Friday, March 21, 2025
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इस्लामिक कट्टरपंथियों पर बरसे रागिब हुसैन, बोले- किसी भी कानून में कुरान के अपमान पर मौत की सजा नहीं

इस्लामाबाद: काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (Council of Islamic Ideology) के अध्यक्ष डॉ. रागिब हुसैन नईमी (Dr. Ragib Hussain Naeemi) ने पाकिस्तान के कट्टरपंथियों पर बड़ा हमला बोला है। हुसैन नईमी ने कहा है, “कुरान-ए-पाक का अपमान करने पर मौत की सज़ा का प्रावधान किसी कानून में नहीं है, लेकिन धार्मिक तत्व संदिग्धों को मारने के लिए भीड़ द्वारा हत्या का सहारा लेते हैं। यह न केवल गैर-इस्लामिक है बल्कि पाकिस्तान के कानून के भी विपरीत है।”

हर अपराध की अलग सजा

डॉन अखबार के मुताबिक, डॉ. रागिब ने गुरुवार को राजधानी इस्लामाबाद स्थित सीआईआई कार्यालय में मीडिया से कहा, “ईशनिंदा कानून में चार अलग-अलग सजाओं का प्रावधान है। पवित्र कुरान का अपमान करने की सजा आजीवन कारावास है। पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) और उनके साथियों (सहाबा) के परिवार के सदस्यों का अपमान करने की सजा सात साल की कैद है। कादियानियत निषेध अध्यादेश का उल्लंघन करने की सजा तीन साल है। कानून में पवित्र पैगंबर के खिलाफ ईशनिंदा के दोषी पाए गए व्यक्ति के लिए केवल मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है। लेकिन धार्मिक समूहों का मानना ​​है कि इन चारों अपराधों की सजा एक ही है – मौत। ऐसे लोग कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं।” उन्होंने कहा, “धार्मिक संगठन अपनी पसंद और नापसंद के हिसाब से इस्लामी कानूनों में हेरफेर करते हैं। किसी को भी ईशनिंदा के संदिग्ध व्यक्ति को जान से मारने का फतवा जारी करने का अधिकार नहीं है।”

लोगों की भावनाओं से खेलना गलत

उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए जनता की भावनाओं से खेलने के लिए धार्मिक तत्वों की आलोचना की। मीडिया ने उनका ध्यान इस ओर दिलाया कि सीआईआई उन मौलवियों की पहचान करने और उन्हें अलग-थलग करने में विफल रहा है जो भड़काऊ बयान देते हैं या ईशनिंदा पर जनता को भड़काते हैं। इस पर सीआईआई अध्यक्ष ने अपना हालिया अनुभव सुनाया। डॉ. रागीब ने कहा, “मैंने घोषणा की थी कि पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की मौत का फतवा हराम है। इसके तुरंत बाद मुझे 500 से अधिक धमकी भरे संदेश मिले। इनमें से कुछ में अपमानजनक भाषा थी। उन्होंने माना कि धार्मिक समूहों के उदारवादी नेता कट्टरपंथियों से डरते हैं।

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उन्होंने कहा कि हत्या करने या कानून को अपने हाथ में लेने का फतवा जारी करना अवैध, असंवैधानिक और शरीयत के सिद्धांतों के खिलाफ है। शरीयत किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की जान लेने का अधिकार नहीं देती है। समाज में बढ़ती असहिष्णुता पर नाराजगी जताते हुए उन्होंने कहा, “सभी मामलों में यह स्पष्ट है कि ईशनिंदा के दोषी पाए जाने वालों को दंडित करने का अधिकार केवल राज्य को है।”

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