लखनऊः बागों के शहर लखनऊ के कई टाउनक्षेत्र आम उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। यहां बड़े पैमाने पर आम के बाग हैं और किसानों की आमदनी आम के व्यापार पर टिकी रहती है, लेकिन कभी मौसम तो कभी कीट और रोगों के हमले के कारण किसानों को भारी नुकसान भी झेलना पड़ता है।
फरवरी महीने में उम्मीद की जा रही थी कि इस बार आम का उत्पादन बेहतर होगा, लेकिन कई बार आंधी-पानी और ओलों के बाद अब इस पर लगने वाले कीटों का प्रकोप उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित करने वाला है। कुछ किसानों की चिंता है कि आम पर इस बार कोयलिया रोग हावी हो रहा है।
जिस आम की फसल से किसानों और बागवानों को आर्थिक स्थिति सुधरने की उम्मीद होती हैं, उस पर अब पर्यावरण असंतुलन का खतरा बढ़ रहा है। यूपी की राजधानी में तमाम मंत्रियों और अधिकारियों की मौजूदगी रहने के बाद भी इस खतरे को रोकने के सख्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव जहां मनुष्यों पर पड़ रहा है, वहीं पेड़-पौधे भी इससे बुरीी तरह प्रभावित हो रहे हैं। मौसम की मार झेलने के साथ ही तमाम रोगों के कोप का शिकार हुई अमिया बाजार में बिक रही हैं।
बताया जा रहा है कि जिन रोगों की अमिया शिकार हुई हैं, उसमें कोयलिया काफी तेजी से फैल रही है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा पिछले तीन सालों से कोयलिया के प्रति गंभीर होने की चेतावनी दे रहा है, लेकिन आम बाजार में खाने को मिल जाता है। यहां लखनऊ से बाहर का भी आम बिकने आ जाता है, इसलिए कोयलिया से बचाव के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। यह आम की फसल को अब काफी प्रभावित कर रहा है, यहां तक कि कुछ पेड़ में तो अमिया के गुच्छे कोयलिया की चपेट में आ चुके हैं।
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बताया जा रहा है कि यह सब पर्यावरण के असंतुलन का नतीजा है। किसानों और बागवानों की इस विकराल समस्या पर जब यहां के वैज्ञानिक रहे शरद द्विवेदी से पूछा गया तो उन्होंने शोध आधारित जानकारी दी और बताया कि यह समस्या तो काफी पुरानी है। आज यह नई लग रही है। आगे और नई लगेगी। उनकी इस चैंकाने वाली जानकारी में कृषि और बागवानी पर आधारित व्यवस्था पर व्यंग्य था। उन्होंने बताया कि सालों से इस समस्या के प्रति सचेत किया जा रहा है। हर साल यह आम को बढ़ते क्रम में अपनी चपेट में ले रहा है। यह एक ऐसा फसली रोग है, जो आम पर हावी रहता है लेकिन ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं है।
ईंट-भट्ठों से हो रहा नुकसान –
उन्होंने बताया कि कुछ लोग तो इसको किस्म समझते हैं, जबकि यह आम का वजन नष्ट कर रहा है। एक फल से दूसरे तक पहंुचने में भी यह माहिर है। उन्होंने बताया कि इसका मूल कारण है कि लखनऊ शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है और यह फलों में विकृति भर रहा है। आखिर इस समस्या का हल क्या हो सकता है? इस सवाल का जवाब है कि सरकारी स्तर पर सख्ती बरतने के बाद ही कुछ सालों मंे इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। यदि शहर से सटे इलाकों से ईंट के भट्ठों को नहीं हटाया गया तो हर साल आम का उत्पादन धीरे-धीरे कम होता जाएगा। किसान वैज्ञानिक डाॅ. सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि ईंट के भट्ठों को हटाने के लिए यहां प्रयास ही नहीं किए गए। सालों पहले न्यायालय के आदेशों के बाद चिमनियों में बदलाव तो हुआ, लेकिन इसमें इस्तेमाल की जा रही उपजाऊ मिट्टी और निकलने वाले धुएं का विकल्प नहीं तलाशा गया। ऐसे में यह केवल आम के लिए ही नहीं, तमाम अन्य कृषि आधारित फसलों के उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
फल के निचले हिस्से से करता है प्रवेश –
कोयलिया एक ऐसा फसली रोग है, जो आम में देखा जाता है। ज्यादातर यह किसी ईंट के भट्ठे के आस-पास वाले बाग में अपनी पैठ बनाता है। आम को अपना ठिकाना बनाने वाला यह रोग ज्यादातर तो फल के निचले हिस्से को अपनी चपेट में लेता है और फिर यहां से ऊपर की ओर बढ़ता है। यह हिस्सा काला होकर कड़ा हो जाता है। इसके हावी होने से अमिया का आकार बढ़ना थम जाता है। हालांकि, शुरूआती दिनों में किए गए प्रयासों से इस विकार को आने से भी रोका जा सकता है। कुछ जागरूक किसान प्राथमिक एहतियात बरत कर आम के उत्पादन को बढ़ाने में योगदान करते हैं। यह उपाय काफी सरल भी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब फल दाने के बाराबर हो, तभी बोरेक्स का छिड़काव कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया धुलाई से अलग होती है, लेकिन किसान इसे धुलाई के रूप में करते हैं। यदि 15 दिन बाद दूसरी धुलाई कर दी जाए, तो इस रोग के फैलने का डर नहीं रहता है।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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