बिहार का पहला और देश का 39 वां रामसर साइट बना कावर झील, जानें इसकी खासियत

बेगूसरायः एशिया में शुद्ध जल (वेट लैंड एरिया) की सबसे बड़ी झील और पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) कावर झील की हालत अब बदलने वाली है। 2019 में केन्द्र सरकार ने जलीय इको सिस्टम संरक्षण केन्द्रीय प्लान के तहत देश के एक सौ झीलों में काबर को भी शामिल किया था। इसके बाद अब कावर झील को रामसर साइट में शामिल कर अंतर्राष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड घोषित कर दिया गया है। काबर बिहार का पहला और भारत का 39 वां रामसर साइट होगा। इसकी जानकारी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने गुरुवार को ट्वीट कर दी है।

उन्होंने कहा है कि बिहार को अपना पहला रामसर साइट मिल गया है। बेगूसराय में काबरताल, अंतर्राष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड बन गया है। यह प्रवासी पक्षियों और जैव विविधता की आबादी के लिए मध्य एशियाई फ्लाईवे का एक महत्वपूर्ण वेटलैंड है। इसके साथ अब भारत में 39 रामसर साइट हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के सहयोग से इसे पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित कर संरक्षित करने के लिए नवम्बर 2019 में केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जलीय इको संरक्षण सिस्टम प्लान के तहत कावर वेटलैंड विकास के लिए प्रथम किस्त में 32 लाख 76 हजार आठ सौ रूपया जारी किया था। जिससे जलीय जीवों का विकास, वन्य जीवों का विकास, वेटलैंड प्रबंधन और जल संरक्षण आदि के काम कराये जाएंगे।

बदहाल कावर झील के विकास के लिए राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने 25 जुलाई 2019 को सदन में शून्यकाल के दौरान सवाल उठाया था। जिसके बाद जलीय इको सिस्टम के केन्द्रीय प्लान के तहत इसकी स्वीकृति मिली। बिहार के बेगूसराय स्थित कावर झील को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में प्रदान किया था। इस बर्ड संचुरी में ठंड बढ़ने के साथ ही साइबेरिया समेत सात समुद्र पार कर अन्य देशों से आने वाले मेहमान पक्षी लालसर, दिधौंच, सरायर, कारण, डुमरी, अधंग्गी, बोदइन एवं कोइरा आदि चिड़ियों की चहचहाहट गूंजती रही है। खास करके अधिक पानी वाले महालय, कोचालय, रजौड़ा डोव एवं बहोरा डोव में विदेशी मेहमानों की संख्या ज्यादा दिखती है। वहीं, जरल्का, धरारी, मेशहा, धनफर, पटमारा, पइनपीवा, भरहा, दशरथरही, लरही, धनफर, भिलखरा, गुआवारी, सतावय डोव, सखीया डेरा एवं बोटमारा आदि बहियार इलाकों में भी पक्षियों की चहल पहल तेज रहती है।

झील क्षेत्र में साइबेरियाई देशों, रुस, मंगोलिया, चीन आदि देशों से करीब 57 प्रजाति के पक्षी आते हैं। बीते वर्षों में कावर झील क्षेत्र में 108 प्रकार के देसी, विदेशी पक्षियों की पहचान की गई है। प्रवासी पक्षी ठंड शुरू होते ही नवम्बर माह से आना शुरू कर देते हैं। करीब तीन माह के प्रवास के बाद फरवरी मार्च में वापस अपने देश लौट जाते हैं। प्रथम पंचवर्षीय योजना में तात्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने नहर बनवाकर कावर को बूढ़ी गंडक नदी से कनेक्ट कर दिया था। इसके बाद 6311 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस झील को 1984 में बिहार सरकार ने पक्षी विहार का दर्जा दिया गया।