Home विशेष कब तक बर्दाश्त की जाती रहेंगी ऐसी लापरवाहियां

कब तक बर्दाश्त की जाती रहेंगी ऐसी लापरवाहियां

Andhra Pradesh, Jan 31 (ANI): A child being administered polio drops during the Pulse Polio drive, at a health center, in Visakhapatnam on Sunday. (ANI Photo)

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के नित नए आयाम चढ़े जा रहे हैं, भारत को विश्वगुरु बनाने के हरसभंव प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य में 31 जनवरी को आयोजित किए गए पल्स पोलियो अभियान के तहत यवतमाल में भी अभियान चलाया गया। घाटंजी तहसील के भांबोरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत आने वाले कापसी कोपरी की एक आंगनवाडी में पल्स पोलियो अभियान के तहत 12 बच्चों को पोलियो की जगह सेनिटाइजर की डोज पिलायी गई। इस तरह पल्स पोलियो अभियान के लिए उपयोग में लाया जाने वाला घोष वाक्य दो बूंद जिदंगी के न होकर दो बूंद सेनिटाइजर के हो गए है। कोरोना महामारी से बचने के लिए जो वैक्सीन विकसित की गई है, उसके लिए भी दो टीके जिदंगी के का टैंग उपयोग में लाया जाता था, लेकिन पल्स पोलियो जैसे महत्वपूर्ण अभियान में 12 बच्चों को पोलियो की जगह सिनेटाइजर पिलाने जैसी घोर लापरवाही कैसे हुई, यह बहुत ही विचारणीय मसला है। 

कभी भंडारा के जिला अस्पताल में शिशु केयर सेंटर में भर्ती 10 मासूम बच्चों की जलने तथा दम घुटने से मौत हो जाती है तो कभी 12 बच्चों को पीलियो की डोज की जगह सैनिटाइजर की डोस पिलायी जा रही है। आखिर इतनी हद दर्जे की लापरवाहियों होती कैसे हैं। भंडारा जिला सामान्य अस्पताल के में बच्चों की मौत के तांडव के बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल समेत राज्य की महाविकास आघाडी सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे, विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले, विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता समेत कई बड़े-बड़े नेताओं के दौरे हुए। जिन परिवार ने बच्चों को खोया था, उनके प्रति संवेदनाएं व्यक्त की गई, उनको राहत राशि देने का ऐलान किया गया। विपक्ष की ओर से हो हल्ला मचाने पर कार्रवाई के रूप में कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया तो कुछ की सेवाएं समाप्त कर दी गई। 

जिला सामान्य अस्पताल प्रशासन ने बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने के स्थान पर उन्हें बचाने में अपनी ताकत झोंक दी। भंडारा जिला सामान्य अस्पताल जैसी ही लापरवाही यवतमाल जिले के घाटंजी तहसील कापसी कोपरी में घटित हुई। भांबोरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत रविवार को कापसी कोपरी गांव में पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान चलाया गया। गिरीश गेडाम, योगीश्री गेडाम, अंश मेश्राम, हर्ष मेश्राम, भावना आर के, वेदांत मेश्राम, राधिका मेश्राम, प्राची मेश्राम, माही मेश्राम, तनुज मेश्राम, निशा मेश्राम, आस्था मेश्राम इन बच्चों को पल्स पोलियो की डोज यवतमाल के सरकारी अस्पताल में दी जाने वाली थी, लेकिन वहां कार्यरत आशा स्वयंसेविका, आंगनवाड़ी सेविका तथा डॉक्टर ने यह भी जांचने की कोशिश नहीं की कि वे बच्चों पोलियो की डोज के रूप में जो दे रहे हैं, वह पोलियो की डोज न होकर सैनिटाइजर है। जिस गांव के अंतर्गत यह अभियान चल रहा था, उस गांव के सरपंच युवराज मरापे को यह पता चला कि 12 बच्चों पोलियो की जगह सैनेटाइजर की दो बूंद डोज के रूप में दिए गए हैं तो मानो उनके पैर के नीचे की जमीन ही खिसक गई। 

पोलियो की डोज की जगह पेट में जब सैनेटाइजर की बूदें पहुंची को कुछ घंटों बाद ही बच्चों की तबियत बिगड़ने लगी। जिन बच्चों को पोलियो की डोज की जगह सैनिटाइजर पिलायी गई, उन बच्चों को उल्टी तथा पेट दर्द होने लगा। बच्चों की यह हालत देखकर उनके माता-पिता घबरा गए और वे बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंचे। जिन बच्चों की तबियत खराब हुई थी, उन्हें यवतमाल के वसंतराव नाईक सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल में भर्ती कराया गया। बच्चों को सैनेटाइजर पिलाने के बाद उनकी तबियत खराब होने के बारे में जानकारी मिलते ही जिलाधिकारी एम. देवेंद्र सिंह ने अस्पताल जाकर उन बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त की।

