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प्राकृतिक खूबसूरती और आस्था का केंद्र है Himachal का यह गांव, दूर-दूर से यहां आते हैं पर्यटक

Kalpa village in Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटन स्थल कल्पा गांव, हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले किन्नौर के मुख्यालय रिकांग पियो से लगभग सात किलोमीटर दूर सतलज नदी घाटी के एक तरफ स्थित है। कल्पा गांव अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। गांव और इसके आसपास का खूबसूरत नजारा देखने के लिए हर साल सैकड़ों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बात करें तो कल्पा गांव में प्रसिद्ध मां आदि शक्ति देवी चंडिका का पवित्र स्थान (प्राचीन किला) स्थित है। इसके साथ ही यहां एक प्राचीन बौद्ध मंदिर और तिब्बती पैगोडा शैली में बना श्री विष्णु नारायण नागिन जी का मंदिर भी है। मां आदि शक्ति देवी चंडिका (प्राचीन किला) के प्रांगण से किन्नर कैलाश के भी दर्शन होते हैं और दूर-दूर तक प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा दिखता है। कल्पा गांव के चारों ओर बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं प्रकृति का अद्भुत नजारा पेश करती हैं। धार्मिक दृष्टि से कल्पा गांव के आसपास पवित्र देवी-देवताओं के स्थान और बौद्ध मंदिर हैं, जिनका दर्शन कर श्रद्धालु और पर्यटक यहां की दिव्य संस्कृति से परिचित हो सकते हैं।

सर्दियों में 5 फीट तक जम जाती है बर्फ

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कल्पा गांव समुद्र तल से करीब 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों के दौरान यहां लगभग 4-5 फीट बर्फ गिरती है और यहां का तापमान शून्य से 5 से 10 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है। गर्मी और मानसून के मौसम में यहां का मौसम बेहद सुहावना रहता है। कल्पा गांव में सेब के साथ-साथ चेरी और खुबानी के भी बगीचे हैं।

चिलगोजा की देशभर में डिमांड

यहां प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पेड़ पाइन नट्स भी बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। चिलगोजा दुनिया का एकमात्र पेड़ है जो केवल भारत में रिकांग पियो, कल्पा और हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के आसपास के क्षेत्रों और अफगानिस्तान में पाया जाता है। चिलगोजा से प्राप्त प्राकृतिक सूखा फल बाजार में औसतन 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है और इसकी काफी मांग है। इसके अलावा स्थानीय लोग पारंपरिक फसलें जैसे कोदा, फाफरा, ओगला, जौ, चौलाई, राजमाह, गेहूं आदि भी बोते हैं।

चिलटा, चुलफांटिग व रेमो थूक्पा खाना न भूलें

अगर कल्पा गांववासियों के पोशाक की बात करें तो महिलाएं जहां दोडू, चोली, पट्टू, पारंपरिक किन्नौरी टोपी व गाच्छी पहनती हैं तो वहीं पुरूष किन्नौरी टोपी, छूबा (लंबा कोट), ऊनी पायजामा, बासकोट इत्यादि पहनते हैं। यहां विभिन्न तरह के पारंपरिक व्यंजन जैसे ओगला, फाफरा इत्यादि से बनने वाला चिलटा, मीठी चूली से बनने वाला पकवान चुलफांटिग, सत्तू तथा चूली से बनने वाला रेमो थूक्पा खाये जाते हैं। कल्पा गांव में फरवरी-मार्च महीने में सुस्कर मेला (रौलाने), कश्मीर मेला, सितंबर माह में फुल्याच पर्व का भी आयोजन किया जाता है। यहां के लोग हमकज़ (स्थानीय बोली) बोलते हैं जो कल्पा क्षेत्र के लोगों की बोल-चाल की भाषा है।

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चीनी गांव के नाम से जाना जाता था कल्पा

पुरानी हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क भी कल्पा गांव से होकर गुजरती है। कल्पा प्राचीन काल में भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो कल्पा को पहले चीनी गांव के नाम से भी जाना जाता था। 01 मई, 1960 को जिला किन्नौर के अस्तित्व में आने के बाद कल्पा जिला मुख्यालय बन गया। बाद में जिला मुख्यालय को 90 के दशक में कल्पा से लगभग 7 कि.मी. नीचे रिकांग पिओ में स्थानांतरित किया गया है। वर्तमान में रिकांगपिओ किन्नौर जिले का मुख्यालय है।

पर्यटकों के लिए ठहरने के कई इंतजाम

कल्पा गांव में पर्यटकों के ठहरने के लिए कई सरकारी विश्राम गृहों के अलावा हिमाचल पर्यटन विकास निगम के होटल, कई होम-स्टे और निजी होटल भी हैं। कल्पा राज्य की राजधानी शिमला से शिमला-काजा मार्ग पर सड़क मार्ग से लगभग 260 किमी दूर है। पर्यटकों के आकर्षण के अलावा यहां 40 किलोमीटर का इलाका प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। दूर सांगला और 70 कि.मी. आप छितकुल घाटी भी जा सकते हैं। इसके अलावा, कोई विश्व प्रसिद्ध प्राकृतिक झील नाको की प्रशंसा भी कर सकता है जो लगभग 120 किमी दूर है।

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