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नए जम्मू-कश्मीर में बह रही राष्ट्रवाद और विकास की बयार

 

05 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के माध्यम से जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान के विशेष उपबंध अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य का विभाजन करते हुए दो केन्द्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख का सृजन किया गया। जम्मू-कश्मीर राज्य विधायिका जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केन्द्र शासित राज्य बना दिया गया इसी के साथ ही राज्य में लगभग सात दशक से चल रहा दो निशान, दो विधान और दो प्रधान की व्यवस्था खत्म हो गई। राज्य में हुए इस बदलाव पर वहां सक्रिय तमाम राजनैतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दिखाई। राज्य में बारी-बारी से सत्ता की मलाई काट रहे तीन राजनीतिक परिवारों ने पूरे जोर-शोर से विरोध का झंडा उठा लिया, जिसके कारण इनके समर्थकों के साथ-साथ इनसे खाद पानी पा रहे आतंकवादियों ने भी राज्य में हिंसा, आतंक और अराजकता फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन दूसरी ओर केन्द्र सरकार को इनके मंसूबों का पूरा आभास था, जिसके लिए व्यापक स्तर पर तैयारी की गई थी।

प्रारम्भिक दौर में विरोधियों की एकजुटता को देखकर तो किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि केन्द्र सरकार के इस निर्णय को लोग सहजता से स्वीकार करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री की कुशल कूटनीति और प्रशासनिक दृढ़ता ने कश्मीरियों को धीरे-धीरे सच का अहसास करा दिया, जिसका व्यापक परिणाम मात्र चार वर्ष में दिखने लगा है। अब इस राज्य में दो धाराएं राष्ट्रवाद और विकासवाद एक साथ तेजी से विकसित हो रही हैं। कभी कश्मीर में तिरंगा फहराना राष्ट्रद्रोह से कम नहीं होता था, लेकिन 370 हटने के बाद तो इस राज्य में राष्ट्रीय पर्वों पर मांग के सापेक्ष हर वर्ष तिरंगे कम पड़ने लगे हैं। 15 अगस्त 2023 के तमाम दृश्य यह बता रहे हैं कि लोगों में तिरंगा फहराने की होड़ है। एक ओर बच्चे, युवा, बुजुर्ग और महिलाएं तो दूसरी ओर कभी आतंक के पर्याय रहे तमाम नामधारी चेहरे या फिर आतकंवादियों के परिजन शान से तिरंगा फहराते हुए दहशतगर्दों से मुख्यधारा में लौटने की अपील करते नजर आए। यह स्थिति तब है जब कि “आजादी के अमृत महोत्सव’’ के परिप्रेक्ष्य में चलाए जा रहे ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पर राज्य के प्रमुख राजनैतिक दल टिप्पणी करते हुए घूम रहे थे कि घर-घर तिरंगा नहीं, यहां तिरंगा फहराने वाले हाथ दिखाई नहीं पड़ेंगे।

लाल चौक का ऐतिहासिक दिन

15 अगस्त 2023 की पूर्व संध्या पर श्रीनगर के लाल चौक के ऐतिहासिक घंटाघर को तिरंगे की रोशनी से सजाया गया। इसके शीर्ष पर शान से तिरंगा झंडा फहरा रहा था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पुनरुद्धार के बाद इस ऐतिहासिक घंटाघर का उद्घाटन किया। कभी आतंक के साए में रहने वाले इस घंटाघर पर खौफ का साया तक नहीं दिखा और आम जनजीवन व गतिविधियां सामान्य थीं। स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त तो हाल के वर्षों का ऐतिहासिक दिन माना जा रहा है क्योंकि उस दिन लाल चौक में घंटाघर के नीचे पूर्व आतंकी कमांडर सैफुल्लाह फारूक ने अपने साथियों संग भारत का तिरंगा राष्ट्र ध्वज फहराया। राष्ट्रध्वज फहराने और राष्ट्रगान के बाद मीडिया से संक्षिप्त बातचीत में सैफुल्ला फारुक ने कहा कि मैं आज यहां खड़े होकर सभी आतंकियों और अलगाववादियों से मुख्यधारा में लौटने की अपील करता हूं। आज यहां जो माहौल है, वैसा पहले कभी नहीं था। चाहे स्थानीय आतंकी हैं या फिर पाकिस्तान से आए आतंकी हैं, जो भी यहां आतंक फैला रहे हैं, उन्हें मैं एक ही बात कहूंगा कि यह 1965 और 1971 का हिन्दुस्तान नही है, यह 2023 का हिन्दुस्तान है। स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कुख्यात आतंकी जावेद मट्टू, जो कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों की सूची में शीर्ष पर है, के भाई रईस मट्टू ने सोपोर स्थित अपने आवास की बालकनी में खड़े होकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। रईस मट्टू का यह वीडियो सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रहा है। वीडियो में रईस ने कहा कि मैंने दिल से अपनी मर्जी से तिरंगा लहराया, मेरे ऊपर किसी का कोई दबाव नहीं है। अपने वीडियों में रईस ने कहा कि मैं लोगों को पैगाम दे रहा हूं कि सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा, हम बुलबुले हैं इसके ये गुलिस्तां हमारा। उन्होंने कहा कि पहली बार 14 अगस्त को दुकान पर बैठा हूं। पहले इस समय 2-3 दिन के लिए दुकानें बंद हो जाया करती थी। यहां के राजनैतिक दल लोगों के साथ छल कर रहे थे। अपने भाई के लिए कहा कि वह 2009 में आतंकवादी बन गया, उसके बाद हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता है लेकिन अगर वह जिन्दा है तो मैं उससे वापस आने का आग्रह करता हूं। रईस मट्टू ने कहा कि स्थिति बदल गई है, अब पाकिस्तान कुछ नही कर सकता है। हम हिन्दुस्तानी हैं और रहेंगे।

