kheti kisani- लखनऊः खेती करने के लिए क्षेत्र की कोई सीमा नहीं है। तराई, तटीय यहां तक कि पहाड़ों पर भी खेती के जरिए किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी तरह जल में भी तमाम तरह की फसलें तैयार की जा रही हैं, अब इनको पारंपरिक ढर्रे में लाने के लिए कोशिशें चल रही हैं। यदि किसान चाहें तो जल में भी खेती कर सकते हैं, इसमें कमाई भी मोटी हो सकती है। बारिश के दौरान ही इसकी शुरूआत की जाती है और सर्दी के शुरूआती दिनों में ही लाभ मिलने लगता है।
पानी में सिंघाड़ा की खेती (kheti kisani) हमारी परंपरा में शामिल रही है। इससे अच्छी आय मिल सकती है। इसे नकदी फसल भी कहा जाता है। इस सिंघाड़े की खेती में कुछ बदलाव भी किए जाने लगे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सिंघाड़े का इस्तेमाल सब्जी, फल या सूप और औषधि में किया जाता है इसलिए इसके ज्यादा दिन टिकने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करें और ज्यादा दिन लाभ कमाएं। डॉ अंबेडकर विश्वविद्यालय में हार्टिकल्चर प्रोफेसर डॉ रवि प्रकाश वर्मा ने बताया कि सिंघाड़े को अन्य राज्यों की फसल माना जाता है, जबकि यह यूपी में भरपूर मात्रा में उगाया जाता है। पश्चिम यूपी में बरेली से सहारनपुर तक यह काफी दिनों तक ताजा मिल जाता है।
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इस काम से किसानों जल्द मिलेगा फायदा
सिंघाड़े के पौधे के लिए एक से दो फीट तक पानी होना चाहिए। जहां पर दोमट या बलुई दोमट मिट्टी है, वहां पर इससे ज्यादा लाभ मिल सकता है। जलीय फसल होने के नाते मानसून के समय बारिश के साथ ही सिंघाड़े की बुवाई शुरू हो जाती है। जून में तेज गर्मी होती है, लेकिन बारिश भी होने लगती है। बिना किसी परवाह के जून में बुवाई करने वाले किसानों को यह जल्द ही लाभ देने लगता है। तमाम किसान इसे जुलाई में भी बोते हैं। यदि आप सिंघाड़े की खेती करना चाहते हैं, तो 15 अगस्त तक इसे लगा सकते हैं। जो किसान खुद पौधे तैयार करते हैं, वह फरवरी में ही बीज बो देते हैं। दो माह बाद इन पौधों को रोपण के लिए एक मीटर लंबाई में तोड़ लेते हैं और पानी में गाड़ देते हैं।
उदासीन बना हुआ है उद्यान विभाग
सिंघाड़े फसल को विस्तार देने की जिम्मेदारी उद्यान विभाग की है, लेकिन वह इसके प्रति काफी उदासीन है। यहां तक कि बीज निगम ने भी सीजन में किसानों को किसी प्रकार से प्रशिक्षण नहीं दिलाया। किसानों को फरवरी में भी बीजों की किल्लत बनी रहती है। कुछ निजी संस्थानों की ओर से बीते साल लाल छिलके और हरे छिलके वाले सिंघाड़े के बीज दिए गए थे। वह इस साल भी बाजार में मिलेंगे। यह चार माह में तैयार होता है और छह माह तक हरा रहता है।
(रिपोर्ट- शरद त्रिपाठी, लखनऊ)
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