Saturday, October 12, 2024
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Homeअन्यज्ञान अमृतदेवलोक का महाप्रसाद हैं ‘माँ गंगा’

देवलोक का महाप्रसाद हैं ‘माँ गंगा’

भारतीय समाज में माँ ’गंगा’ के प्रति जन आस्था कितनी गहरी है, इसे कोरे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। इसीलिए हम भारतीय हर प्रमुख पर्व-त्यौहार पर गंगा में डुबकी लगाते हैं। लोक आस्था के अनुसार जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक माना जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के पावन दिन सूर्यवंशी राजा भगीरथ का कठोर तप सार्थक हुआ था और पतित पावनी, पापनाशनी, पुण्यसलिला माँ गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से प्रवाहित होती हुई धराधाम पर अवतरित हुई थीं। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि गंगा का तत्वदर्शन जीवन में उतारने से दस महापातक सहज ही छूट जाते हैं। यह दस महापातक हैं-चोरी, झूठ बोलना, अनैतिक हिंसा, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष, चुगली, परनिंदा, परस्त्री गमन और नास्तिक बुद्धि। इसलिए इस पर्व को ‘गंगा दशहरा’ कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में जिस तरह ‘संस्कृत’ को “देववाणी“ की मान्यता प्राप्त है, उसी प्रकार गंगा को “देवनदी“ की। इसके तटों पर ही हमारी सनातन सभ्यता व संस्कृति पुष्पित पल्लवित हुई है।

ऋग्वेद, अथर्ववेद, रामायण, महाभारत, उपनिषद, ब्राह्मण तथा पुराण ग्रंथों में मोक्ष प्रदायिनी गंगा मइया का विस्तृत यशोगान मिलता है। हिंदू सभ्यता और संस्कृति की सबसे अनमोल धरोहर हैं माँ गंगा। महान गंगा के तटों पर ही रामायण और महाभारत जैसी दिव्य सभ्यताओं का उद्भव और विकास हुआ था, जिसने भारत को ‘विश्वगुरु’ का दर्जा दिलाया था। वेद-पुराण, श्रुति, उपनिषद, ब्राह्मण व आरण्यक जैसे ज्ञान के अनमोल खजाने मां गंगा की दिव्य गोद में ही सृजित हुए। पावन गंगा के तटों पर ही आरण्यक व आश्रम विकसित कर हमारे महान तत्वदर्शी ऋषियों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों के द्वारा नदियों, पहाड़ों, जंगलों व पशु-पक्षियों सहित समूचे जीव जगत के साथ सह अस्तित्व की अद्भुत अवधारणा विकसित की थी। सही मायने में गंगा केवल एक नदी नहीं अपितु भारत की सांस्कृतिक महारेखा है, जिसके चारों ओर हमारा भारत जीता है।

हमारी मान्यता है कि कलिमलहारिणी गंगा मैया के निर्मल जल में स्नान से हमारे सारे पाप धुल जाते हैं। भारत के सनातनी हिन्दुओं की प्रगाढ़ आस्था है कि जीवन के अंतिम क्षणों में यदि मुख में दो बूँद गंगाजल डाल दिया जाए तो बैकुंठ (मोक्ष) मिल जाता है, इसीलिए हमारे मनीषियों ने गंगा को भारत की सुषुम्ना नाड़ी की संज्ञा दी है। स्वामी विवेकानंद का कहना है कि गंगा सिर्फ हमारी राष्ट्रीय नदी ही नहीं है वरन यह हमारी माँ भी है, जो न केवल देश की 40 प्रतिशत आबादी का पेट भरती है, वरन हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में भी पिरोती है, लेकिन अगर मां ही बुरी तरह अस्वस्थ हो जाए तो !!! समझना होगा कि माँ गंगा हमारे लिए देवलोक का वह महाप्रसाद है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वंशज राजा भगीरथ के महापुरुषार्थ से हमें प्राप्त हुआ था।