हर घर तिरंगा अभियान के अन्तर्गत किश्तवाड़ जिले में एक ऐसे परिवार ने तिरंगा फहराया, जिनका बेटा मुदस्सिर 22 अप्रैल 2018 से प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का सक्रिय आतंकवादी है और पुलिस ने उस पर लाखों रुपये का ईनाम भी घोषित कर रखा है। उसके परिवार ने अपने घर में तिरंगा लगाया। जनपद मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर तंडर गांव में आतंकी मुदस्सिर के परिजनों ने तिरंगे और देश के प्रति अपना प्रेम जाहिर किया। परिवार ने अपनी अपील में कहा कि उनके बेटे को मुख्यधारा में वापस लाया जाए और बेटे से भी अपील किया कि वह जहां पर भी है, वापस आ जाए। परिवार ने कहा कि हम भारतीय हैं इसलिए तिरंगा लगा रहे हैं। किश्तवाड़ जिले के ही सक्रिय आतंकवादी मोहम्मद अमीन उर्फ जहांगीर सरूरी के परिवार ने भी अपने घर पर तिरंगा लहराया। जहांगीर सरूरी की बात करें तो वह करीब तीन दशकों से आतंकी संगठन में सक्रिय है। उस पर पुलिस ने लाखों का ईनाम भी रखा है। उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लगातार अभियान चला रहे हैं। सरुरी के परिवार ने तिरंगा लहराते हुए अमीन से अपील किया कि वह मुख्यधारा में वापस आ जाए और आतंक का रास्ता छोड़ दे। सरूरी के बेटे आदिल ने कहा कि वह अपने पिता को बहुत याद करता है और अपील करता है कि वो घर लौट आएं। आदिल ने बताया कि वह अभी बारहवीं कक्षा में पढ़ता है। आगे चल कर वह डॉक्टर बनना चाहता है। डोडा जिले के खूंखार आतंकवादी इरशाद अहमद के भाई वशीर अहमद ने अपने घर पर तिरंगा फहराया। वशीर अहमद ने अपने परिवार के सभी बच्चों के साथ तिरंगा फहराते हुए राष्ट्रगान गाया और कहा कि उसे भी अपने देश से प्यार है और वह चाहता है कि भाई जहां कहीं भी हो, वह मुख्यधारा में लौट आए। डोडा जिले के कई परिवार हैं, जिनके बच्चे सक्रिय आतंकवादी हैं और अधिकांश पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है और वहीं से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। लश्कर कमांडर हारुन ऊर्फ खुबैब, नजीर गुज्जर ऊर्फ अबू मंजिल,सलीम मलिक समेत तमाम आतंकियों के परिवारों ने तिरंगा उठाकर देशभक्ति की आवाज बुलंद की।

स्वतंत्रता दिवस पर कश्मीर पर सबसे चौंकाने वाली प्रतिक्रिया शेहला रशीद की आई। जेएनयू की उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) की सदस्य रह चुकीं शेहला ने आतंकी जावेद मट्टू के भाई रईस मट्टू के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि इसे स्वीकार करने में भले ही परेशानी हो लेकिन सच यही है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार और जम्मू-कश्मीर के एलजी प्रशासन के नेतृत्व में कश्मीर में मानवाधिकार में रिकाॅर्ड सुधार हुआ है। सरकार की स्पष्ट नीतियों ने कई लोगों की जिंदगी बचाने में मदद की है और कश्मीरियों के पहचान के संकट को खत्म किया है, यही मेरा विचार है।

