Home अन्य संपादकीय सामाजिक संकल्प से ही मिटेगा ‘दुराचार’ का बदनुमा कलंक!

सामाजिक संकल्प से ही मिटेगा ‘दुराचार’ का बदनुमा कलंक!

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार आज देश में हर दिन रेप के 86 केस दर्ज होते हैं, लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि इससे ज्यादा महिलाएं हैवानियत का शिकार होती हैं। ज्ञात हो कि बीते 09 अगस्त 2024 को बंगाल में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप-मर्डर मामले ने एक बार फिर देशवासियों में प्रबल जनाक्रोश भर दिया। महिलाओं के अधिकारों, उनकी सुरक्षा और आजादी के लिए सख्त कानून और दोषियों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई की माँग को लेकर बंगाल से लेकर दिल्ली तक पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया।

देशभर के रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल से मरीजों व तीमारदारों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस मसले पर खूब राजनीति चमकायी। बंगाल के डॉक्टर रेप-मर्डर मामले ने एक बार फिर इंसानियत को ऐसे झकझोरा था कि हर किसी को 2012 में निर्भया के साथ हुई वीभत्सता की याद आ गयी। वाकई समाज के हालात आज भी बिलकुल नहीं बदले हैं।

अपनों से ज्यादा खतरा ?

बेहद शर्म का विषय है कि आज हम सब उस बदनुमा समाज का हिस्सा बन चुके हैं जहां न छोटी बच्चियां सुरक्षित हैं, न स्कूल-कॉलेज जाने वाली किशोर लड़कियां और न घर में अकेले रहने वाली बुजुर्ग महिलाएं। मौका मिलते ही लड़कियों को दबोचा जा रहा है और फिर वहशियत की हर हद पार हो रही है। बदलापुर में चार साल की दो बच्चियों का यौन शोषण उनके ही स्कूल के सफाई कर्मी ने किया था। बच्चियां उस सफाईकर्मी को ‘दादा’ कहती थीं, उन्हें अपना परिचित समझती थीं, लेकिन उस जानने वाले ने उनके साथ क्या किया। मौका मिलते ही कपड़े उतारकर उनके निजी अंगों को छूने का काम किया, उनका शोषण किया।

इस घटना से कुछ दिन पहले 16 अगस्त 2024 राजस्थान के सिरोही जिले के आबूरोड रीको थाना क्षेत्र में एक 63 वर्षीय महिला का घर में घुसकर सामूहिक रेप किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि आरोपित घर में घुसे तो लूटपाट के लिहाज से थे लेकिन महिला को देख उन्होंने उसके साथ बारी-बारी रेप कर लिया। एक बार इन घटनाओं को सोचकर देखिए! एक मामले में युवती शिकार होती है, दूसरे में छोटी बच्चियां और तीसरे में बुजुर्ग महिलाएं। जरा गंभीरता से विचार करके देखिए! समाज के आम सुसभ्य व्यक्ति के मन में इन सभी के लिए अलग-अलग भाव होते हैं।

एक स्वस्थ मानसिकता का सुसंस्कृत युवा जवान महिला को बहन की दृष्टि से देखता है, बच्चियों को पुत्रीवत देखकर उन पर दुलार लुटाता है और बुजुर्ग महिला को सम्मान की दृष्टि से देखकर उनका आदर करता है, लेकिन एक कामांध वहशी बलात्कारी दरिन्दे को उनमें सिर्फ और सिर्फ विपरीतलिंगी देह ही दिखती है। आखिर क्यों? इसकी मूल वजह कुंठित यौन विकृति है। वस्तुतः बलात्कार की विकृत मानसिकता पारिवारिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक जीवन मूल्यों के क्षरण से उपजती है।

समाज विज्ञानियों के मुताबिक ‘लिव इन रिलेशनशिप’ व ‘समलैंगिकता’ को अपराध मुक्त किया जाना भी इस का एक कारण है। शासन प्रशासन की लचर कानून व्यवस्था, रात को सड़कों पर प्रकाश का उचित प्रबंध न होना तथा बिजली की कमी, सार्वजनिक परिवहन का उचित प्रबंध न होना, सड़कों का उचित रखरखाव न होना, चिकित्सा सुविधाओं और शिक्षण संस्थाओं का अभाव भी इस अपराध की वृद्धि के मुख्य कारण हैं। साथ ही परपीड़न की प्रवृत्ति भी इस जघन्य अपराध का एक प्रमुख कारण है। इस प्रवृत्ति के लोग दूसरों को कष्ट पहुंचा कर खुद आनंदित होते हैं। अभी तक घटी सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं में इस प्रवृत्ति की स्पष्ट झलक मिलती है। इसी तरह समाज में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति और अश्लीलता भी इस अपराध का एक प्रमुख कारण है। वर्तमान में किशोर तो किशोर किशोरियां भी जाम से जाम टकरा रही हैं।