गहन धार्मिक आस्था और बहुआयामी उपयोगिता के बावजूद हम कलियुगी संतानों के पापपूर्ण कृत्यों के चलते मां गंगा आज प्रदूषण की मार से बुरी तरह कराह रही है। हमारी क्रूरता, निष्ठुरता व अमानवीय व्यवहार के कारण जीवनदायनी माँ गंगा की जीवनी शक्ति लगातार छीजती जा रही है। बड़े बड़े बांधों द्वारा गंगा के अविरल प्रवाह को बाधित किये जाने के कारण ही नहीं, गंगा तटों पर बने कल कारखानों से छोड़े जाने वाले बेहिसाब जहरीले रासायनिक कचरे व मल-मूत्र को अपने उदर में समाहित करते-करते अमृत देने वाली देव सरिता की वर्तमान दुर्गति किसी भी भावनाशील सनातनधर्मी के लिए अत्यंत कष्टपूर्ण और राष्ट्रीय शर्म का विषय होना चाहिए।

लॉकडाउन में खिलखिला उठी थीं माँ गंगा

कहते हैं न कि प्रकृति खुद सर्वोपरि चिकित्सक है। बीते दिनों समूची दुनिया को हिला डालने वाली कोरोना महामारी के प्रथम चरण के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान उद्योगों, परिवहन प्रणाली पर ब्रेक लगने से न केवल माँ प्रकृति खिलखिला उठी थी, अपितु लम्बे अरसे से प्रदूषण की मार से बेजार माँ गंगा का पावन जल भी ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाने से खासा स्वच्छ हो गया था। कल-कारखानों व टेनरियों का गंदा पानी गंगा में न गिरने के कारण ऋषिकेश व हरिद्वार ही नहीं कानपुर, प्रयाग, काशी से लेकर पटना तक सभी जगह गंगाजल की शुद्धता पहले के मुकाबले काफी बढ़ गयी थी। गंगा के तटों पर मछलियां डोलती नजर आ रही थीं।

गंगा की सहायक नदियों की जलधाराएं भी काफी साफ हो गयी थीं। सूत्र रूप में कहें तो कोरोना आपत्तिकाल का प्रथम चरण मोक्षदायिनी गंगा के लिए वरदान साबित हुआ था। साधु-संत ही नहीं, पर्यावरणविदों ने भी गंगा व इसकी अन्य सहायक नदियों की स्वच्छता व निर्मलता को देखकर खासा आश्चर्य जताया था। कोरोना काल में गंगा स्वच्छता पर आईआईटी बीएचयू केमिकल इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर पी. के मिश्रा द्वारा की गयी यह टिप्पणी वाकई काबिलेगौर है कि गंगा को साफ करने की कोशिश में सालों से अलग-अलग सरकारों ने अनेकानेक योजनाएं और समितियां बनायीं और करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन ऐसे नतीजे कभी नहीं दिखे जो लॉकडाउन के दौरान अपने आप ही सामने आ गये।

लॉकडाउन के दौरान गंगा के पानी में 40 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला। समझना होगा कि कोरोना आपदा एक इशारा था, उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का, जिसने हमारा एवं इस प्रकृति का सृजन किया है। उस भयावह दंश ने हमें यह सबक दिया है कि प्रकृति से खिलवाड़ बहुत हो चुका, अब हमें चेत जाना चाहिए वर्ना भयंकर परिणाम भोगने से बच नही सकेंगे।अठारहवीं सदी के उतरार्द्ध व उन्नीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में पनपे जड़ के साथ जड़ जैसा व्यवहार के भोंडे तत्वदर्शन से विकसित दोहन और शोषण की नीति के फलस्वरूप घोर लालची सोच ने ही आज हमें दुर्गति के इस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है कि सुविधाओं और विलासिताओं के अंबार के बीच हम जीवन और सेहत के संकट से बुरी तरह जूझ रहे हैं। अब हमें मिलकर यह भूल सुधारनी होगी। यह वक्त का तकाजा भी है और उज्जवल भविष्य की राह भी।