शेहला रशीद लगभग एक दशक से बहुत ही विवादास्पद रही है। वह कुछ दिन तक नेशनल कांफ्रेंस और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स लिवरेशन फ्रंट जैसे राजनीतिक दलों से भी जुड़ी रही है, चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिली तो सन्यास ले लिया। आरएसएस और भाजपा की मुखर आलोचक रही शेहला अनुच्छेद-370 की संवैधानिकता को लेकर सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर करने वालो में भी शामिल रहीं। उन्होंने तमाम सार्वजनिक मंचों पर भी मोदी सरकार के इस फैसले की आलोचना की थी। यद्यपि 370 पर उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी। 18 अगस्त 2019 को उनके एक ट्वीट में सेना पर सवाल खड़े करते हुए कश्मीरियों पर अत्याचार के आरोप लगाए गए थे,

जिस पर दिल्ली पुलिस ने शेहला के विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया था लेकिन अब उनके सुर बदल गए हैं और जम्मू-कश्मीर में हो रहे अभूतपूर्व बदलाव को वह स्वीकार कर रही हैं। जम्मू-कश्मीर में आम लोगों ने भी स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जो राज्य में बढ़ते राष्ट्रवाद की एक नई तस्वीर है। कहा जा रहा है कि कई दशकों बाद बड़ी संख्या में लोग स्वाधीनता दिवस समारोह में भयमुक्त होकर शामिल हुए। श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में 20 हजार लोग लोग परेड देखने पहुंचे। 2003 के बाद से स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए स्टेडियम में नागरिकों की यह सबसे बड़ी संख्या थी।

आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति रही सफल

कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटने के बाद आतंकवाद पर चौतरफा प्रहार हो रहा है। सरकार किसी आतंकी घटना के बाद उसके तह में जाकर उस आतंकी सिस्टम को खत्म करने की कार्यवाही कर रही है, जिसका असर भी दिख रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 05 अगस्त 2019 से 31 जुलाई 2023 तक राज्य में 683 आतंकवादी मारे गए हैं, जबकि 148 सुरक्षाबल शहीद हुए हैं। इस अवधि में 127 आम नागरिको की भी जान गई। कश्मीर में आए दिन होने वाले बाजार बंद और हड़ताल के आह्वान पर अब विराम लग गया है।

भारत विरोधी प्रदर्शन के साथ पत्थरबाजी जो जुमे की नमाज के बाद अनिवार्य सी हो गई थी, वह अब बंद है। 2023 में अब तक पत्थरबाजी की एक भी घटना सामने नही आई है। स्कूल-कॉलेज में आए दिन की तालाबंदी खत्म हो गई और शिक्षा सत्र नियमित हो चले हैं। आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए प्रदेश सरकार ने आतंकी सम्बंधों में 52 सरकारी अफसरों को बर्खास्त कर दिया है।

इनमें सैयद सलाहुद्दीन के बेटों अब्दुल मुईद, शाहिद युसूफ एवं अहमद शकील, हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के दामाद के बेटे अनीस उल इस्लाम, जमाते इस्लामी के सदस्य व सक्रिय आतंकी रहे कश्मीर विवि के प्रोफेसर अलताफ हुसैन पंडित, खूंखार आतंकी फारुख अहमद शाह ऊर्फ बिट्टा कराटे की पत्नी, शोपियां के आशिया तथा नीलोफर की स्वाभाविक मौत को रेप और हत्या की फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ. निगहत शाहिन चिल्लू व डॉ. बिलाल अहमद दलाल जैसे लोगों को सेवाओं से बाहर कर दिया गया। यह अभियान अभी रुका नही हैं और तमाम कार्मिकों की गोपनीय जांच अभी चल रही है।

मात्र चार वर्ष में क्या कुछ नही बदला इस कश्मीर में, जिस कश्मीर में जाने के नाम पर विदेशी कांप उठते थे, उस कश्मीर में सरकार ने जी20 समूह की बैठक करा दी। जी20 सम्मेलन के तहत भारत ने टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की तीसरी बैठक श्रीनगर में आयोजित की, जिसका विरोध पाकिस्तान ने पूरी ताकत से किया लेकिन उसका कोई असर नहीं पड़ा। बड़े देशों में चीन ने ही इस बैठक में भाग नही लिया, जबकि अमेरिका, रुस, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, साउथ अफ्रीका जैसे ताकतवर 17 देशों के 60 प्रतिनिधि शामिल हुए।