नशे का आदी मानव अपना आपा खो बैठता है, उसकी यौन उत्तेजना में बढ़ोतरी हो जाती है। गौरतलब हो कि महिलाओं के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘’जागोरी’’ का कहना है कि चूंकि अब भारतीय महिलाओं में व्यापक जागृति आ रही है और वे हर क्षेत्र में पुरुष को टक्कर दे रही हैं, इसलिए कुंठित मानसिकता वाले मर्दों की एक जमात इस बदलाव को पचा नहीं पा रही है और वे बदला के लिए ऐसे बर्बर तरीके अपना रहे हैं। दरअसल स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में विदेशी पूंजी के साथ ही वहां की खुली यौन संस्कृति भी आ धमकी है, जिसके चलते लोगों में मनोविकार भी बढ़ते चले जा रहे हैं। एक ओर हम अपने परंपरागत नैतिक मूल्यों व समृद्ध संस्कृति को लेकर बहुत ही आत्ममुग्ध हैं, जबकि हमारी सांस्कृतिक परंपराएं अब केवल सांस्कृतिक समारोहों और साहित्य तक ही सीमित रह गयी हैं जो कि आज के इंटरनेट के युग में बहुत पिछड़ी मानी जाती हैं।

इस कारण आज का युवक गलत आचरण करने से भी नहीं हिचकता। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. अरुणा ब्रूटा कहती हैं कि शहरी गरीबों में बढ़ती हताशा और लंपटपन के कारण उनमें असंवेदनशीलता भी बढ़ रही है। इस कारण वे अपने जैसी ही किसी गरीब या कामकाजी युवती के साथ बलात्कार या दूसरी तरह की हिंसा करते वक्त जरा भी शर्मशार नहीं होते। शहरों में जिस तरह से आर्थिक असमानता बढ़ रही है, उससे भी आम लोगों में कुंठा बढ़ रही है। शहरी पुरुष वर्ग ज्यादा आक्रामक और हिंसक हो गया है। पुरुषों के इस नजरिए के चलते भी महिलाओं से बलात्कार के अपराध होते हैं। अब युवतियां बड़ी संख्या में घर-परिवार से बाहर निकल कर कामकाजी दुनिया में अपनी पैठ मजबूत कर रही हैं।

ऐसे में पहले से ही कुंठित युवाओं में युवतियों के प्रति जलन का भाव भी बढ़ रहा है, इसलिए वे मौका मिलते ही युवतियों को कमतर साबित करने की कोशिश करते हैं और कई बार इस कुंठा की परिणति बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के रूप में सामने आती है। यही नहीं; आज इंटरनेट पर अश्लील सामग्री व पोर्न साइट्स की भरमार दिखायी देती है। विज्ञापन चाहे किसी भी वस्तु का हो, लेकिन उसमें नारी की कामुक अदाएं व उसके अधिक से अधिक शरीर को दिखाने पर जोर दिखता है। फुटपाथ पर अश्लील साहित्य व ब्लू फिल्मों की सीडी, डीवीडी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। आज मोबाइल पर प्रतिदिन हजारों नाबालिग अश्लील सामग्री का अवलोकन करते हैं। सिनेमा में बलात्कार के दृश्यों को ग्लैमराइज तरीके से तथा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है।

अपराधी मानसिकता के कुंठित युवा इन फिल्मी दृश्यों से प्रेरणा लेकर बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। बताते चलें कि दिल्ली की स्वयंसेवी संस्था ‘’स्वचेतन’’ द्वारा पिछले पांच साल से जेल में बंद 242 बलात्कारियों की मानसिकता के अध्ययन से यह तथ्य उजागर हुआ है कि ज्यादातर बलात्कारी पकड़े जाने से पूर्व बलात्कार कर चुके थे और इन सभी के मन में महिलाओं के प्रति गहरी नफरत थी। वे महिलाओं के प्रति अपमानजनक और अश्लील गालियों का प्रयोग करते थे तथा इनमें अपने शिकार पर यौन फंतासियां आजमाने की कभी न मिटने वाली भूख थी।

क्या है समाधान!

पवित्र भारत भूमि को इस वीभत्स यौन अपराध से मुक्त करने, बलात्कारी मनोवृत्ति के फैलाव को रोकने के लिए समाज में सांस्कृतिक और नैतिक जीवन मूल्यों का विकास सर्वाधिक जरूरी है। नारी को वह सम्मान देना होगा जिसकी वह हकदार है और यह तभी होगा जब हम हमारे युवाओं के मन में यह भाव कूट-कूट कर भर दें कि एक आदर्श समाज के निर्माण के लिए देश की मातृशक्ति का सम्मान करना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक परिवार में तीन चार वर्ष की आयु से ही प्रेरक कथा कहानियों के द्वारा बच्चों को आत्मनिर्माण के संस्कार देने शुरू कर देने चाहिए। घर के बच्चों को महिलाओं का सम्मान करना बचपन से सिखाना शुरू कर देना चाहिए।

