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निर्जला एकादशी का व्रत करने से होती है विष्णु लोक की प्राप्ति, जानें इसका पौराणिक महत्व

नई दिल्लीः वर्ष भर की सबसे कठिन एवं पुण्यफलदायी एकादशी जिसे निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं, उसका मान वैष्णव व गृहस्थ दोनों के लिए 10 जून शुक्रवार को है। व्रत का पारण 11 जून शनिवार को प्रातः 5.14 बजे के बाद तिल से किया जाएगा। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं। शास्त्र में इसे मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत बताया गया है। ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत के नियम अन्य एकादशी के मुकाबले ज्यादा कठिन होते हैं, परन्तु यह व्रत जितना कठिन है उतना ही पुण्यफलदायक भी है। इसे पाण्डव एकादशी या भीमसेनी एकादशी नाम से भी जाना जाता है।

निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पाण्डव के यहाँ सभी सदस्य एकादशी व्रत करते थे, लेकिन भीम को उपवास रहने में दिक्कत होती थी। जिससे वे व्रत नहीं कर पाते थे। इस बात से भीम बहुत दुखी होते थे। इस समस्या को लेकर भीम महर्षि वेदव्यास जी के पास गए। तब वेदव्यास जी ने कहा- अगर आप मोक्ष पाना चाहते हैं तो एकादशी का व्रत आवश्यक है। यदि आप हर माह की दो एकादशी व्रत नहीं कर सकते तो ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत निर्जला रहें। इस एकादशी को कर लेने से ही आपको चौबीस एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा। भीम इसके लिए तैयार हो गए और निर्जला एकादशी व्रत करने लगे। तभी से इस एकादशी को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

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निर्जला एकादशी की पूजा की विधि
निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यक्रिया व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की सविधि पूजा करनी चाहिए। साथ ही ॐ नमो भगवते वासुदेवायʼ इस मंत्र का जप, व्रत कथा का श्रवण, हवन तथा कीर्तन-भजन आदि अवश्य करना चाहिए। अगले दिन प्रातः सूर्योदय के बाद ब्राह्मण भोजन कराने के पश्चात् पारण करना चाहिए। एकादशी के दिन से द्वादशी के दिन पारण तक अन्न और जल का निषेध माना गया है। निर्जला एकादशी व्रत करने से ज्ञाताज्ञात समस्त पापों का नाश होता है तथा मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

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