जिसके कारण अब पूरी दुनिया में कश्मीर के सुरक्षित होने का संदेश फैला। बताया जा रहा है कि 37 वर्ष बाद कश्मीर में कोई अंतर्राष्ट्रीय आयोजन किया गया है। 370 हटने के बाद पटरी पर लौटती जिंदगी से जुड़ी एक और उल्लेखनीय घटना 27 जुलाई को देखने को मिली। पैगम्बर मुहम्मद साहब के पोते हजरत इमाम हुसैन की जय-जयकार के बीच सीना ठोंक कर हजरत इमाम हुसैन को याद करते हुए 8वीं मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। शिया समुदाय का यह जुलूस श्रीनगर के गुरु बाजार से अपने पारम्परिक मार्ग से होकर डलगेट पर जाकर समाप्त हुआ। राज्य में 33 वर्ष पूर्व 1988 में ही शियाओं के इस जुलूस पर रोक लगा दी गई थी।

विकास की बयार

जम्मू-कश्मीर में अब विकास की हवा चल रही है। अनुच्छेद-370 के हटने के बाद 188 भारी निवेशकों ने इस राज्य में उद्योग लगाने के लिए भूमि क्रय की है। मार्च 2023 में इस राज्य में पहला विदेशी निवेश आया है, जो 500 करोड़ का है। यह प्रोजक्ट संयुक्त अरब अमीरात के एम.आर ग्रुप का है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर कश्मीर में 10 हजार युवाओं को नौकरियां मिल सकेंगी। कश्मीर चौंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष जावीद अहमद बट कहते हैं कि सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाने की तैयारी कर रही है।

उम्मीद है कि उसे सफलता भी मिलेगी, जो इस राज्य के युवाओं के लिए अच्छी बात होगी। कश्मीर के पर्यटन उद्योग को मानों पंख लग गए हैं। हर वर्ष पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। पिछले तीन साल के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 2021 में कुल 1.13 करोड़, 2022 में 1.88 करोड़ और 2023 में जून तक 1.27 करोड़ लोग यहां आ चुके हैं। 2023 के आंकड़ों में 17 हजार विदेशी सैलानी भी शामिल हैं। 2023 की समाप्ति तक यह आंकड़ा 2.20 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य के विकास में अवरोधक या फिर अप्रासंगिक हो चुके 200 से अधिक राज्य कानून निरस्त कर दिए गए और 890 केन्द्रीय कानून लागू किए गए। इसके अतिरिक्त 100 से अधिक कानून संशोधित किए गए।

जम्मू-कश्मीर राज्य में दो एम्स खोलने की स्वीकृति दी गई है, जिसमें एक जम्मू और दूसरा कश्मीर में होगा। यह कार्य प्रधानमंत्री के विकास पैकेज से कराया जाना है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि अनुच्छेद-370 हटने के बाद राज्य में 30 हजार नौकरियां दी गई है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास रहने वालों के लिए सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में 03 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया गया है। इसी प्रकार लोकसभा में जुलाई 23 में जम्मू-कश्मीर अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 2023 पारित करके पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया, जिससे वहां रह रही पहाड़ी, गद्दा, ब्राम्हणकोल और बाल्मीक वर्ग को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया।

जम्मू-कश्मीर में एक ओर आतंकवाद पर अंकुश लग रहा है, तो दूसरी ओर विकास के नए आयाम बन रहे हैं लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि सत्ता का सुख ले चुके राजनैतिक परिवार अभी भी राज्य में 370 के बहाली की उम्मीद पाले हुए हैं। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी भले ही राजनीति में एक-दूसरे के धुर-विरोधी हो लेकिन अब वह इस मुद्दे पर एक साथ आ गए हैं। नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला को राज्य में कही विकास नहीं दिख रहा है, वह अभी भी पाकिस्तान से बातचीत करके हल निकालने की रट लगा रहे हैं। दरअसल, दोनों दलों को पता है कि उनका स्थानीय अस्तित्व अब समाप्ति की ओर है लेकिन राजनीति में बने रहने के लिए कुछ तो करना है, ऐसे में अनुच्छेद-370 की बहाली की मांग करने के अलावा अन्य कोई विकल्प उनके सामने नहीं है। हालांकि, इस नारे के साथ वह कब तक अपने अस्तित्व को बचाए रखने का प्रयास करेंगे, यह सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ द्वारा की जा रही सुनवाई के निर्णय पर निर्भर करेगा।

हरि मंगल- 

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