अयोध्या: श्री मणिराम दास छावनी स्थित श्रीराम सत्संग भवन में शनिवार को तीन दिवसीय अयोध्या उत्सव का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने किया। इस मौके पर डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि हम सभी खुशी के माहौल में हैं। हम इस पल का वर्षों से इंतजार कर रहे थे।’ मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का मंदिर बन रहा है। मंदिर के उद्घाटन की तारीख 22 जनवरी 2024 तय की गई है। दुनिया भर में हिंदू समाज उत्साहित और खुश है।
बहुभाषी समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि पिछले हजार वर्षों में कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने यहां के मंदिरों को नष्ट कर दिया। हिंदुओं पर अत्याचार चरम पर पहुंच गए, लेकिन हिंदू समाज राम का सहारा लेकर संघर्ष करता रहा। हिंदुओं को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। तीर्थ यात्रा पर टैक्स लगाया गया। फिर धर्म की रक्षा के लिए प्रयास करने पड़े। लोग मंदिर छोड़कर अपने घरों में कैद हो गए थे और ऐसी कठिन परिस्थिति से सभी को बाहर निकालने वाले का नाम श्री राम है।
उन्होंने कहा कि वैदिक मंत्रों का दर्शन लोक भाषा में आने लगा। रामायण हर भाषा में उपलब्ध है। हर क्षेत्र में रामचरितमानस का गायन शुरू हो गया है। राम लोक जीवन में विलीन हो गये। राम के नाम को नमस्कार करने से भी पूरा जीवन राममय हो जाता है।
उन्होंने कहा कि राम के आदर्श को जन-जन ने स्वीकार किया है। यहां तक कि ज्यादातर शहरों के नाम में भी ‘राम’ सबसे ऊपर आया। कहानियों, कहानियों और नाटकों में भी राम जन-जन के बीच लोकप्रिय हो गये। राम धर्म के ज्ञाता के रूप में प्रसिद्ध हुए और विग्रहमण में सशरीर विद्यमान थे। ऐसा कोई दूसरा आदर्श नहीं है जो समाज की गहराइयों तक पहुँच सका हो।
डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वी को राक्षसों से मुक्त करने का संकल्प लिया था। राज्याभिषेक की खुशी की अपारता की कोई परवाह नहीं थी। ऐसा केवल राम ही कर सकते हैं। राम के मन में केवट के प्रति सम्मान का भाव है और केवट के मन में राम के प्रति अधिकार का भाव है। इतना ही नहीं, राम की मुलाकात गिद्धराज जटायु से होती है। ये किसी पक्षी का विचार नहीं है, बल्कि एक आदमी का है, जो एक महिला को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत से लड़ता है। जटायु का आदर्श हमें बताता है कि स्त्री के सम्मान के लिए लड़ना चाहिए न कि उससे दूर भागना चाहिए।
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डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि श्रीराम ने न केवल मानव जाति बल्कि सृष्टि को मित्रता और वचन निभाने का पाठ पढ़ाया। जब उन्होंने सुग्रीव को राज्य देकर अपना वचन पूरा किया तो लक्ष्मण के हाथों सुग्रीव का राजतिलक कराया। इन 14 वर्षों में राम ने कभी किसी नगर में प्रवेश नहीं किया। ऐसा ही व्यवहार विभीषण के साथ भी देखने को मिला। विभीषण का आतिथ्य सत्कार आज भी भारत में लोकप्रिय माना जाता है। यह बात आज भी यहां के लोगों की भावनाओं में झलकती है। पारसी लोग भारत में अतिथि बनकर आये। यहां सम्मानित हो गये। आज भारत में किसी भी देश के लोगों को सम्मान दिया जाता है। सम्मान देने का यह दर्शन भी भगवान श्री राम ने ही स्थापित किया था।
संस्कार भी राम की देन है
सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि राम अपने आदर्शों के कारण ही जन-जन के मन में बसे हैं। राम-रावण युद्ध के दौरान रावण मारा गया। विभीषण अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन भगवान श्री राम के समझाने के बाद दुश्मनी खत्म हो गई और विभीषण अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार हो गए। आज भी यह भारतीय समाज में स्थापित है। जिनके रिश्ते खराब हो गए हैं वे भी इस दुख की घड़ी में किसी की मौत के बाद अपनी दुश्मनी मिटाने के लिए उसके घर जाते हैं।
हमें लालच छोड़ना सिखाया
राम ने भारतीय समाज को लालच न करने की सीख दी। यह सोने की लंका देखकर भी उनके मन में लालच न आने का जीता जागता उदाहरण है। उन्होंने समाज को यह आदर्श दिया कि दूसरे का सोना भी हमारे लिए मिट्टी के समान है। यही कारण है कि भारतीय राजाओं ने भी किसी अन्य देश की जनता को लूटने का प्रयास नहीं किया। महाराज विक्रमादित्य जैसे शक्तिशाली राजा के मन में भी डकैती करने का बुरा विचार नहीं आया।
मंदिर तोड़े गए, लेकिन जनमानस के मन से राम नहीं निकल सके
उन्होंने कहा कि आतंकवादियों ने भारत के कई मठों और मंदिरों को नष्ट कर दिया, लेकिन भारत के लोगों के बीच स्थापित श्री राम के आदर्शों के कारण वे उन्हें किसी के मन से नहीं निकाल सके। परिणाम यह है कि आज हम लगभग 500 वर्षों की लंबी यात्रा के बाद श्री राम मंदिर का निर्माण कर रहे हैं। अब प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक भावना को पुनर्जीवित किया जा सकता है। विश्व को एक नई दिशा देने में सक्षम होंगे। यही राम का दर्शन भी है। सभी की ख़ुशी की कामना करता हूँ। भगवान श्री राम का ये मंदिर इन सभी भावनाओं का प्रतीक है।
रिपोर्ट- विशाल श्रीवास्तव, अयोध्या
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