शिमला: हिमाचल में लगातार बढ़ रहीं भूस्खलन की घटनाएं चिंता का सबब बनी हुई हैं। पिछले तीन सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो भूस्खलन की घटनाओं में सात गुना तक बढ़ोतरी हुई है। इस प्राकृतिक आपका का जिम्मेदार भू वैज्ञानिक बारिश के पैटर्न में बदलाव और पहाड़ों पर मानवीय हस्तक्षेप को मानते हैं।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की 117 घटनाएं हुई थीं, जबकि साल 2021 में 100 और 2020 में भूस्खलन के केवल 16 मामले की दर्ज हुए थे।
हिमाचल में चिन्हित किये गये 675 स्थल –
सुदेश मोक्टा ने जानकारी दी कि पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की ज्यादातर घटनाएं मानसून में होती हैं। ऐसे में भूस्खलन की ज्यादा आशंका वाले स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जा रहा है। अर्ली वार्निंग सिस्टम से भूस्खलन की जानकारी समय रहते मिल जायेगी और जान व माल का नुकसान कम होगा। इस समय 69 स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाये जा रहे हैं, इनमें से 39 स्थानों पर यह सिस्टम पहले ही लगाया जा चुका है, जबकि 30 स्पाॅट्स पर अभी काम चल रहा है। बता दें कि कांगड़ा, मंडी व किन्नौर में 10-10 स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जा चुका है।
69 स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाये गये –
उन्होंने कहा कि राज्य के पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की अधिकतर घटनाएं मानसून सीजन में घटित होती हैं। बरसात के दौरान जान व माल के नुकसान को कम करने के मकसद से भूस्खलन संभावित 69 स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित किया जा रहा है। इनमें 39 स्थानों पर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम पहले ही लगाया जा चुका था, जबकि 30 स्थानों पर बीते एक माह से इन्हें लगाने का काम चल रहा है। किन्नौर, मंडी और कांगड़ा में 10-10 स्थानों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया गया है।
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संवेदनशील जिला किन्नौर का सर्वेक्षण कर रहा जीएसआई –
निदेशक ने कहा कि किन्नौर जिला भूस्खलन के लिये राज्य में सबसे संवेदनशील है। पिछले कुछ सालों में यहां पहाड़ों के दरकने से कई लोगों की जान जा चुकी है। इस वजह से इस जिले को पायलट जिले में शामिल किया गया है। जिले की स्थिति को देखते हुए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण जीएसआई के तहत पूरे जिले का सर्वे किया गया है और भूस्खलन संभावित स्थानों का पता लगाया गया है। सर्वे में जीएसआई ने किन्नौर में 12 ऐसे स्थानों को चिन्हित किया है, जहां भूस्खलन का डर सबसे ज्यादा है। इन स्थानों पर भूस्खलन को कम करने के लिये एक डीपीआर तैयार की गई है। जीएसआई की टीमें पूरे किन्नौर जिले की मैपिंग कर रही है। इस साल के अंत तक काम पूरा हो जाने की उम्मीद है।
पिछले साल 432 लोगों की हुई थी मौत –
पहाड़ी इलाकों में मानसून के दौरान भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं। पिछले साल हिमाचल में भूस्खलन व बारिश के कारण हुए अलग-अलग हादसों में 432 लोगों की जान गई थी। वहीं 15 लोग लापता हो गये थे। नुकसान की बात करें तो भूस्खलन के कारण 51 पक्के व 211 कच्चे मकान भी ध्वस्त हो गये थे। एक अनुमान के अनुसार, पिछले साल मानसून में लगभग 2300 करोड़ की संपत्ति की क्षति हुई थी।
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