिंह अस्पताल में गठित एक बोर्ड की ओर से यह खुलासा किया गया है कि राजस्थान के निजी अस्पतालों में तय प्रोटोकॉल के हिसाब से स्टेरॉइड का उपयोग निजी अस्पतालों में किया गया, जो संक्रमण का मुख्य कारण बना है। बोर्ड ने माना है कि कोविड-19 संक्रमण के बाद मरीजों में स्टेरॉयड का काफी उपयोग किया गया, जिसके चलते जिन मरीजों को डायबिटीज नहीं थी, उन्हें भी ब्लैक फंगस ने अपनी चपेट में ले लिया। डायबिटीज भी फंगस का एक मुख्य कारण रहा। राज्य में 95 फीसदी ऐसे मरीज फंगस के संक्रमण की चपेट में आए, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगवाई थी।

राजस्थान में बढ़ते म्यूकोर माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के संक्रमण के बाद राज्य सरकार की ओर से एक बोर्ड का गठन किया गया था। जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के अधीन इस बोर्ड का गठन किया गया था, जिसमें मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चिकित्सक शामिल किए गए थे। बोर्ड की ओर से ब्लैक फंगस संक्रमण को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें माना गया है कि 95 फीसदी ऐसे मरीज ब्लैक फंगस की चपेट में आए हैं, जिन्हें कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगी थी। इसके अलावा स्टेरॉयड के बेतहाशा उपयोग की वजह से भी फंगस के मामले बढ़े है। सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुधीर भंडारी का कहना है कि ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों के बाद सरकार की ओर से गठित बोर्ड ने ब्लैक फंगस के कारणों का विश्लेषण किया है। इनमें सबसे पहले तो यह कारण सामने आया है कि कोविड-19 संक्रमण होने के बाद मरीजों में स्टेरॉयड का काफी उपयोग किया गया, जिसके चलते जिन मरीजों को डायबिटीज नहीं थी, उन्हें भी संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया। इसके अलावा डायबिटीज भी फंगस का एक मुख्य कारण रहा। 95 फीसदी ऐसे मरीज संक्रमण की चपेट में आए, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगवाई थी।

डॉ. भंडारी का कहना है कि एसएमएस अस्पताल में डेडिकेटेड ब्लैक फंगस यूनिट का संचालन किया जा रहा है। यहां अब तक 400 से अधिक मरीज भर्ती हुए हैं, जिनमें से 315 मरीजों की सर्जरी हुई और 35 फीसदी मरीजों की आंखों तक यह संक्रमण पहुंच गया। इनमें से 10 फीसदी मरीजों की आंख बचा ली गई, लेकिन 20 फीसदी मरीजों की आंख निकालनी पड़ी। उन्होंने माना कि तय प्रोटोकॉल के हिसाब से स्टेरॉइड का उपयोग निजी अस्पतालों में नहीं किया गया, जो फंगस के संक्रमण का मुख्य कारण बना।

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भंडारी का कहना है कि बोर्ड ने जब फंगस से जुड़े मामलों की जानकारी ली तो सामने आया कि करीब 99 फीसदी मरीज निजी अस्पतालों से रेफर होकर सरकारी अस्पताल पहुंचे। उन्होंने दावा किया कि जयपुर के सरकारी कोविड-19 सेंटर से ब्लैक फंगस का एक भी मामला सामने नहीं आया। अब मरीजों की टिशू बायोप्सी करवा कर ब्लैक फंगस के कारण ब्लड में क्लॉट और थ्रोम्बोसिस की जानकारी जुटाई जा रही है। भंडारी ने यह भी दावा किया है कि अस्पताल में बाहर के राज्यों से भी मरीज इलाज करवाने पहुंचे हैं, जिनमें से अधिकतर मरीजों ने झोलाछाप चिकित्सकों से इलाज करवाया।