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ऊसर भूमि में भी लहलहाएगी धान की फसल, किसानों को मिलेगा बेहतर मुनाफा

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लखनऊः ऊसर भूमि में धान की सीएसआर 46, 56 और 60 की प्रजातियों को किसान बोएं, तो फसल लहलहाने के साथ ही अच्छी पैदावार देगी। इससे किसानों को फसल से अच्छा मुनाफा भी आएगा। यह जानकारी चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील ने दी।

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उन्होंने बताया कि कानपुर की उसरीली मिट्टी हेतु धान की सीएसआर 46, सीएसआर 56 एवं सीएसआर 60 ज्यादा उपयुक्त प्रजातियां हैं, जो कि लगभग 120 से 135 दिनों के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि ऊसर भूमि में इनकी उत्पादकता क्रमशः 40 कुंतल, 43 कुंतल एवं 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। उन्होंने कहा कि धान की प्रजातियां ऊसर भूमि में आसानी से उगाई जा सकती है। अच्छी भूमियों में भी इनका उत्पादन उत्तम होता है। उन्होंने बताया कि कानपुर में बड़ा क्षेत्रफल ऊसर प्रभावित है। जिसमें धान व अन्य फसलों की उत्पादकता काफी कम है, इस कारण ऐसे खेतों में किसानों को काफी नुकसान होता है।

केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने वरियन निवादा एवं मझियार गांवों में ऊसर सहनशील प्रजातियों की स्वयं खेतों पर पहुंचकर लगवाए। उन्होंने बताया कि धान की ये प्रजातियां ऊसर प्रभावित क्षेत्रों के लिए वरदान साबित होंगी। कृषकों की आय में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी होगी। इस अवसर पर प्रगतिशील कृषक राजू, अमर एवं माया देवी सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

  • शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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