न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी
बता दें कि न्याय की देवी की आंखों पर लगी पट्टी कानून के समक्ष सभी की समानता का सूचक रही है। इसका मतलब यह है कि अदालतें अपने सामने आने वाले सभी शिकायतकर्ताओं और वादियों की संपत्ति, सत्ता, जाति-धर्म, लैंगिक भेदभाव, रंगभेद या किसी अन्य सामाजिक स्थिति के आधार पर फैसला नहीं करती हैं, जबकि तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक है।
जानें नई प्रतिमा के क्या हैं मयाने
नई मूर्ति के दाहिने हाथ में तराजू और बाएं हाथ में संविधान है। इससे पहले न्याय की देवी की पुरानी मूर्ति के बाएं हाथ में तराजू और दाएं हाथ में तलवार थी। नई मूर्ति के वस्त्र में भी बदलाव किया गया है। दरअसल ‘मूर्ति के दाहिने हाथ में न्याय का तराजू इसलिए रखा गया है क्योंकि यह समाज में संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। नई प्रतिमा समान व्यवहार के माध्यम से संतुलित न्याय के संदेश को पुष्ट करती है। यह भी संदेश देती है कि कानून अंधा नहीं है।
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भारत ने ब्रिटिश परंपराओं को छोड़ा पीछे
वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। कुछ समय पहले ही अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानूनों में बदलाव किया गया है। अब भारतीय न्यायपालिका ने ब्रिटिश परंपराओं को भी पीछे छोड़ते हुए नया रूप अपनाना शुरू कर दिया है।
बता दें कि हाल ही में भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानूनों की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने ले ली है। इसके अलावा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) 1 जुलाई 2024 से लागू हो गए हैं। इन नए कानूनों को लागू करने के पीछे का उद्देश्य भारत की न्याय व्यवस्था में सुधार करना और इसे औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त करना है।