अंतरराष्ट्रीय योग दिवस विशेषः कोरोना से जंग में योग बना कारगर हथियार

पटनाः योग विद्या हजारों वर्षो से अपना अस्तित्व बनाए हुए है, लेकिन कोरोना महामारी के बाद इसका महत्व और बढ गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका अन्वेषण भी गंभीरता के साथ शुरू हुआ है। कोरोना बीमारी के दौरान और उससे उबरने के बाद भी स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव पड़ा है। कोरोना काल में मनोवैज्ञानिक पीड़ा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को भी बढ़ा दिया है, जिसमें अवसाद और चिंता भी बढ़ाई है।

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पटना अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सक डॉ अनिल कुमार कहते हैं कि कोविड संक्रमण के कारण फेफड़ों के नाजुक हिस्सों को नुकसान पहुंचता है। फेफड़े कम एक्टिव रह जाते है जिससे ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड एक्सचेंज होना कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि अगर सही तरह से इलाज न हो तो जिंदगी भर फेफड़ों संबंधी परेशानी रह सकती है। जो मरीज मोटापा, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि से पीड़ित होने के अलावा कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके है और लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रह चुके हैं। उन्होनें कहा कि कोविड से ठीक हो चुके मरीजों के फेफड़े की धमनियों में ब्लॉकेज हो जाते है जिससे फेफड़े तक खून के संचार में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इसके अलावे भी कई तरह की परेशानियां भी पोस्ट कोविड में सामने आते हैं।

पद्मभूषण परमहंस निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि कोविड महामारी का सेहत पर व्यापक असर पड़ा है। न केवल शारीरिक स्वास्थ पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा है। दुनिया भर में इसका अलग-अलग स्तर पर व्यापक अध्ययन हो रहा है। इस महामारी के दौरान योग ने प्रभावी भूमिका अदा की। पोस्ट कोविड की स्थितियों से निपटने में योग की महत्वपूर्ण भूभिका है। निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि कोविड महामारी का सेहत पर व्यापक असर पड़ा है। न केवल शारीरिक स्वास्थ पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा है। दुनिया भर में इसका अलग – अलग स्तर पर व्यापक अध्ययन हो रहा है। इस महामारी के दौरान योग ने प्रभावी भूमिका अदा की। पोस्ट कोविड की स्थितियों से निपटने में योग की महत्वपूर्ण भूभिका है।

दुनिया भर के लोगों ने स्वस्थ और तरोताजा रहने और महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिग और अवसाद से लड़ने के लिए योग को अपनाया। कोविड रोगियों के मनो-सामाजिक देखभाल और पुनर्वास में भी योग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह उनके डर और चिंता को दूर करने में विशेष रूप से सहायक है। उन्होंने बताया कि योग का सार संतुलन है। इससे न केवल शरीर के भीतर या मन और शरीर के बीच संतुलन, बल्कि दुनिया के साथ मानवीय संबंधों में भी संतुलन बनाता है। योग माइंडफुलनेस, मॉडरेशन, अनुशासन और ²ढ़ता के मूल्यों पर जोर देता है। जब समुदायों और समाजों पर लागू किया जाता है, तो योग स्थायी जीवन के लिए एक मार्ग प्रदान करता है।

वर्ष 1963 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बिहार के मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की थी। स्थापना काल से लेकर आज तक, मानवता के कल्याण और उत्थान के लिए योग विज्ञान के प्रचार-प्रसार करता रहा है। सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी पद्भभूषण निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि योग को जीवनशैली के रूप में अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इससे स्वास्थ्य को सुधारेगा और शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी। मानसिक तथा भावनात्मक संतुलन होगा। जीवन में स्पष्टता, प्रसन्नता, सामंजस्य, संतोष, सकारात्मकता एवं रचनात्मकता को बनाए रखता है।

निरंजनानंद सरस्वती ने आज की युवा पीढ़ी की समस्याओं को बड़ी शिद्दत से महसूस किया और उन्होंने आधुनिक जीवन-पद्धति को ध्यान में रखकर योग साधना की एक ऐसी पद्धति का प्रतिपादन किया है, जिसे अपनाने वाले अपने जीवन में बदलाव स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। डॉ. अनिल कुमार भी कहते हैं कि पोस्ट कोविड सिंड्रोम के कारण उत्पन्न डिप्रेशन, तनाव व अन्य बीमारियों से बचने के लिए लोगों को योग, प्राणायाम, अनुलोम विलोम की सलाह देते हैं। फेफड़े की बीमारी से ग्रसित लोगों को तो योग प्राणायाम निश्चित तौर पर करना चाहिए। वैसे, उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना से डरने या घबराने की की जरूरत नहीं है।

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