Home देश कैलाश सत्यार्थी ने की एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पारित करने की मांग

कैलाश सत्यार्थी ने की एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पारित करने की मांग

नई दिल्लीः नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने जबरिया बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग (दुर्व्यापार) के तेजी से बढ़ते मामलों पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक दलों और सांसदों से संसद के आगामी मानसून सत्र में एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पारित करने की मांग की है।

बिल का पारित होना उन 12 लाख भारतीयों की शानदार जीत कही जाएगी, जिन्होंने साल 2017 में सत्यार्थी के नेतृत्व में देशव्यापी ‘भारत यात्रा’ की थी और मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग बिल बनाने की मांग उठाई थी। उल्लेखनीय है कि बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ 35 दिनों तक चली यह ऐतिहासिक जन-जागरुकता यात्रा तब 22 राज्यों से गुजरते हुए 12 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी। सत्यार्थी ने तब ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत कानून बनाने की मांग की थी।

सत्यार्थी की इस मांग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए देशभर के बाल अधिकार कार्यकर्ता, सिविल सोसायटी सदस्य और मुक्त बाल मजदूर नेता भी जन-जागरुकता अभियान चलाएंगे और अपने-अपने स्थानीय सांसदों से मिलेंगे और उनसे एंटी ट्रैफिकिंग बिल पास करने की अपील करेंगे।

साल 2018 में तत्कालीन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्स (प्रीवेंशन, प्रोटेक्श्न एंड रीहैबिलिटेशन) बिल 2018 को लोकसभा में पेश किया था। लोकसभा में यह बिल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पेश न हो पाने से यह पारित नहीं हो पाया। 2019 में नई लोकसभा बनने से इसका अस्तित्व खत्म हो गया और अब इसे नए सिरे से संसद में पेश कर लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराना होगा। तभी यह बिल कानूनी रूप ले पाएगा।

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सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हर दिन आठ बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों की संख्या बढ़कर 2,914 हो गई, जो 2018 में 2837 थी। इस तरह एक साल के दौरान पीड़ित बच्चों की संख्या में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। बाल दुर्व्यापार की रिपोर्ट दर्ज करने वाले छह शीर्ष राज्य हैं-राजस्थान, दिल्ली, बिहार, ओडिशा, केरल और मध्य प्रदेश। देश में गुमशुदा बच्चों की तादाद भी लगातार बढ रही है। ज्यादातर गुमशुदा बच्चे ट्रैफिकिंग के ही शिकार होते हैं। एनसीआरबी के अनुसार साल 2019 में 73,138 बच्चों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।

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