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Swami Vivekananda: जब मृत्यु का आभास होने पर लिया था बड़ा फैसला, जानें स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कुछ रोचक बातें

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नई दिल्लीः भारत के युगपुरुषों में गिने जाने वाले स्वामी विवेकानंद युवा पीढ़ी के लिए आदर्श माने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हैं, जिन्होंने हिमालय की कंदराओं में जाकर स्वयं के मोक्ष के प्रयास नहीं किये बल्कि भारत के उत्थान के लिए अपना जीवन खपा दिया। विश्व धर्म सम्मेलन के मंच से दुनिया को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने का सामर्थ्य स्वामी विवेकानंद में ही था, क्योंकि विवेकानंद अपनी मातृभूमि भारत से असीम प्रेम करते थे। भारत और उसकी उदात्त संस्कृति के प्रति उनकी अनन्य श्रद्धा थी। समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो स्वामी जी या फिर अन्य महान आत्माओं के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत की सेवा का संकल्प लेते हैं। रामजी की गिलहरी के भांति वे भी भारत निर्माण के पुनीत कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं। परन्तु भारत को जानते नहीं, इसलिए उनका गिलहरी योगदान भी ठीक दिशा में नहीं होता। आएये जानतें है स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कुछ रोचक बातें...

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मृत्यु का आभास होने का लिया यह निर्णाय

अपने पत्र में स्वामी विवेकानंद ने हैरान करने वाले सच का जिक्र किया है कि जब वह काशी में थे तो उन्होंने ये आभास हो गया था कि अब उनकी मृत्यु होने वाली है। वह अपने जीवनकाल में पांच बार काशी गए थे। लेकिन अपनी मृत्यु का आभास होने के बाद ये उनकी आखिरी काशी यात्रा थी। इसके बाद 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। जब उनका निधन हुआ तो विवेकानंद जी 39 वर्ष पांच माह, 24 दिन के थे। इसी वर्ष वह बनारस गए। एक माह वहीं ठहरे और बीमार होने के कारण स्वास्थ्य लाभ लिया। इस दौरान स्वामी विवेकानंद ने जो निर्णय लिया वह भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के तौर पर दर्ज हो गई।

स्वामी विवेकानंद ने मृत्यु का आभास होने के बाद दो निर्णय लिए थे। जिसमें से एक बेहद कठोर था। काशी में भ्रमण के दौरान ही उन्होंने शिकागो जाने का निर्णय लिया, जहां धर्म संसद में उनका भाषण एक ऐतिहासिक घटना बन गई। वहीं उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह मंत्र या साधयामि यानी आदर्श की उपलब्धि करेंगे, अगर ऐसा नहीं कर सके तो देह का ही नाश कर देंगे।

स्वामी विवेकानंद को जीवन के आखिरी दिनों में बौद्ध धर्म का भी ज्ञान हुआ, जिसके बारे में उन्होंने अपने पत्र में लिखा है। ये पत्र स्वामी स्वरूपानंद को लिखे गए थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा कि बौद्धों ने शैवों के तीर्थ स्थल को लेने का प्रयास किया लेकिन असफल होने पर उन्हीं के नजदीक नए स्थान बना लिए। जैसे बोधगया, सारनाथ आदि।

गौ प्रचारकों को दिया उपदेश

वहीं विवेकानंद ने गौ प्रचारकों उपदेश देते हुए कहा था कि इंसान के पाप के कारण अकाल पड़ा तो गायों के कर्मों के कारण वह कसाई के पास नहीं पहुंच सकती। उन्होंने आगे कहा कि 'जो सभा-समिति इंसानों से सहानुभूति नहीं रखती, भाइयों को भूखा मरते देख एक मुट्ठी अनाज तक नहीं दे सकती, लेकिन पशु-पक्षियों के लिए बड़े पैमाने पर अन्न वितरण करती है, उस सभा-समिति के साथ मैं जरा भी सहानुभूति नही रखता हूं।'

देश की आजादी का उपदेश

स्वामी विवेकानंद के विचार खुद बताते हैं कि वे आजादी के लिए क्या करना चाहते थे या क्या कर रहे थे। उनका कहना था, “यदि किसी व्यक्ति को अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए कार्य करना हो, तो उसे बलिदान के लिए तैयार रहना होगा। व्यक्ति तब तक बलिदान नहीं दे सकता, जब तक उसके मन में मातृभूमि के लिए प्रेम न हो। जब तक असीम प्रेम न हो, तब तक बलिदान संभव नहीं है।” वे हमेशा लोगों को देश की आजादी के लिए तैयार करने की बात करते रहते थे।

आज जब हम स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तब हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वामी विवेकानंद ने भारत माता के अनेक सपूतों के मन में संघर्ष करने की प्रेरणा पैदा की। क्रांति पथ पर स्वयं को समर्पित करने की प्रेरणा जगाई। उनके मन इस प्रकार तैयार किये कि देवताओं की उपासना छोड़कर भारत माता की भक्ति में लीन हो जाएँ। उन्होंने दृढ़ होकर कहा- 'आगामी 50 वर्षों के लिए हमारा केवल एक ही विचार केंद्र होगा- और वह है हमारी महान मातृभूमि भारत।

दूसरे से व्यर्थ के देवताओं को उस समय तक के लिए हमारे मन से लुप्त हो जाने दो। हमारा भारत, हमारा राष्ट्र- केवल यही एक देवता है, जो जाग रहा है, जिसके हर जगह हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं- जो सब वस्तुओं में व्याप्त है। दूसरे सब देवता सो रहे हैं। हम क्यों इन व्यर्थ के देवताओं के पीछे दौड़ें और उस देवता की- उस विराट की - पूजा क्यों न करें, जिसे हम अपने चारों ओर देख रहे हैं। जब हम उसकी पूजा कर लेंगे तभी हम सभी देवताओं की पूजा करने योग्य बनेंगे।'

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