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कोरोना महामारी के चलते भारी कर्ज में दबा भारत, लॉकडाउन लगा तो बदतर हो जाएगी स्थिति

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लखनऊः देश में एक बार फिर कोरोना वायरस के प्रकोप ने हाहाकार मचा रखा है। देश में कोरोना के नए मामले भारी संख्या में सामने आ रहे हैं और एक बार फिर देश में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। डर इस बात का सता रहा है कि कहीं पिछले साल की तरह इस बार फिर लॉकडाउन जैसे हालात न पैदा हो जाएं। पिछले बार के लगे लॉकडाउन से अभी आम आदमी से लेकर सरकार तक उबर भी नहीं पाई है। ऐसे में एक और बार लॉकडाउन का सामना करने की स्थिति में न ही आम आदमी है और न ही देश की सरकार। साल 2020 में देश को 24 मार्च से लेकर सितंबर तक देश को लॉकडाउन का सामना करना पड़ा था। जिसका नतीजा ये रहा कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से गर्त में चली गई। जिससे उबरने की सरकार अभी भी कोशिश कर रही है। हालत ये है कि कोरोना संकट की वजह से देश का कर्ज-जीडीपी अनुपात ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है। जो आंकड़े सामने आ रहे है, वो वास्तव में काफी हैरान करने वाले हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में देश का कर्ज-जीडीपी अनुपात 74 फीसदी से बढ़कर 90 फीसदी तक पहुंच गया है। यह जानकारी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट में प्रदान की गई है।

कोरोना-लॉकडाउन ने किया ऐसा हश्र

इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि साल 2020 में भारत का कुल उत्पादन अगर 100 रुपये का था, तो कर्ज का बोझ बढ़कर 90 रुपया हो गया। भारत को साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। देश में लगे लंबे लॉकडाउन की वजह से कई सेवाएं और सुविधाएं लंबे समय तक बाधित रहीं थीं। ज्ञात हो कि साल 2020 में भारत का कुल जीडीपी करीब 189 लाख करोड़ रुपये और कर्ज करीब 170 लाख करोड़ रुपये था। इससे स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि आईएमएफ की ओर से यह भी कहा गया है कि देश की अर्थव्यवस्था में अब जो सुधार हो रहा है, उसकी वजह से यह अनुपात घटकर 80 फीसदी तक आ सकता है। मालूम हो कि किसी देश के कुल कर्ज में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए गए कर्ज का योग होता है। इसको जब देश में एक साल के भीतर हुए कुल उत्पादन यानी सकल घरेलू उत्पाद से विभाजित करते हैं तो कर्ज-जीडीपी अनुपात हासिल होता है।

आईएमएफ के वित्तीय मामले विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पाओलो मॉरो ने जानकारी देते हुए बताया कि कोरोना महामारी से पहले साल 2019 में भारत का कर्ज अनुपात सकल घरेलू उत्पाद का 74 फीसदी था, लेकिन साल 2020 में यह जीडीपी के करीब 90 फीसदी तक आ गया है। यह बढ़त काफी ज्यादा है, लेकिन दूसरे उभरते बाजारों या उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का भी यही हाल है।

80 फीसदी तक आ सकता कर्ज

पाओलो मॉरो ने उम्मीद जताते हुए कहा कि हमारा अनुमान है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था सुधरेगी, कर्ज अनुपात में सुधार होगा। अर्थव्यवस्था में अच्छा सुधार हुआ तो मध्यम अवधि में यह अनुपात करीब 80 फीसदी तक आ जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि सबसे पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि लोगों और कंपनियों का सहयोग किया जाए, खासकर सबसे जोखिम वाले सेक्टर को। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि आम जनता और निवेशकों को यह फिर से भरोसा दिया जाए कि लोक वित्त नियंत्रण में रहेगा और एक विश्वसनीय मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे के द्वारा इसे किया जाएगा। आमतौर पर ज्यादातर उन्नत देशों में कर्ज जीडीपी अनुपात 40-50 फीसदी है। आपको बता दें कि साल 2014-15 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो देश का कर्ज-जीडीपी अनुपात 2014-15 में करीब 67 फीसदी था। वहीं भारत सरकार के बजट के अनुसार इस साल केंद्र सरकार के खर्च हुए हर 1 रुपये में से करीब 20 पैसा ब्याज भुगतान में ही चला जाएगा। बता दें कि पॉलिसी मीट में भी आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान 10.5 फीसदी ही दिया था। देश में ग्रोथ को कोविड की वजह से भारी मार पड़ी है। सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है। इसके अलावा आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में 7.5-8 फीसदी के संकुचन का अनुमान किया है।

क्या होता है डेट-जीडीपी अनुपात

डेट-जीडीपी अनुपात या सरकारी कर्ज अनुपात के जरिए किसी भी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता को दिखाता है, जिस देश का डेट-जीडीपी रेश्यो जितना ज्यादा होता है, उस देश को कर्ज चुकाने के लिए उतनी ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर किसी देश का डेट-जीडीपी अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफॉल्ट होने की आशंका उतनी अधिक हो जाती है।

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सबसे बड़ी वैश्विक मंदी से जूझ रही दुनिया

आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा है कि दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी वैश्विक मंदी से जूझ रही है। उन्होंने बुधवार 7 अप्रैल को आईएमएफ और विश्व बैंक की वार्षिक की शुरुआत में कहा कि आगे हालात बेहतर होने की उम्मीद है, क्योंकि लाखों लोगों को टीकाकरण और नीतिगत समर्थन से फायदा मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में कई असाधारण और मिले-जुले कदम उठाए गए। जार्जिवा ने कहा कि इन राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के बिना पिछले साल की वैश्विक मंदी तीन गुना बदतर हो सकती थी। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक अच्छी खबर है कि सुरंग के अंत में रोशनी दिख रही है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी वैश्विक मंदी की भरपाई हो रही है। जैसा कि आप जानते हैं, कल हमने अपने वैश्विक वृद्धि पूर्वानुमान को 6 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था।