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कार्तिक मास का महादान दीपदान दीपोत्सव

Devotees light lamp at Sri Krishna Janamsthan temple on the occasion of the foundation laying ceremony

मासों में कार्तिक मास, देवों में मधुसूदन और तीर्थों में नारायण तीर्थ श्रेष्ठ एवं दुर्लभ है। कार्तिक मास के समान कोई मास, सत्यसुग के समान कोई युग, वेदों के समान कोई शास्त्र और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नही है। इस मास को रोग एवं पातक विनाशक, सदबुद्धि, मुक्ति एवं पुत्र- धन धान्य प्रदान करने वाला तथा विष्णुप्रिया देवी महालक्ष्मी की उपासना हेतु भूतल पर श्रेष्ठतम मास बताया गया है।

जलदान करने वाला तप्ति, अन्नदान करने वाला अक्षय सुख, तिलदान करने वाला इच्छित संतान और कार्तिक मास में दीप दान करने वाला उत्तम ज्योति (नेत्र) प्राप्त करता है। इसी प्रकार स्कन्दपुराण, पद्मपुराण तथा भविष्यपुराण आदि में कार्तिक मास में दीपदान का महत्व वर्णित है। कार्तिक मास में दीपदान करने मात्र से न केवल धन-धान्य एवं ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी सहित श्रीहरि वरन् समस्त देवगण, सूर्यपुत्र यमराज, पितर आदि अत्यधिक प्रसन्न होते हैं तथा दीपदान करने वाले पर अपनी असीम कृपा सहज ही प्रदान कर धन-धान्य, सुख-समृद्धि पुत्र-पौत्रादि हेतु आशीर्वादों की वर्षा कर देते हैं।

भविष्यपुराण के उत्तरपर्व में यदुनन्दन श्रीकृष्ण भगवान् ने महाराज युधिष्ठिर को बताया है कि दीपदान करने वाला सुन्दर विमान में बैठकर स्वर्ग जाता है और प्रलय पर्यन्त वहीं वास करता है। वह व्यक्ति दीपक की ज्योति की तरह प्रकाशवान् होता है। पद्मपुराण उत्तर काण्ड में भगवान् शंकर ने पुत्र कार्तिकेय को बताया है कि कार्तिक मास में जो श्रीविष्णु भगवान् के निमित्त घी अथवा तिल के तेल से युक्त दीपदान करते हैं, वे अश्वमेध यज्ञ एवं समस्त तीर्थों में स्नान कर लेने का फल पाते हैं। कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी से शुक्लपक्ष द्वितीया तक पांच दिन रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या में यदि दीपदान किया जाता है और देव मन्दिरों, गोशाला, जलस्थान, देववृक्षों के नीचे तथा अंधेरे मार्ग में दीपक जलाये जाते हैं तो इससे जिनका कभी तर्पण और श्राद्ध नही हुआ है, वे पितर भी मोक्ष पा जाते हैं। सभी मासों में से कार्तिक मास भगवान् नारायण को सर्वाधिक प्रिय है। इस मास में प्रतिदिन उनके निमित्त दीपदान के अतिरिक्त आकाश-दीपदान घर या देवमन्दिर के ऊंचे स्थान पर अवश्य करना चाहिये। इससे भगवान् राधा दामोदर अति प्रसन्न होते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। स्कन्दपुराण वैष्णवाखण्ड में ब्रह्माजी ने नारद जी को बताया कि आकाशदीप दान करना चाहिये और इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये ।

मैं सर्वस्वरूप एवं विश्वरूपधारी भगवान् दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप देता हूँ जो उन्हें परम प्रिय है।‘
आकाशदीप ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके एवं रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या में दोनों समय दिया जाता है, दीपदान करने वाले के पाप-कर्म नष्ट हो जाते हैं। दीपदान पूरे कार्तिक मास भर किया जाना चाहिये किन्तु कतिपय कारणों से ऐसा न बन सके तो इस मास में आने वाले विशिष्ट पर्वों पर अवश्य विधिपूर्वक दीपदान करना चाहिये। कार्तिक मास में पड़ने वाले दीपदान के विशिष्ट पर्व इस प्रकार है

कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी-धनतेरस पर्व को दीपदान कार्तिक मास में इस दिन से पंचदिवसीय दीपोत्सव प्रारम्भ होता है। यह पंचदिवसीय पर्व उत्साह और उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन साय काल (प्रदोषकाल में) घर के बाहरी मुख्य द्वार पर एक मिट्टी के पात्र मे गेहूँ या चावल भरकर उस पर मृत्यु के देवता धर्मराज यमराज के निमित्त तेल का दीपक जलाकर उसका गन्ध, अक्षत, पुष्प से पूजनकर नैवेद्य समर्पित कर इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये।
हे सूर्यपुत्र यमराज! मृत्युपाशधरी काल और पत्नी सहित आप त्रयोदशी के दिन दिये गये इस दीपदान से प्रसन्न हो। इस प्रकार प्रार्थना सहित दीपदान के उपरान्त दीपक में यमराज का गन्ध, अक्षत, पुष्प आदि उपचारों से पूजन कर उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिये। इसी दिन रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या में घर के देवपूजन-कक्ष में विष्णुरूपी देवचिकित्सक धन्वन्तरि जी एवं तिजोरी या रूपये-पैसे रखने के स्थान पर धनाध्यक्ष कुबेरजी के निमित्त दीपदान करना एवं इनका पूजन-अर्चन कर नैवेद्य अर्पित करना चाहिये। इसके उपरान्त घर के आंगन में तुलसी एवं देववृक्षों के नीचे तथा द्वार आदि स्थानों पर दीपक जलाने चाहिये। घर में छत पर (ऊंचे स्थान पर) चार बत्तियों का घी का आकाशदीप भगवान् विष्णु, यम, पितरों, प्रेतों एवं भगवान् शंकर के निमित्त निम्न प्रार्थना के साथ जलाना चाहिये।


कल्याणकारी पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्मस्वरूप विष्णु को नमस्कार है, यमराज को नमस्कार है तथा दुर्गम पथ में रक्षा करने वाले भगवान् रूद्र को नमस्कार है। चतुर्दशी एवं दीपावली को भी इस प्रार्थना से दीपदान करना चाहिये।

कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी-नरक चतुर्दशी को दीपदान- पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन तेल में महालक्ष्मी एवं जल में गंगाजी का वास रहता है। सूर्योदय-काल में तेल-उबटन लगाकर स्नान कर भीगे (गीले) वस्त्रों में ही घर के बाहरी द्वार पर यमराज के पुत्रों हेतु दीपदान करना चाहिये दीपदान के समय निम्न प्रार्थना बोलना चाहिये। हे ! काले और चितकबरे रंग के दो श्वान जो मृत्यु के पुत्र हैं, यमराज के सेवक एवं दोनों आपस में भाई हैं, चतुर्दशी को दिये गये इस दीपदान से मुझ पर प्रसन्न हों। इसके उपरान्त हाथ धोकर भीगे (गीले) वस्त्र रात्रि का प्रथम प्रहर या संध्या प्रारम्भ पहले से तैयार कर रखी गयी नयी रूई की बत्ती दीपक के नाम से जलाने चाहिये एवं अक्षत, पुष्प आदि उपचारों से इनका पूजन करना चाहिये तत्पश्चात् परिवार सदस्य के सभी तुलसी एवं देववृक्षों नीचे, घर के मुख्यद्वार, आंगन, के निकट के चौराहे आदि स्थानों भी दीपक जलाकर रख दें। इसके उपरान्त त्रयोदशी भांति की छत पर आकाशदीप (चार बत्ती दीया) का भगवान् रूद्र तथा पितरों आदि की प्रसन्नता हेतु दान करना चाहिये। दिन हनुमान मन्दिर जाकर दर्शन एवं दीपदान करना करना चाहिये।

कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या- पुराणों में दीपावली मनाये जाने की विस्तृत विधि लिखी गयी है। दीपदान का यह विलक्षण पर्व है। इस दिन हजारों की संख्या में चारों ओर दीप जलाये जाते हैं, जिनसे अमावस्या की कालिमा दीपों की रोशनी में नहा जाती है। दीपावली पर्व भारत का राष्ट्रीय त्योहार है। इस दिन किये गये दीपदान से हमारे पितर अति प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को धन-वैभव, सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे जाते हैं।
गणेश-लक्ष्मी-सरस्वती-महाकाली आदि के पूजनोंपरान्त थाली में 11, 21 या 51 दीपक रखकर उनमें बत्ती लगाकर घी या तेल से पूर्णकर प्रज्ज्वलित कर ‘ऊँ दीपावल्यै नमः’ नाममन्त्र से गन्ध, अक्षत, पुष्प से उनका पूजन करें, नैवेद्य अर्पित करें, धान का लावा विशेष रूप से अर्पित करें।

इन पूजित दीपकों से घर-आंगन के विभिन्न हिस्सों को जगमगायें, देव वृक्षों (पीपल, आंवला, बरगद, बेल इत्यादि) एवं तुलसी के नीचे इन्हें रखे, पूजन की थाली में रखे दीपकों के अतिरिक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार दीपक जलाकर उन्हें घर की छत पर निकट के चैराहे पर, विष्णु - शिव मन्दिर में कुआं-बावड़ी, घर के जल के स्थान, स्नानागार, गोशाला आदि स्थानों पर रखना चाहिये। देव-मन्दिर या घर की छत पर ऊंचे स्थान पर चार या सात बत्ती का घी का आकाशदीप जलाना चाहिये। इसके अतिरिक्त पीपल वृक्ष के समीप तिल के तेल का एक दीपक शनिदेव की प्रसन्नता हेतु रखे एवं ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः‘ बोले। कार्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा-गोवर्धनपूजना को दीपदान-इस दिन प्रबोधकाल (ब्रह्ममुहूर्त) से पूर्व घर की स्त्रियां सूप बजाकर दरिद्रा का निस्सारण एवं लक्ष्मीजी का आवाहन करती है तथा घर-आंगन में दीपक लगाकर महालक्ष्मी की प्रसन्नता की कामना करती है। इस वेला में दीपदान से महालक्ष्मी प्रसन्न होती है एवं धन-सम्पत्ति की कमी परिवार में पूरे वर्ष नही होने देती। प्रातःकाल गोवर्धन पूजा एवं रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या में भगवान् श्रीकृष्ण के लिये आकाशदीप देना चाहिये। इस समय यह मंत्र बोलना चाहिये
दामोदराय श्रीकृष्णाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् ।।


