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भगवान शिव पर आये संकट को दूध ने किया था दूर

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नई दिल्लीः भगवान भोलेनाथ की पूजा बिना दूध के अधूरी मानी जाती है। भगवान भोलेनाथ को दूध से स्नान कराया जाता है। दूध से अभिषेक करने पर भगवान भोलेनाथ बेहद प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों में दूध को बेहद पवित्र माना गया है। यह कहा जाता है कि दूध मन को सात्विक बनाता है और तनाव को दूर करता है। लगभग हर पूजा में दूध या दूध से बनी सामग्री जरूर भगवान को अर्पण की जाती है। इसके साथ ही पूजा के समय पंचमेवा से निर्मित चरणामृत जरूर भगवान को अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को दूध अतिप्रिय है।

ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से विष निकला था कि पूरी धरती पर हाहाकार मच गया था। पृथ्वी के सभी जीव-जंतु इसके तीव्र प्रभाव को सहन नही कर पा रहे थे। ऐसे में सभी देव भगवान भोलेनाथ की शरण में गये क्योंकि भगवान शिव में ही इसकी तीव्रता सहने की क्षमता थी। सभी देवताओं ने भोलेनाथ से अनुरोध किया है विष के तीव्र प्रभाव को कम करें। इस पर भोलेनाथ ने विष को ग्रहण करने का निर्णय लिया और पृथ्वी को बचाने के लिए उन्होंने विषपान किया। विषपान की वजह से भगवान शिव और उनकी जटा में विराजमान गंगा पर भी इसका प्रभाव होने लगा। भोलेनाथ को जल की शीतलता भी शांत न कर सकी। तब सभी देवताओं ने उन्हें दूध ग्रहण करने का निवेदन किया। लेकिन भगवान भोलेनाथ ने कहा कि यदि वह दूध का सेवन करेंगे तो वह भी विष से प्रभावित हो जाएगा। इस पर सभी देवताओं ने गौमाता से अनुरोध किया। तब गौमाता ने भोलेनाथ को दूध ग्रहण करने का निवेदन किया।

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गौमाता के निवेदन को स्वीकार करते हुए भगवान शिव ने दूध को ग्रहण किया जिससे विष की तीव्रता काफी कम हो गयी। लेकिन विष के प्रभाव के चलते भगवान शिव का कंठ नीला हो गया। जिसके चलते भोलेनाथ को नीलकंठ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि भगवान शिव पर विषपान के कारण आये संकट को दूध ने दूर किया था। जिसके चलते यह भगवान भोलेनाथ को अतिप्रिय है। इसलिए भोलेनाथ को पूजा के समय दूध अवश्य ही अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही भगवान शिव को सांप भी बहुत प्रिय है क्योंकि सांपों ने भी विष के प्रभाव को कम करने के लिए उसकी तीव्रता स्वंय में समाहित कर लिया था। इसलिए धरती पर पाये जाने वाले ज्यादातर सांप बहुत जहरीले होते हैं।