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लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को लेकर नसीहत देने वालों को जयशंकर ने लगाई फटकार

नई दिल्लीः विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की स्थिति के बारे में विदेशी संस्थाओं और नेताओं की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि भारत को इस संबंध में किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।

जयशंकर ने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में भाग लेते हुए कहा कि दुनिया में कुछ ऐसे स्वयंभू न्यायाधीश है जो दूसरों को लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के बारे में प्रमाण पत्र जारी करते हैं। उन्होंने अपने खुद के नियम और मानदंड बनाए हुए हैं जिसके जरिए वह दूसरों का मूल्यांकन करते हैं। भारत उन देशों में नहीं है जिसे इन लोगों की वाहवाही की दरकार हो। उन्होंने कहा कि इन्हें इस बात को लेकर परेशानी है कि भारत उनकी राय के अनुसार क्यों नहीं चल रहा।।

कार्यक्रम में विदेश मंत्री से अमेरिका के थिंक टैंक ‘फ्रीडम हाउस’ और स्वीडन की संस्था ‘वैरायटी डेमोक्रेसी’ की रिपोर्ट के बारे में पूछा गया था। इन रिपोर्टों में भारत को आंशिक रूप से आजाद और लोकतंत्र की बजाए कुछ हद तक निरंकुश शासन तंत्र वाला देश बताया गया था। विदेश मंत्री ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मामला लोकतंत्र बनाम तानाशाही का नहीं है, वास्तव में यह पश्चिमी देशों और उनकी संस्थाओं के पाखंड और दोहरे मानदंड से जुड़ा है।

जयशंकर ने कहा कि कोई कुछ भी कहे यह हकीकत है कि भारत में चुनावों की विश्वसनीयता को लेकर कोई सवाल खड़े नहीं किए जाते। अन्य देशों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। विदेश मंत्री का संकेत अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति चुनाव की ओर था जिसके नतीजों को लेकर वहां अभी तक विवाद चल रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव नतीजों को खुली धोखाधड़ी बताया था।

विदेश मंत्री ने भारत में नागरिक स्वतंत्रता के हनन, उग्र राष्ट्रवाद और धार्मिक कट्टरपंथ के बारे में पूछे जाने पर कहा कि हमारी सरकार को ये लोग हिंदू राष्ट्रवादी सरकार की संज्ञा देते हैं। हम राष्ट्रवादी हैं लेकिन कोरोनावायरस के दौरान पूरी दुनिया ने देखा है कि भारत ने किस प्रकार 70 देशों को वैक्सीन भेजी है। सरकार ने देशवासियों की जैसी चिंता की है वैसा ही ध्यान अन्य देशों के नागरिकों का भी रखा है। उन्होंने तल्ख अंदाज में पूछा कि अंतर्राष्ट्रीयता की बात करने वालों को बताना चाहिए कि उन्होंने किन देशों को कितने कितनी वैक्सीन भेजी है।

किसान आंदोलन के बारे में पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग व पॉप स्टार रिहाना आदि के ट्वीट पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि यह पूरी कवायद मासूमियत भरी नहीं थी। ट्वीट के जरिए भारतीय दूतावासों और राजनयिक मिशन के सामने प्रदर्शन करने के लिए लोगों को उकसाया गया था। पूरी दुनिया ने देखा है कि किस तरह कनाडा और अन्य देशों में भारतीय दूतावासों और राजनयिक मिशनों के सामने प्रदर्शन किए गए। भारतीय राजनयिकों को धमकी दी गई। जयशंकर ने कहा कि विदेश मंत्री के तौर पर यह उनकी जिम्मेदारी थी कि वह भारतीय मिशनों और उनके कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

धार्मिक सहिष्णुता के बारे में विदेश मंत्री ने कहा कि सभी नागरिकों को अपने धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं और मूल्यों पर कायम रहने का अधिकार है। पश्चिमी देशों की कुछ परिपाटी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में हम किसी धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर पद की शपथ नहीं देते जैसा कि अन्य देशों में होता है।

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उल्लेखनीय है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देशों में प्रतिनिधि और नेता बाइबिल पर हाथ रखकर पद की शपथ लेते हैं। विदेश मंत्री ने विदेशी संस्थाओं और मानवाधिकार संगठनों पर आक्षेप करते हुए कहा कि भारत आज आत्मविश्वास से भरा हुआ देश है। उसे यह भारत को उन देशों से प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है जो अपना एजेंडा जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत आज वह देश नहीं है जो दूसरों के इशारों पर उनका खेल खेले।

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