कभी चलाते थे टैक्सी, आज हैं एक सफल ग्रामीण उद्यमी

लखनऊः अगर कुछ करने का जज्बा हो तो रास्ता भी कहीं न कहीं मिल ही जाता है, जो आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देता है। काम कोई बड़ा या छोटा नहीं होता, बस उसे करने के लिए हिम्मत, लगन और मेहनत चाहिए होती है। ये कर के दिखाया है अल्मोड़ा जिले के रानीखेत के रहने वाले पान सिंह परिहार ने। कभी टैक्सी चलाकर अपना गुजारा करने वाले पान सिंह आज एक सफल ग्रामीण उद्यमी हैं। अपनी कड़ी मेहनत, लगन और व्यावसायिक सफलता की बदौलत पान सिंह आज एक सफल ग्रामीण उद्यमी बनकर कई लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं।

शहर छोड़ वापस आए गांव, ऐसे की शुरूआत

अल्मोड़ा जिले में स्थित रानीखेत से 17 किमी दूर मझोली गांव के रहने वाले पान सिंह परिहार एक गरीब परिवार से आते हैं। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए वो टैक्सी चलाते थे, लेकिन आज वह अपनी कड़ी मेहनत, लगन और व्यावसायिक सफलता की बदौलत एक सफल ग्रामीण उद्यमी बनकर मिसाल बन गए हैं। आज पान सिंह एक बहुत ही सफल उद्यमी हैं। वह अपने घर से ही पोल्ट्री फार्म, डेयरी, कृषि, मछली पालन और पॉली हाउस जैसे कई व्यवसाय चलाते हैं। इन कार्यों में उनका परिवार भी पूरा हाथ बंटाता है। आज एक सफल उद्यमी कहलाने वाले पान सिंह ने अपने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कई मुश्किलों का सामना किया है और बड़े कठिनाई वाले दिन भी देखे हैं। बहुत साल पहले रोजी-रोटी की तलाश में पान सिंह ने अपना गांव छोड़कर हल्द्वानी और दिल्ली का रूख किया।

कई साल तक वह टैक्सी चलाकर गुजर-बसर करते रहे। इस तरह वह भी उन बहुत से लोगों में शामिल हो गये, जो काम धंधे के लिए अपना गांव छोड़कर अपनी जड़ों से कटकर शहर जाकर बस जाते हैं। परंतु पान सिंह तो भविष्य निर्माण की आशा के साथ महानगर से वापस अपने गांव जाकर खुद को पुनः स्थापित करना चाहते थे। उनकी ऐसी ही सोच एक दिन उन्हें वापस उनकी जड़ों तक खींच भी लाई। अंततः दस वर्ष पूर्व पान सिंह अपने घर अपने गांव वापस लौट आए। वो लौट तो आए, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि गांव जाकर वो क्या करेंगे। उनके पास अपने भविष्य के लिए कोई योजना नहीं थी। उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि वहां उनकी कमाई का क्या साधन होगा। दिल्ली से लौटते समय उनके हाथों में बस अपनी आखिरी बचत 5 हजार रुपये नकद और 9 हजार 5 सौ रुपए का किसान क्रेडिट कार्ड था। गांव पहुंचकर उन्होंने कोई छोटा-मोटा व्यवसाय करने की सोची। ऐसे में उन्हें मुर्गी पालन करने का विचार आया। उन्होंने कुछ मुर्गी के चूजे खरीदने शुरू किए और उन्हें बेचने के लिए अपने गांव से पंतनगर आना-जाना शुरू कर दिया। यहीं से शुरू हुई उनके संघर्ष की कहानी। यह क्रम अगले करीब 5 महीनों तक चलता रहा। इस समयान्तराल में पान सिंह ने अपने गांव से 130 किमी दूर पंतनगर तक 75 बार आना-जाना किया। हर चक्कर पर उन्हें करीब पांच सौ रुपये का लाभ हो जाता था। कुछ दिनों बाद पान सिंह ने थोड़ी सी पूंजी एकत्र कर ली और अब वह अपने नए व्यवसाय की शुरुआत करने के बारे में सोचने लगे।

ऐसे चढ़ी सफलता की सीढ़ी

पान सिंह ने मुर्गी पालन में ही अपने नए व्यवसाय को शुरू करने का सोचा। इसी के चलते उन्होंने अब ब्रायलर व्यवसाय शुरू किया। शुरूआत में आस-पास और फिर सीधे बाजार में ही उनके ब्रायलर की मांग आने लगी। धीरे-धीरे पान सिंह को अब अपनी सफलता की सुगंध आने लगी, लेकिन पान सिंह इतने पर ही नहीं रुकना चाहते थे। अपने इस व्यवसाय को सफल होता देख उन्होंने दूध का व्यवसाय भी शुरू कर पहली बार सुनियोजित ढंग से अपने व्यवसाय का विस्तार किया। इसके बाद पान सिंह ने कभी पलट कर नहीं देखा। पोल्ट्री और दुग्ध व्यवसाय के अलावा अब उनके पास दो बायोगैस प्लांट हैं और उनको खेती के परिणाम भी बहुत अच्छे मिल रहे हैं। पान सिंह ने इसके बाद मछली पालन व्यवसाय तथा पॉली हाउस प्रोजेक्ट प्रारंभ कर अपनी आर्थिक स्थिति को और अधिक मजबूत किया है।

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अब उनका विचार अपना खुद का एक मिल्क ब्रांड बनाने का है। इसके साथ ही वह दुग्ध व्यवसाय में प्रतिष्ठित ब्रांड आँचल के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं। जिसे वो खुद तकरीबन 80 लीटर दूध हर रोज देते हैं। पिछले 10 वर्षों में 25 लाख रूपये की सकल संपत्ति और 40 हजार से अधिक प्रति माह की आमदनी के साथ पान सिंह ने न केवल खुद को, बल्कि साथ ही उन अनेकों लोगों को यह संदेश दिया है कि अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अपनी जन्मभूमि और अपने गांव में ही रहकर कोई व्यक्ति सफलता के शिखरों को छू सकता है। आज पान सिंह अपने व्यवसाय में उत्तराखण्ड सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ भी ले रहे हैं।