बेहतर हुई गंगा में जलीय जीवों की स्थिति

गंगा में जलीय जीवों की बढ़ती संख्या और नए प्रजनन के सबूत यहां जैव विविधता में सुधार के संकेत हैं। जाहिर है कि इन जलीय जीवों को गंगा में मिल रहा पुनर्जीवन नदी के भी स्वस्थ होने का इशारा दे रहा है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में नमामि गंगे परियोजना को देख रहीं वरिष्ठ वैज्ञानिक रुचि बडोला कहती हैं कि गंगा के पानी में जैसा प्रदूषण पूर्व में दिखाई देता था, अब वह हालात नहीं हैं। पानी की स्वच्छता देखने से ही नजर आ रही है। वह कहती हैं कि गंगा की स्वच्छता और जलीय जीवों को लेकर लोगों में आज पहले के मुकाबले बेहद ज्यादा जागरूकता भी आ चुकी है। नमामि गंगे के जरिए वैसे तो कई प्रयास हो रहे हैं, लेकिन जलीय जीवों की स्थिति को बेहतर करने के लिए भी विशेष रूप से वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। अच्छी खबर यह है कि अब वैज्ञानिकों को कई जगहों पर जलीय जीवों के प्रजनन के सबूत मिले हैं साथ ही कई जगहों पर गांगेय डॉल्फिन भी दिखाई दी है। जरूरत है कि लगातार गंगा की स्वच्छता को लेकर ऐसे ही कार्यों को आगे बढ़ाया जाए ताकि गंगा में जलीय जीवों के लिए और बेहतर स्थिति पैदा की जा सके।

उल्लेखनीय हैं ‘नमामि गंगे’ की उपलब्धियां: शेखावत

Mother Ganga is the great Prasad of Devlok

केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का कहना है कि बीते पांच सालों में गंगा सफाई की दिशा में उल्लेखनीय काम हुआ है। भारत सरकार की नमामि गंगे परियोजना की विफलता के विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए वे कहते हैं कि 1984 से शुरू हुई गंगा स्वच्छता के शुरुआती कदमों से लेकर 2014 तक करीब 30 वर्षों में चार हजार करोड़ रुपये खर्च से गंगा की जितनी जलमल शोधन क्षमता विकसित हुई, उससे काफी अधिक नमामि गंगे परियोजना के तहत 2014 से 2022 तक आठ वर्ष के दौरान विकसित की गयी और 2014 से 2022 के मध्य जितनी जलमल शोधन क्षमता सृजित हुई, उतनी क्षमता केवल एक साल में 2022-23 के दौरान विकसित हुई है। बकौल शेखावत, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2023 तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल मंजूर परियोजनाओं में से अब तक 58 प्रतिशत पूरी हो चुकी हैं।

केंद्र सरकार की ‘नमामि गंगे परियोजना’ के सात मुख्य अंगों में सीवरेज उपचार अवसंरचना, रिवर-फ्रंट डेवलपमेंट, नदी-सतह की सफाई, जैव विविधता, वनीकरण, जन जागरण, औद्योगिक प्रवाह निगरानी और गंगा ग्राम शामिल हैं। परियोजना के सुचारू कार्यान्वयन के लिए इन्हें तीन चरणों में बांटा गया है। प्रथम चरण में तात्कालिक प्रभाव से गंगा किनारे के गाँवों को शौच मुक्त किया जा चुका है।

दूसरे चरण में पांच वर्षों की समय सीमा में पूरी की जाने वाली गतिविधियों के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में 54 सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी 14 जिलों में नये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शुरू करने जा रही है। प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में निर्माणाधीन 62 एसटीपी भी जल्द ही तैयार हो कर गंगा के साथ ही अन्य नदियों की स्वच्छता अभियान से जुड़ जाएंगे।

इन निर्माणाधीन 62 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 1522.16 एमएलडी होगी। इन नए ट्रीटमेंट प्लांटों के शुरू होने से राज्य में एसटीपी से लैस जिलों की कुल संख्या यूपी में 41 हो जाएगी। फिलहाल उत्तर प्रदेश में कुल 104 एसटीपी संचालित हो रहे हैं, जिनकी कुल क्षमता 3298.84 एमएलडी है। इसी क्रम में 265 गंगा घाटों/श्मशान घाटों और कुंडों/तालाबों के निर्माण,आधुनिकीकरण और जीर्णोद्धार के लिए 67 घाट/श्मशान घाट परियोजनाएं शुरू की गयी हैं।

