बिहार चुनाव परिणामों के निहितार्थ


देश की जनता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू बरकरार है। बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन और विभिन्न राज्यों में उपचुनाव की 58 में से 40 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की जीत इसका प्रमाण है। बिहार विधानसभा चुनाव में अगर फिर से नीतीश कुमार की सरकार बन रही है तो इसके पीछे मोदी मैजिक प्रमुख है।

बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव का राष्ट्रीय जनता दल जहां 75 सीटें जीतकर सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरा है, वहीं भाजपा ने 74 सीटें हासिल की हैं। राजग को 124 सीटें मिली हैं, वहीं संप्रग को 111 सीटों पर संतोष करना पड़ा। चुनाव नतीजों ने एग्जिट पोल के दावों को धता बता दिया है। दस राज्यों में हुए विधानसभा उपचुनाव और बिहार के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए इतना साफ हो गया है कि जनता ने नोटबंदी, कोरोनाकाल में हुई परेशानियों और बेरोजगारी को बहुत महत्व नहीं दिया। उसने व्यापक राजनीतिक-प्रशासनिक अनुभव और सुयोग्य नेतृत्व को अपने लिए बेहतर माना। इस चुनाव में भाजपा जनता की पसंद बनकर उभरी है। यह और बात है कि विपक्ष ने ईवीएम का रोना आरंभ कर दिया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी बिल्कुल संभव नहीं बल्कि उसके इस विचार का समर्थन पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम ने भी किया है और कहा है कि विपक्ष को ईवीएम को दोष नहीं देना चाहिए।

एक्जिट पोल के नतीजों से लगा था कि रोजगार के मामले में बिहार की जनता ने तेजस्वी यादव के दस लाख रोजगार देने के वायदे को वरीयता दी लेकिन जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे लगता है कि तेजस्वी के दस लाख रोजगार के दावों पर 19 लाख को रोजगार देने का वादा भारी पड़ गया। जो लोग मोदी लहर को कमजोर बता रहे थे, उन्हें भी जोर का झटका लगा है।

वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 53, जदयू को 71, राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। लोकजनशक्ति पार्टी दो सीटों पर जीती थी। उस समय राजद सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी लेकिन इसबार के चुनाव में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। भाजपा दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है जबकि जिस जदयू के साथ मिलकर उसने चुनाव लड़ा है, वह राजद से काफी पिछड़ गई। कांग्रेस इस चुनाव में अपने पिछले रिकॉर्ड को छू भी नहीं पाई है। कांग्रेस की स्थिति बिहार में वामदलों से थोड़ी ही बेहतर है। अब तो यशस्वी यादव को भी लग रहा होगा कि गठबंधन धर्म के निर्वाह के चलते कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना नुकसानदेह रहा। इसबार सर्वाधिक सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ही थी लेकिन प्रदर्शन के मामले में वह भाजपा से एक सीट आगे रही। कांग्रेस और राजद के कंधे पर सवार होकर वामदल बिहार में राजनीतिक संजीवनी जरूर पा गए।

भाजपा ने एकबार फिर दोहराया है कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। चुनाव में तो वह पहले से ही यह बात कहती रही है लेकिन भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने जिस तरह रिजल्ट के बाद इस बावत बोलने की बात कही, उससे असमंजस की तस्वीर तो बनती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री, भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी नीतीश के नेतृत्व में सरकार बनाने की बात कह चुके हैं, ऐसे में भाजपा कोई नया स्टैंड लेगी, इसके आसार नहीं के बराबर हैं।

दो दशक में चार बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार वर्ष 2000 में भाजपा के समर्थन से पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, पर सिर्फ 7 दिन ही पद पर आसीन रह सके। वर्ष 2015 में 13वीं विधानसभा में राजग को 92 सीटें मिली थीं लेकिन किसी दल को बहुमत न मिलने से बिहार में राष्ट्रपति शासन लग गया। उसी साल छह माह बाद फिर चुनाव हुए जिसमें जदयू के 88 और भाजपा के 55 विधायक जीते और दोनों दलों ने मिलकर बिहार में सरकार बनाई। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। 2010 में भी 206 सीटों पर एनडीए की जीत हुई। 2014 आम चुनाव से ठीक पहले जदयू, एनडीए से अलग हो गया। वर्ष 2015 में जदयू और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इसमें जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन को 126 सीटें मिलीं। इसमें जदयू की 71 और राजद की 80 सीटें थीं। भाजपा को 53 सीटें मिलीं थीं। पर महागठबंधन महज तीन साल में टूट गया।

ताजा चुनाव में भाजपा दूसरा सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है तो उसके समर्थकों में मुख्यमंत्री पद अपने पास रखने की चाहत होगी लेकिन ऐसा करते वक्त उसे महाराष्ट्र की घटना भी याद करनी होगी। मुख्यमंत्री बनने के फेर में उद्धव ठाकरे ने भाजपा से बगावत कर राकांपा और कांग्रेस का दामन थाम लिया था। मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी तरह की जिद भाजपा और जदयू पर भारी पड़ सकती है। इसलिए भाजपा का पहला प्रयास नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने का होगा। ऐसे में दोनों दलों को विवेक से काम लेते हुए परस्पर राजनीतिक समन्वय बनाए रखना होगा।

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उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव की सात में छह सीटों पर भाजपा की जीत हुई। मध्य प्रदेश के उपचुनाव में भाजपा ने 28 में से 19 सीटों पर भाजपा और नौ सीटों पर कांग्रेस विजयी हुई है। गुजरात विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने सभी आठ सीटें अपने नाम कर ली हैं। नोटबंदी और देशबंदी से देश को बर्बाद करने के राहुल गांधी के आरोपों को उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश की जनता ने पूरी तरह नकार दिया।

सियाराम पांडेय