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प्रकाश पादुकोणः मैरिज हॉल से शुरू हुआ सफर वर्ल्ड चैंपियन पर हुआ पूरा

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लखनऊ: भारत में खेल का मतलब क्रिकेट ही माना जाता है, लेकिन आज फिर भी बैडमिंटन, टेनिस और हॉकी को भी लोग देखते हैं, लेकिन भारत में बैंडमिंटन को पहचान दिलाई पूर्व बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण ने। जिस समय देश में क्रिकेट और हॉकी को ही खेल के रूप में पसंद किया जाता था, उस समय प्रकाश पादुकोण ने बैडमिंटन को इस देश में पहचान दिलाई और विश्व में बैडमिंटन के क्षेत्र में भारत को एक अलग मुकाम दिलाया। पूर्व बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण आने वाले 10 जून को अपने जीवन के 66 वर्ष पूरे कर रहे हैं। डालते हैं एक नज़र उनके चैंपियन बनने के सफर पर।

लगातार 7 साल तक रहे नेशनल चैंपियन

प्रकाश पादुकोण का जन्म 10 जून 1955 को कर्नाटक के बेंगलूरू शहर में हुआ था। उनके पिता रमेश पादुकोण मैसूक बैडमिंटन एसोसिएशन में सचिव थे। पिता से ही प्रकाश ने बैडमिंटन की बारीकियां सीखीं। उनके समय में आज की तरह अकादमियां नहीं थीं और न ही प्रेक्टिस के लिए कोर्ट या स्टेडियम आज की तरह हुआ करती थीं। ऐसे में उन्होंने अपने घर के सामने बने कैनरा यूनियन बैंक के मैरिज हॉल में प्रेक्टिस करके बैंडमिंटन की एबीसीडी सीखी। प्रकाश का पहला ऑफिशियल टूर्नामेंट कर्नाटक स्टेट जूनियर चैंपियनशिप 1970 था। यहां वह पहले ही दौर में हार गए थे, लेकिन अपनी मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने दो वर्ष बाद इस टूर्नामेंट में फिर हिस्सा लिया और इस बार खिताब को अपने नाम किया। उसके बाद प्रकाश पादुकोण यहीं नहीं रुके। उन्होंने फिर सीनियर नेशनल चैंपियनशिप भी जीती। चैंपियन बनने का सफर जो शुरू हुआ तो उन्हें लगातार 7 वर्ष तक कोई हरा नहीं सका। 1972 से 1978 तक वह नैशनल चैंपियन रहे। उन्होंने भारतीय बैडमिंटन के बारे में दुनिया के दृष्टिकोण पर गहरा असर डाला और यह दिखाने की कोशिश की कि चीन के खिलाड़ियों का किस तरह से सामना किया जा सकता है। वह पहली बार 15 साल की उम्र में जूनियर और नेशनल चैंपियन बने। साल 1971 में उन्होंने बालक वर्ग में और पुरुष एकल का खिताब अपने नाम किया।

कॉमनवेल्थ और ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप में बिखेरा जलवा

इसके बाद प्रकाश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वो दिन ब दिन अपने प्रदर्शन को निखारते गए और खिताबों को अपने नाम करते गए। इसके बाद साल 1978 में कनाडा के इडमॉन्टॉन में कॉमनवेल्थ गेमों का आयोजन किया गया। यह वह वक्त था जब बैडमिंटन में मलेशिया, डेनमार्क, इंडोनेशिया और इंग्लैंड जैसे देशों की तूती बोलती थी। प्रकाश पादुकोण ने भी इन खेलों में हिस्सा लिया। दुनिया के स्टार शटलरों को धूल चटाते हुए उन्होंने पुरुष एकल का गोल्ड मेडल अपने नाम किया। यह उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा। इसके साथ ही वो ऐसा करने वाले पहले भारतीय बने। इस कीर्तिमान के साथ ही प्रकाश पादुकोण ने भारत में बैडमिंटन का एक नया अध्याय लिखा। इसके बाद 1980 में उन्होंने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतकर तहलका मचा दिया।

 

23 मार्च, 1980 को 24 साल के प्रकाश पादुकोण ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप के पुरुष एकल वर्ग के फाइनल में इंडोनेशिया के लियेम स्वी किंग को 15.3, 15.10 से हराकर इंग्लैंड में भारतीय तिरंगे की शान को बढ़ाया था। ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय बने। ऑल इंग्लैंड चैंपियन बनने के बाद प्रकाश वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन पर काबिज हो गए। उस समय उन्होंने मौजूदा चैंपियन और खिताब के प्रबल दावेदार किंग की लगातार तीसरी बार इस खिताब को जीतने के सपने को चकनाचूर किया था। इसके बाद भारत की दुनिया में बैडमिंटन के क्षेत्र में नई पहचान बनी। इस टूर्नामेंट का चैंपियन बनना सिर्फ प्रकाश पादुकोण के लिए ही नहीं बल्कि भारत के बैडमिंटन इतिहास के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। जिसने विश्व पटल पर भारत का डंका बजवाया।

प्रकाश ने 1981 में भी ऑल इंग्लैंड चैंपिनशिप के फाइनल में जगह बनाई लेकिन इस बार वह चूक गए। साल 1980 से 1985 के बीच प्रकाश पादुकोण ने लगभग 15 इंटरनेशनल खिताब अपने नाम किए। देखते ही देखते प्रकाश भारतीय बैडमिंटन के स्टार बन गए जिसने भारत में बैडमिंटन का वर्चस्व कायम किया। बैडमिंटन में अपने इस शानदार योगदान के लिए प्रकाश पादुकोण को 1972 में अर्जुन अवॉर्ड और 1982 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। प्रकाश ने साल 1991 में बैडमिंटन से संन्यास ले लिया। इस खेल को अलविदा कहने के बाद वह कुछ समय के लिए भारतीय बैडमिंटन संघ के चेयरमैन भी रहे। साल 1993 से 1996 तक वह भारतीय नेशनल बैडमिंटन टीम के कोच भी रहे। साल 2017 में बाई ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवेंट पुरस्कार से सम्मानित किया। गौरतलब है कि इस समय बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस में शामिल दीपिका पादुकोण प्रकाश पादुकोण की ही बेटी हैं और अभिनेता रनवीर सिंह उनके दामाद हैं।

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