तीसरे चरण में 10 वर्षों के भीतर लागू होने वाली दीर्घकालिक गतिविधियों को रखा गया है। इसके तहत विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इनमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रेल मंत्रालय, नौवहन मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, युवा मामले मंत्रालय और खेल, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय व कृषि मंत्रालय शामिल हैं। इनमें पर्यटन मंत्रालय गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में पर्यटन सर्किट के विकास के लिये एक विस्तृत और दीर्घकालिक योजना पर काम कर रहा है, तो वहीं कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय गंगा के तटवर्ती इलाकों में ऑर्गेनिक फार्मिंग और नेचुरल फार्मिंग कॉरिडोर के निर्माण के साथ पर्यावरण हितैषी कृषि को बढ़ावा दे रहा है।

आवासन एवं शहरी मामले मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और अमृत 2.0 (कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन) के अंतर्गत शहरी नालों की मैपिंग तथा गंगा शहरों में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दे रहा है और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय गंगा बेल्ट में वनीकरण गतिविधियों और ’प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ को बढ़ावा देने की एक व्यापक योजना पर काम कर रहा है। करीब 30 हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में गंगा किनारे वनीकरण कर इसके जरिए गंगा के किनारे मिट्टी के कटान को रोका जा रहा है।

इसी तरह गंगा किनारे मलबा डाले जाने या गांवों का गंदा पानी नदी में गिराने से प्रदूषण के बढ़ते स्तर को संज्ञान में लेते हुए चार हजार गांवों से निकलने वाले लगभग चैबीस सौ नालों को चिन्हित कर उनकी ‘जियो टैगिंग’ कर इनसे ठोस कचरा प्रवाहित होने से रोकने के लिए एक ‘एरेस्टर स्क्रीन’ लगाने की योजना भी बनायी है। नमामि गंगे परियोजना के तहत तमाम गंगा प्रहरी भी काम कर रहे हैं, जो गंगा की सफाई के साथ लोगों की जागरूकता में भी अहम योगदान दे रहे हैं।

ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र ने गंगा संरक्षण परियोजना को दुनिया की 10 शीर्ष नदी पुनर्जीवन परियोजनाओं में शामिल किया है। प्रो. संजय द्विवेदी कहते हैं कि नमामि गंगे की आगामी योजनाओं के तहत सीवेज ट्रीटमेंट, रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, नदी-सतह की सफाई, जैव विविधता, वनीकरण, जन जागरण, औद्योगिक प्रवाह निगरानी व गंगा ग्राम जैसे पहले से चल रहे उपक्रमों को जारी रखते हुए समस्त परियोजनाओं के रख-रखाव पर और जोर दिया जाएगा।

साथ ही इसमें छोटी नदियों और आद्र्रभूमि के पुनरुद्धार पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा इसमें शहरी स्थानीय निकायों से जुड़े कार्यक्रमों एवं योजनाओं तथा यमुना, काली एवं अन्य सहायक नदियों की स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं पर भी कार्य होगा। राज्य परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने और गंगा के सहायक शहरों में परियोजनाओं के लिये विश्वसनीय विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

लोगों को सोच बदलने की जरूरत: गडकरी

केंद्र सरकार में मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि करोड़ों ऐसे भारतीय हैं, जो नियमित माँ गंगा की पूजा करते हैं, लेकिन हमने गंगा की पूजा और पवित्रता का अर्थ ये लगा लिया है कि सारा कचरा, सारा कूड़ा गंगा में डाल दो…सब कुछ पवित्र हो जाएगा। यह अंधविश्वास सदियों से हमारे समाज में प्रचलित है। अब जरूरत है गंगा को लेकर लोगों की इस सोच बदलने की। हम लोग यदि चाहते हैं कि हमारी नदियां जीवित और साफ रह सकें, तो आइये हम सब मिलकर नदियों में कूड़ा या गंदगी न फेंकने का संकल्प लें।

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हमारे सामने लंदन की ‘टेम्स’ और पेरिस की ‘सीन’ नदी के उदाहरण हैं, जिन्हें साफ करने में लोगों ने बड़ी भूमिका अदा की। अहमदाबाद में नर्मदा के सुंदर किनारे भी इस बात का उदाहरण हैं कि सरकार और आम जन चाह ले तो नदी को साफ रखा जा सकता है। बस जरूरत इस बात की है कि जनता इसमें भागीदार बने। तो आइये हम सभी गंगा स्वच्छता की राष्ट्रीय मुहिम का हिस्सा बनकर गंगा पुत्र होने का गौरव हासिल कर सकें।

पूनम नेगी

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