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Padman: रियल लाइफ के 'पैडमैन' हैं कोलकाता के शोभन, महिलाएं मानती हैं फरिश्ता

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कोलकाताः कहा जाता है कि एक महिला का दर्द महिला ही समझ सकती है, लेकिन महज 28 साल के युवक शोभन मुखर्जी (Padman) ने इस मिथक को तोड़ दिया है। दरअसल शहरी जीवन में नियमित भागदौड़ करने वाली ऐसी महिलाओं के लिए वह फरिश्ता बन चुके हैं जो घर से बिना सेनेटरी पैड लेकर निकलती हैं और रास्ते में अचानक पीरियड की वजह से असहज परिस्थितियों में फंस जाती हैं। महिलाओं की इसी परेशानी को शोभन ने संवेदनशीलता से महसूस किया इसकी वजह से आज वह "पैडमैन" के रूप में जाने जाते हैं।

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रियल लाइफ के पैडमैन

फिल्म पैडमैन (Padman) में अभिनेता अक्षय कुमार रियल लाइफ के पैडमैन हैं, लेकिन कोलकाता के शोभन रियल लाइफ में पैडमैन हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वह न केवल कोलकाता बल्कि आसपास के शहरों के हर एक सार्वजनिक शौचालय में जाते हैं और अपने पैसे से सेनेटरी पैड खरीद कर रखते हैं। कई शौचालयों में उन्होंने खुद जा-जाकर पैड रखने के लिए जगह बनवाई है। एक टीम भी है जो यह बताती है कि कहां सेनेटरी पैड खत्म हो गया है। खास बात यह है कि इस पूरी मुहिम को वह वन मैन आर्मी की तरह चला रहे हैं।

इसके लिए आने वाला खर्च भी अपनी सैलरी से अथवा थोड़ी बहुत मदद लेकर चलाते हैं। सड़क, बाजार, मेट्रो, ट्रेन आदि से सफर कर रही महिलाओं को जब पीरियड का एहसास होता है तो उन्हें पता है कि कोलकाता के किसी भी शौचालय में जाएंगी तो उनके लिए वहां पैड रखा हुआ मिलेगा और यह किसी सरकारी मुहिम पर नहीं बल्कि अकेले एक शख्सियत की सकारात्मक पहल का नतीजा है। शोभन मुखर्जी ने बताया कि वह पिछले आधे दशक से ऐसा कर रहे हैं और आज तक उन्हें सरकारी तौर पर कोई मदद नहीं मिली।

इसके लिए उन्होंने अपना खुद का एनजीओ भी खोला है जिनमें उन लड़कियों को काम दिया जाता है जो सेनेटरी पैड बनाने से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को इसके लिए जागरूक करने में जुटी हुई हैं। उन्होंने बताया कि एक बार वह अपनी ऑफिस की टीम के साथ बस में सफर कर रहे थे। इसमें लड़कियां भी थीं। अचानक एक लड़की को पीरियड आ गया था जिसके पास सेनेटरी पैड नहीं था। तब सभी दोस्तों ने मिलकर इसकी व्यवस्था तो कर दी थी, लेकिन शोभन यह सोचने पर मजबूर हो गए थे कि अगर कोई लड़की अकेले सफल करे और ऐसी हालात में फंस जाए तो क्या होगा। तभी उनके जेहन में कोलकाता के हर एक शौचालय में जाकर सेनेटरी पैड रखने का आईडिया आया। उसके बाद वह जुट गए इसे साकार करने में।

शौचालय में पैड रखने के लिए सहना पड़ा ताना

शोभन कोलकाता के हरेक सार्वजनिक शौचालय में गए। पहले जब वह महिला शौचालयों में पैड रखने के लिए जाते थे तो उन्हें संदेह की निगाह से देखा जाता था। उनके दोस्तों ने उन पर तंज कसना भी शुरू किया। कई लोग उन्हें किन्नर तक कहने लगे, लेकिन इससे वह हतोत्साहित नहीं हुए। आज वह कोलकाता के पैडमैन के तौर पर जाने जाते हैं। शोभन कहते हैं कि हर एक शौचालय में घूम-घूम कर सेनेटरी पैड रखना आसान नहीं है इसके लिए एक टीम रखी गई है।

कोलकाता में यह पहल शुरू हुई थी। इसके बाद अब दिल्ली और मुंबई में भी ऐसा ही हो रहा है। यह पूरे देश के लिए एक उदाहरण है। उनका मानना है कि महिला और पुरुष को बराबर होने की जरूरत नहीं बल्कि एक दूसरे का परस्पर सहयोगी होने की जरूरत है। कोई महिला है तो उसके दर्द को केवल महिला महसूस करेगी और कोई पुरुष है तो उसकी परेशानियों को केवल पुरुष ही महसूस करे, ऐसा नहीं होना चाहिए। महिला और पुरुष समाज के दो पहिए हैं। दोनों को परस्पर समन्वय बनाकर एक दूसरे का साथ देना ही मानवीय समझ की सबसे बड़ी मिसाल होगी।

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