कोटा (Kota) में एक बार फिर कोचिंग छात्रा की आत्महत्या का मामला सामने आया है। छत्तीसगढ़ के छात्र शुभकुमार चौधरी (16) ने सोमवार रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। डीएसपी भवानी सिंह ने बताया कि स्टूडेंट 12वीं में पढ़ाई करता था। सोमवार रात जेईई की रिजल्ट आया। सुबह उसने पैरेंट्स का फोन नहीं उठाया तब वार्डन को कॉल किया। वार्डन ने गेट को धक्का देकर खोला तो स्टूडेंट पंखे पर लटका हुआ था। इस साल कोटा में सुसाइड का यह चौथा मामला है। 2 फरवरी को गोंडा के नूर मोहम्मद (27), 31 जनवरी को बोरखेड़ा, कोटा की निहारिका (18) और 24 जनवरी को मुरादाबाद के मोहम्मद जैद (19) ने आत्महत्या कर ली।
ऐसी घटनाओं से पूरा देश सदमे में
राजस्थान का कोटा शहर देश का सबसे बड़ा कोचिंग सेंटर है। यहां हर साल लाखों छात्र कोचिंग के लिए आते हैं। इससे कोचिंग संचालकों को सालाना कई हजार करोड़ रुपये की कमाई होती है। हालाँकि, कोटा आने वाले सभी छात्र मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं में सफल नहीं होते हैं। लेकिन कोटा से बड़ी संख्या में छात्र देश के शीर्ष मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में चयनित होते हैं। इसी वजह से माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं।
कोटा के बड़े कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाएं शहर पर दाग लगा रही हैं। 2012 से अब तक यहां 148 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा लगातार आत्महत्या की घटनाओं से पूरा देश सदमे में है। सरकार और प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद कोटा के छात्रों में ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
इसका मुख्य कारण छात्रों पर पढ़ाई का मनोवैज्ञानिक दबाव माना जाता है। कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों को हर साल लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। कई छात्रों के माता-पिता इस तरह का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। यहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं। उनके माता-पिता आर्थिक रूप से बहुत सक्षम नहीं हैं। वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए विभिन्न स्तरों पर पैसों की व्यवस्था करते हैं और बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं।
चारों तरफ का तनाव झेलते हैं छात्र
यहां आने वाले छात्र जानते हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें कोचिंग लेने के लिए कोटा भेजकर कितनी परेशानी उठायी है। ऐसे में अगर वह सफल नहीं हुआ तो उसके माता-पिता जीवनभर कर्ज में डूबे रहेंगे। यही सोचकर विद्यार्थी हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता है। इसके अलावा यहां पढ़ने वाले छात्रों पर पढ़ाई का काफी दबाव रहता है। यहां के कोचिंग संस्थानों में अलग-अलग बैच में कई शिफ्ट में पढ़ाई होती है। यहां पढ़ने वाले छात्रों पर मेडिकल या इंजीनियरिंग परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए माता-पिता और कोचिंग संस्थानों का दबाव रहता है।
कोचिंग संस्थान भी अच्छे परिणाम दिखाने के लिए विद्यार्थियों को मशीन बना देते हैं। छात्रों पर हर दिन पढ़ाई का दबाव रहता है और साप्ताहिक टेस्ट पास करने के लिए छात्र दिन-रात पढ़ाई करते रहते हैं, जिसके कारण न तो वे पूरी नींद ले पाते हैं और न ही मानसिक रूप से आराम कर पाते हैं। ऐसे में सुबह जल्दी उठना, कोचिंग इंस्टीट्यूट जाना और दिनभर पढ़ाई में व्यस्त रहने से छात्र तनावग्रस्त हो जाता है। बाहर से आने वाले कई छात्र पढ़ाई में पिछड़ने के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
कोटा कभी राजस्थान का बड़ा औद्योगिक शहर था। लेकिन श्रमिक आंदोलनों के कारण यहां के उद्योग बंद होने लगे। आज कोटा में नाममात्र के उद्योग ही बचे हैं। 1990 के दौरान कोटा शहर में कोचिंग संस्थान खुलने लगे। 2005 तक यहां बड़ी संख्या में कोचिंग संस्थान स्थापित हो गए, जिनमें हर साल लाखों छात्र पढ़ने लगे। आज कोटा शहर की पूरी अर्थव्यवस्था इन्हीं कोचिंग संस्थानों पर निर्भर है। शहर के हर चौराहे पर छात्रों की सफलता से लटके पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में अब कोचिंग ही सबकुछ है।
