महामारी है तो बचाव का उपाय खोजा गया है और उपाय मौजूद है तो सभी के लिए सुलभ क्यों नहीं- यह सवाल हवा में तैर रहा है। सवाल विपक्षी दलों की ओर से अधिक है अथवा उन राज्यों से है, जहां गैर भाजपा सरकारें हैं। आमतौर पर इस तरह के सवालों पर राज्य और केंद्र के बीच आरोप- प्रत्यारोप जारी है। इस माहौल में जानना जरूरी है कि वस्तुस्थिति क्या है। महाराष्ट्र जैसे राज्य ने पिछले दिनों कहा कि उसके पास तीन दिनों के लिए ही वैक्सीन बची है। यह भी कहा कि वैक्सीन की कमी से उसके कई टीका केंद्र बंद कर देने पड़े। ध्यान से सोचें तो इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का जवाब समझ में आता है कि वैक्सीन का उचित वितरण राज्य का ही काम है। फिर उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र को सही समय पर टीकों की आपूर्ति की जा रही है।
हालांकि महाराष्ट्र और केंद्र के इस आरोप-प्रत्यारोप भर से देशभर में वैक्सीन की उपलब्धता को एकबारगी नहीं समझ सकते। कुछ राज्यों के साथ विपक्षी दल तो यहां तक सवाल करते हैं कि देश में हर आयु वर्ग के लोगों को वैक्सीन क्यों नहीं लगाया जा रहा है। इसपर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का तर्क यह है कि जो राज्य ऐसी मांग कर रहे हैं, इसका मतलब यह है कि उनके यहां 45 साल के ऊपर के हर व्यक्ति को टीका दिया जा चुका है। सच्चाई इससे बहुत दूर है। फिर भी यह देखना होगा कि वैक्सीन नहीं होने के कारण सिर्फ महाराष्ट्र ने ही दिक्कतें नहीं बताईं। ऐसे राज्यों में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ है, तो भाजपा की सरकार वाला हरियाणा भी शामिल है। फिर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा ने भी वैक्सीन की आपूर्ति में कमी की शिकायत की। उत्तर प्रदेश ने भले कुछ न कहा हो, उसके कई अस्पतालों में भी टीके नहीं होने के तथ्य आए।
अब दुनिया के स्तर पर देखें तो पिछले सप्ताह की शुरुआत तक सबसे अधिक वैक्सीनेशन करने वाला देश अमेरिका रहा। फिर चीन और तीसरे स्थान पर भारत रहा। अमेरिका में 16 करोड़ से अधिक, चीन मे 13 करोड़ से कुछ ज्यादा, तो भारत में करीब 10 करोड़ लोगों को टीका लगाया गया। यहां एक बात गौर करने लायक है कि पिछले सप्ताह चीन के मुकाबले टीका लगाने की रफ्तार भारत में अधिक रही। जहां 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने में चीन को 102 दिन लगे, भारत ने यह काम सिर्फ 85 दिनों में किए। आबादी को देखते हुए इन दो देशों की तुलना सर्वथा उपयुक्त है।
बात जहां तक सभी को टीका लगाने की है तो दुनिया के किसी भी देश में यह संभव नहीं हो सका है। ऐसा शुरू में वैक्सीन की उपलब्धता के कारण ही है। किसी नए रोग अथवा महामारी के टीके खोजने में पहले कई साल लग जाया करते थे। अब दुनिया के कई देशों के आपसी प्रयास से इसबार वैक्सीन जल्द खोजी जा सकी है। फिर ये देश वैक्सीन की उपलब्धता के लिए भी आपस में बंधे हुए हैं। भारतीय कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया का ही उदाहरण लें। यह एस्ट्राजेनेका की सहयोगी कंपनी है। उसे ‘कोवैक्स कार्यक्रम’ के तहत निम्न आय वाले देशों को भी कोविशील्ड वैक्सीन की दो अरब डोज भेजनी है। भारत बायोटेक स्वदेशी कंपनी है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की क्षमता हर महीने करीब साढ़े छह करोड़ टीके बनाने की है। भारत बायोटेक निश्चित ही इससे कम टीके बनाता है। दोनों के कुल उत्पादित टीकों का सिर्फ भारत में ही उपयोग हो, तो भी पूरे देश के टीकाकरण में बहुत समय लग सकता है। फिलहाल, भारत सरकार ने अपनी वैक्सीन बाहर भेजने पर रोक लगा दी है।
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माना कि दुनिया के रिश्तों के मुताबिक भी बहुत कुछ करना है। इसके बावजूद महामारी के फिर से बढ़ते संकट को देखते हुए एकबार फिर से पहले भारत और भारतवासियों को प्रमुखता देनी होगी। भाजपा के ही वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ध्यान दिलाते हैं कि रक्षा जरूरतों की ही तरह जीवन की जरूरतों को भी प्रमुखता देनी होगी। इसके लिए दो प्रमुख कंपनियों के अलावा विदेश में मौजूद कंपनियों से भी वैक्सीन लेने की पहल करनी चाहिए। निश्चित ही सरकार इस ओर सोच रही होगी कि देश की जरूरत कैसे पूरी हो। फिलहाल तो संकट के समय तथ्य को समझना जरूरी है, अभी राजनीतिक बयान से परहेज ही उचित है।
डॉ. प्रभात ओझा