कार्तिक शुक्लपक्ष द्वितीया - यमद्वितीया (भाई-दूज) को दीपदानदृस्नान आदि से निवृत्त हो श्वेत वस्त्र पहनकर श्वेत चन्दन लगाकर प्रसन्नतापूर्वक भगवान चित्रगुप्त सहित भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ वीणावादिनी मां शारदा का पूजन कर उनके निमित्त दीपदान करना चाहिये। दोपहर में बहन के यहां भोजन कर बहन को भेंट देना चाहिये। प्रदोषकाल में घर-आंगन में दीपदान करना चाहिये, देववृक्षों के नीचे दीपक जलाना चाहिये। कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी-देवोत्थानी एकादशी को दीपदान भगवान् श्रीविष्णु शयन (देवशयनी एकादशी) के बाद उठते हैं। इस दिन प्रदोषकाल में भगवान् शालग्राम (श्रीविष्णु) का तुलसी के साथ विवाह समारोह आयोजित करके दीपावली के दिन की भांति रोशनी एवं दीपदान किया जाना चाहिये। कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान- इस दिन कार्तिक मास का स्नान एवं दीपदान पूर्ण होता है। बहती नदियों में महिलाएं स्नान कर उषाकाल में भगवान् शिव के निमित्त एवं प्रदोषकाल में भगवान् विष्णु के निमित्त जलते दीपक नदी में प्रवाहित कर जल- दीपदान करती है। इस दीपदान की विलक्षण छटा पवित्र नदियों के किनारे बसे नगरों जैसे हरिद्वार, वाराणसी, ओंकारेश्वर, उज्जैन आदि जगहों पर देखते ही बनती है। यह पर्व देव दीपावली के नाम से प्रसिद्ध है। नदियों में बहते दीपकों को देखकर यमराज बहुत प्रसन्न होते हैं तथा बह्मा, विष्णु, महेश, शिव, अंगिरा, आदित्य आदि सायंकाल के दीपदान से अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। इसी दिन सायंकाल भगवान् विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। इस कारण आज के दिन के दान, जप आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। ऐसा पद्मपुराण में वर्णित है।

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इस दिन सायंकाल देव-मन्दिरों, घर-आंगन, तुलसी एवं देववृक्षों के समीप (विशेषकर पीपल के नीचे जड़े के समीप) चैराहों, जलस्थान आदि स्थानों पर दीपदान किया जाना चाहिये। कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी- ‘आँवला नवमी, अक्षयनवमी को कूष्माण्डदान (कुम्हड़ा)- कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी को ‘धात्रीनवमी एवं ‘कूष्माण्डनवमी’ भी कहा जाता है। इस दिन पूजन, तर्पण, स्नानदृअन्नदान, दीपदान आदि करने का अक्षयफल प्राप्त होता है, ऐसा पुराणों में वर्णित है। इस दिन आँवले के वृक्ष का पूजन एवं इसके नीचे भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित धर्मराज यमराज की प्रसन्नता हेतु घी के दीपक या कपूर से दीपदान करना चाहिये। वृक्ष के नीचे परिवार सहित भोजन करना चाहिये। पुत्री का पुत्र (दौहित्र) यदि उस दिन आ सके तो उसे अथवा विद्वान सदाचारी ब्राह्मण को आंवले के वृक्ष के नीचे आदरपूर्वक तिलक कर भोजन करवायें एवं कूष्माण्डन दान करें- इससे अक्षय सुख, सौभाग्य प्राप्त होता है। कूष्माण्डन दान विधि- कूष्माण्ड यानी कुम्हड़ा या पका हुआ ‘‘कदू‘‘ लेकर उसमें श्रद्धापूर्वक रूपये, रजत, स्वर्ण (अपनी सामर्थ्य के अनुसार) रखे और उसे किसी ऊनी वस्त्र में लपेट लें एवं आंवले के वृक्ष के पास रखकर संकल्पपूर्वक द्रव्य दक्षिणा सहित वह कूष्माण्ड ब्राह्मण अथवा दौहित्र को देकर प्रणाम करें। फिर प्रार्थना करें
कूष्माण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्मणा निर्मित पुरा ।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च ।।

इस प्रकार कूष्माण्डदान से देव एवं पितर-दोनों प्रसन्न होते हैं।

लोकेंद्र चतुर्वेदी ज्योतिर्विद