पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेल का है विशेष रिवाज

कोलकाता: गुरुवार को नवमी के साथ ही पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा घूमने का उत्साह लगभग खत्म हो जाता है और दशमी के दिन प्रतिमा विसर्जन की तैयारियां शुरू हो जाती है। राजधानी कोलकाता में आयोजित कमोबेश चार हजार दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन शुक्रवार को शुरू हो जाएगा, लेकिन इसी दिन राज्य में सिंदूर खेल का एक अलग रिवाज है जो राज्य की दुर्गा पूजा को बाकी देश से खास बनाता है।

दरअसल सैकड़ों सालों से राज्य के जमींदार घराने और राजवाड़े में मां दुर्गा की पूजा धूमधाम से होती रही है एवं सालों पहले इस सिंदूर खेल की शुरुआत हो गई थी। इसमें पूजा मंडप और आसपास की महिलाओं समेत जिन घरों में मां की प्रतिमा स्थापित की गई है वहां बड़ी संख्या में सुहागन दैनिक तौर पर लगाई जाने वाली सिंदूर को लेकर मां के चरणों में लगाती हैं। उसके बाद उसी सिंदूर से अन्य सुहागन महिलाओं की मांग भी भरी जाती है। साथ ही उसे अबीर की तरह गालों पर भी लगाया जाता है। महिलाएं इसके साथ ही नाचती गाती हैं और झूमती भी हैं। दशमी के दिन कोलकाता समेत राज्यभर में सिंदूर खेला की धूम मचेगी। इसके लिए महिलाओं ने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी सिंदूर खेल के लिए बड़े पूजा पंडालों में 60 और छोटे पंडालों में 15 लोगों के प्रवेश की अनुमति दी है। हटखोला के दत्त बाड़ी में तो अष्टमी के दिन ही सिंदूर खेल संपन्न हो गया है लेकिन कोलकाता के अन्य जमींदार घराने जैसे शोभा बाजार राजबाड़ी बनर्जी बाड़ी और बोस परिवार में बड़े पैमाने पर सिंदूर खेल की तैयारियां गुरुवार से ही शुरू कर दी जाती हैं। महिलाएं इसके लिए सिंदूर और पहनने के लिए कपड़े तैयार कर रख चुकी हैं।

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जयश्री घोष नाम की एक महिला ने बताया कि दुर्गा पूजा के अंत में सिंदूर खेल महिलाओं के लिए बेहद अहम है क्योंकि मां दुर्गा के आशीर्वाद से सुहाग की लंबी उम्र की कामना की जाती है। ऐसी कोई महिला नहीं होगी जो अपने सुहाग को दीर्घायु नहीं बनाना चाहती हो। इसीलिए काफी धूमधाम से यहां यह खेल खेला जाता है। शुक्रवार सुबह से ही इसकी शुरुआत हो जाएगी।

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