वीमन सेफ्टी एंड सिक्योरिटी पर एजुकेशनिस्ट और सोशल वर्कर अनिता मेहता कहती हैं कि असल में सिर्फ कानून के डंडे से इस वहशी सोच पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। बलात्कार को पुलिसिंग व्यवस्था से भी नहीं रोका जा सकता। एक सभ्य समाज, स्वर्णिम भारत की संरचना के लिए आचार व विचार की शुद्धि व वेशभूषा की शालीनता भी अनिवार्य होनी चाहिए। हमें महापुरुषों के आदर्श और ऐतिहासिक महापुरुषों के बलिदानों के संस्मरणों को पाठ्य पुस्तकों में पूरा महत्व देना चाहिए।

बचपन से ही मन में नैतिक संस्कारों का बीजारोपण जरूरी है, जिससे आगे चल कर उनकी मानसिक व बौद्धिक क्षमताएं पूरी तरह से शुद्ध व परिपक्व हो सकें और वे अपनी मर्यादा व सीमा में रह कर जीवन में नैतिक आदर्शों का पालन करने वाले बन सकें। महिलाओं को भी इतना सशक्त करना होगा कि वे खुद को आज की संस्कृति के अनुरूप ढाल सकें और मर्यादित रह कर नैतिक जीवनशैली अपना सकें। घर-परिवार के साथ ही स्कूलों में बचपन से ही नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता एक स्वस्थ समाज की आधारशिला है। अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा और अच्छी जीवनशैली ही एक युवा को भटकने से रोक सकते हैं। अगर हम ऐसा करेंगे तो इस तरह के अपराध नहीं होंगे और समाज भी स्वस्थ, सुसंस्कृत व उन्नत बन सकेगा।

जनता का पूर्ण सजग व जागरूक होना जरूरी

राष्ट्रीय शर्म का विषय है कि आज हमारे सामजिक परिवेश में लोगों की यौन-प्रवृत्तियां बद से बदतर हो जा रही हैं। इन दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश के लिए हम सभी को अपने आस पास के सामाजिक परिवेश के प्रति सतत सजग दृष्टि रखनी होगी और पूर्ण सचेत रहकर इंटरनेट और सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण और सुरक्षित ढंग से उपयोग सीखना और सिखाना होगा। हम और हमारे बच्चे क्या पढ़ते हैं, क्या देखते-सुनते हैं, क्या हम और हमारे बच्चे किसी व्यसन का शिकार तो नहीं हैं, हमारे घर और आस-पास का वातावरण हमने कैसा बनाया हुआ है, इस सबके सभी को सदा पैनी दृष्टि रखना जरूरी है। यही नहीं, मातृशक्ति को बचपन से ही शारीरिक रूप से मजबूत बनाया जाना जरूरी है।

इसके लिए हर विद्यालय में प्राथमिक कक्षा के साथ जूडो कराटे या अन्य विधाओं को स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए। साथ में घर और स्कूल में छोटे-छोटे लड़कों में मातृशक्ति का सम्मान करने के संस्कार विकसित करने के लिए हर विद्यालय में पहली कक्षा से ही नैतिक शिक्षा की क्लास लगना अनिवार्य होना चाहिए। टीवी चैनलों पर अच्छे कार्यक्रम दिखाए जाने चाहिए, जिससे युवाओं की नकारात्मक सोच में सकारात्मक बदलाव हो सके। बुरी यौन प्रवृत्तियों के शमन में खेलकूद से जुड़ी शारीरिक गतिविधियां भी सहायक साबित हो सकती हैं।

यह सच है कि देश में बलात्कार के खिलाफ कानून प्रभावी अवश्य है, परंतु यह बात भी उतनी ही सच है कि जब तक देश की आम जनता इन अपराधों की रोकथाम के प्रति पूर्ण सजग व जागरूक नहीं होगी, तब तक इस दिशा में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं की जा सकती। साथ ही हमें सरकार से इंटरनेट पर पोर्न साइट्स तथा अश्लील साहित्य और सिनेमा पर कठोर क़ानून व त्वरित प्रतिबन्ध की मांग करनी होगी। यही नहीं, सिर्फ कानून-प्रशासन के जरिए बलात्कार-मुक्त समाज बनाने की कल्पना साकार होना संभव नहीं है। दूसरी ओर जानकारों का यह भी कहना है कि बलात्कार का दोष साबित होने पर फांसी व उम्रकैद काफी नहीं है; तत्काल प्रभाव से अपराधी का अंगोच्छेद कर देना चाहिए या रासायनिक विधि से उसे हमेशा के लिए नपुंसक बना देना चाहिए।

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इसी क्रम में शोहरत व दौलत के बल पर जो लोग इस कानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें भी हर हाल में रोकना बहुत जरूरी है। राजनीति में बढ़ती चरित्रहीनता व अपराधीकरण को रोकना भी अनिवार्य है। एक स्वस्थ व अपराध मुक्त समाज की संरचना के लिए पूरे समाज को जागना होगा। सार रूप में कहें तो देशभर के प्रबुद्ध वर्ग और सभ्य, सुसंस्कृत जागरूक नागरिकों को देश को इस अभिशाप से मुक्त करने के लिए सामूहिक रूप से संकल्पित होना होगा।

पूनम नेगी

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