तेजी से बढ़ रहा कोचिंग का बिजनेस
यह सही है कि कोटा में सफलता दर तीस प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। देश की इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रतियोगी परीक्षाओं में कोटा के पांच छात्र टॉप टेन में हैं। लेकिन इसके साथ ही कोटा में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र भी हैं जो फेल हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, कोटा के कोचिंग बाजार का सालाना कारोबार 8,000 करोड़ रुपये है। कोचिंग सेंटरों द्वारा सरकार को सालाना 500-700 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया जाता है।
कोटा में देश के तमाम नामी संस्थानों से लेकर छोटे-छोटे 200 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली और मुंबई समेत कई विदेशी कोचिंग संस्थान कोटा में अपने सेंटर खोल रहे हैं। इन संस्थानों से करीब 2.5 लाख छात्र कोचिंग ले रहे हैं। कोटा में सफलता का मुख्य कारण यहां के शिक्षक हैं। आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र बड़ी कंपनियों और अस्पतालों की नौकरी छोड़कर यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ा रहे हैं। ऊंची सैलरी के कारण कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी पास छात्र पढ़ा रहे हैं।
सरकार कर रही हर संभव प्रयास
कोटा में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित सरकार हरकत में आ गई है। कोटा में कोचिंग करने वाले छात्रों के लिए अलग से पुलिस थाना खोला गया है। हॉस्टल के कमरों में ऐसे पंखे लगाए गए हैं जिन पर अगर कोई लटकने की कोशिश करेगा तो उसमें लगे डिवाइस में सायरन बजने लगेगा। सरकार ने छात्रों के मानसिक तनाव का विस्तृत अध्ययन करने के लिए मनोचिकित्सकों की एक टीम भी बनाई है जो छात्रों से मिलकर आत्महत्या के कारणों की जांच करेगी। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि कोटा में बच्चों की आत्महत्या के लिए माता-पिता जिम्मेदार हैं, क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों से उनकी क्षमताओं से ज्यादा उम्मीदें रखते हैं। ऐसे में बच्चे अवसादग्रस्त हो जाते हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं।
केंद्र सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए दिशानिर्देशों की घोषणा की है, जिसमें कोचिंग संस्थान 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों का नामांकन नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा न तो वे अच्छी रैंक या अच्छे अंक की गारंटी दे सकते हैं और न ही गुमराह करने वाले वादे कर सकते हैं। दिशानिर्देशों के अनुसार, कोई भी कोचिंग सेंटर स्नातक से कम शिक्षा वाले ट्यूटर्स की नियुक्ति नहीं करेगा। माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उपस्थित होने के बाद ही छात्रों का नामांकन किया जा सकता है। इनमें छात्रों को तनाव मुक्त रखने और फीस रिफंड प्रक्रिया को आसान बनाने समेत कई दिशानिर्देश शामिल हैं।
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कोचिंग छात्रों की आत्महत्या के मामलों पर प्रशासन के साथ-साथ पुलिस की स्पेशल सेल भी काम कर रही है। फिर भी आत्महत्या के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जब तक कोटा में पढ़ने वाले छात्र खुले मन से और बिना किसी दबाव के पढ़ाई करेंगे, तभी यहां का माहौल सुधरेगा। यहां चल रहे कोचिंग संस्थानों को मशीनी स्तर पर चल रही प्रतिस्पर्धा को बंद कर सकारात्मक माहौल बनाना होगा। तभी कोटा में पढ़ने वाले छात्र सुरक्षित महसूस कर पढ़ाई कर सकेंगे। जब तक कोटा में संचालित कोचिंग संस्थान अपने काम को पैसा कमाने की मशीन समझना बंद नहीं करेंगे और अपने विद्यार्थियों के साथ संवेदनशील व्यवहार नहीं करेंगे, तब तक कोटा के हालात नहीं सुधरेंगे।
रमेश सर्राफ धमोरा
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