नई दिल्लीः इटली के प्रसिद्ध शहर कैसिनो में भारतीय सैनिकों की बहादुरी और बलिदान की दास्तां एक बार फिर ताजा हो गई जब यहां भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने भारतीय सेना स्मारक का उद्घाटन किया। यह भारत के निडर सैनिकों और उनके सर्वोच्च बलिदान की याद में बनाया गया है। इसके बाद उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शहीद होने वाले 5,782 भारतीय सैनिकों को राष्ट्रमंडल कब्रिस्तान में पुष्पांजलि भी अर्पित की जो 77 साल बाद ऐतिहासिक क्षण रहा।
जनरल एमएम नरवणे दो दिवसीय दौरे पर 07 जुलाई को इटली पहुंचे। इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रणनीतिक और रक्षा सहयोग को और मजबूत करना है। जनरल नरवणे ने इटली के रक्षा मंत्री लोरेंजो गुरिनी से मुलाकात की और भारत-इटली रक्षा सहयोग को मजबूत करने पर विचारों का आदान-प्रदान किया। उन्होंने इतालवी सेना के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पिएत्रो सेरिनो के साथ बातचीत की और संयुक्त सैन्य सहयोग के पहलुओं पर चर्चा की। जनरल नरवणे रोम के सेचिंगोला में इतालवी सेना के काउंटर आईईडी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भी गए जहां उन्हें इसके बारे में जानकारी दी गई।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मोंटे कैसिनो की लड़ाई में 5,782 भारतीय सैनिकों ने इटली को फासीवादी ताकतों से बचाने के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी जिनके पार्थिव शरीर आज भी इटली में 06 प्रमुख शहरों के 40 कब्रिस्तानों में दफन हैं। इटली को आजाद कराने के लिए दिए गए 20 में से 06 विक्टोरिया क्रॉस भारतीय सैनिकों को मिले थे। सितम्बर, 1943 और अप्रैल, 1945 के बीच लगभग 50 हजार भारतीयों को इटली की मुक्ति के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इन्हीं भारतीय सैनिकों की याद में इटली के प्रसिद्ध शहर कैसिनो में भारतीय सेना स्मारक बनाया गया है। सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने स्मारक का उद्घाटन करने के बाद राष्ट्रमंडल कब्रिस्तान में पुष्पांजलि भी अर्पित की जो 77 साल बाद ऐतिहासिक क्षण रहा।
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 से 1945 के बीच मुक्त कराये गए इतालवी कम्यूनों के बीच भारतीय सैनिकों के बलिदान और उनकी वीर गाथाएं अभी भी चर्चा में हैं। भारत के शहीदों का उल्लेख यूके स्थित कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन बुकलेट में किया गया है। इटालियन अभियान के दौरान ब्रिटिश और अमेरिका के बाद भारत का योगदान तीसरा सबसे बड़ा योगदान था। भारतीय रक्षा मंत्रालय की सूची के अनुसार 19 सितम्बर, 1943 को नेपल्स के दक्षिण में टारंटो में लगभग 50 हजार भारतीय सैनिक पहली पार्टी के रूप में उतरे थे। इनमें से ज्यादातर 19 से 22 वर्ष की आयु के बीच उम्र के लिहाज से इतने छोटे थे कि वे खून, क्रूरता और मौत का खेल देखने लायक भी नहीं थे। इसके बावजूद इन्होंने ‘इटली की मुक्ति’ के लिए लड़ाई लड़ी।