बच्चों की तबियत में कुछ सुधार होने के बाद उन बच्चों को देर रात पोलियो की खुराक दी गई। कहा जा रहा है कि टीकाकरण के दौरान उपस्थित आशासेविकाओं, आंगनवाड़ी सेविकाओं तथा उनकी टीम के स्वास्थ्य अधिकाऱियों के ध्यान में आने के बावजूद उन्होंने अपनी गलती पर पर्दा डाल दिया। 

जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. श्रीकृष्ण पांचाल ने इस मामले की पड़ताल शुरु कर दी है। हैरत की बात यह है कि बच्चों को पोलियो का डोज देने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, आशासेविकाओं तथा आंगनवाड़ी सेविकाओं में से किसी को यह पता ही नहीं चला कि वे जिसे पोलियो की डोज के रूप में दे रहे हैं, वह पोलियो की डोज न होकर सैनेटाइजर हैं, भला हो सरपंच का, जिन्होंने कौतुहलवश यह देख लिया कि पोलियो डोज की बोतल देख ली, उस बोतल को देखने के बाद सरपंच के पैरों के नीचे की जमीन ही खिंसक गई। टीकाकरण करने वाली टीम ने यह तर्क देकर उनकी गलती पर पर्दा डालने की कोशिश की सैनेटाइजर की बोतल तथा पोलियो की डोज की बोतल का आकार एक ही तरह होने के कारण यह गलती हुई। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पोलियो डोज देने वाली टीम के सदस्यों ने जो जानकारी दी, उससे इस बात का अंदाजा सहजता से होता है कि इतनी बड़ी भूल को भी लोग कैसे छोटी सी गलती करार देने में कितने माहिर हैं। 

घाटंजी तहसील के भांबोरा पीएचसी अंतर्गत आने वाले कापसी में 12 बच्चों को पोलियो की जगह सैनेटाइजर पिलाने के मामले में एक डॉक्टर सहित तीन लोगों की सेवाएं समाप्त कर दी गई है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. हरी पवार के आदेश पर तीन स्वास्थ्य कर्मियों की सेवा समाप्त करने के साथ-साथ कुछ वरिष्ठ डॉक्टरों पर के निलंबन संबंधी प्रस्ताव सरकार के पास भेजने की जानकारी दी है। भंडारा जिला सामान्य अस्पताल में दस मासूम बच्चें की मौत के दर्दनाक घटना के बाद यवतमाल के सरकारी अस्पताल में लापरवाही के चलते हुई इस घटना से इस बात का खुलासा हो गया है कि स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत लोगों की कार्य पद्धति कितनी लचर है। 

राज्य के अनेक सरकारी तथा निजी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था के वैसे ही लोग परेशान रहते हैं और उस पर अस्पताल में काम करने वाले लोगों की लापरवाही से मरीजों की जान में खतरे में आ जाती है। भंडारा जिला अस्पताल के बाद यवतमाल के सरकारी अस्पताल में हुई घटना ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही खुलकर सामने आ गई है। राज्य में दि बांबे नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन एक्ट-1949 में दी गई शर्तों का पूरी तरह से पालन नहीं होता। निजी अस्पतालों में गुणवत्ता रखी जाए, इसके लिए लोकल सुपर एडवाइजरी एथॉरिटी, डिस्ट्रिक नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन बोर्ड तथा स्टेट नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन बोर्ड की स्थापना करना जरूरी है। लेकिन अभी तक ये तीन संस्थाएं अस्तित्व में नहीं आयी हैं। 

राज्य के अनेक सरकारी तथा निजी अस्तपालों में अत्यावश्यक सुविधाओं का अभाव होने के कारण सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने से लोग घबराते हैं। किसी भी सरकारी अस्पताल में इलाज के सभी साधन दुरूस्त नहीं है और उस पर लापरवाह अधिकारी तथा कर्मचारी रही सही कसर पूरे कर रहे हैं, इसी का नतीजा है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की आंखों के सामने बच्चों को पोलियों डोज के स्थान पर सैनेटाइजर पिलाया जा रहा है। इस तरह की व्यवस्था में भारत आत्मनिर्भर कैसे बनेगा, यह सवाल स्वास्थ्य के हर लापरवाह लोगों से जरूर पूछा जाना चाहिए। राज्य के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में असुविधाओं का अंबार है। चंद्रपुर जिले के कोरपना के सहायक शिक्षक संजय कटारे की 2 जून, 2016 को मृत्यु हुई। संजय कटारे विवाह समारोह में शामिल होने के लिए आए हुए थे।

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विवाह समारोह में संजय कटारे की तबियत खराब हो गई, उन्हें काटोल के लता मंगेशकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस अस्पताल में एक्स-रे मशीन उपलब्ध न होने के कारण उनका समय पर इलाज नहीं हो सका और उनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई, डॉक्टर उनको बचा नहीं सके। इस मामले की सघन जांच करके शिक्षक संजय कटारे के परिजनों को राहत देने की मांग ने जोर पकड़ा है। भंडारा के जिला समान्य अस्पताल हो या यवतमाल का सरकारी अस्पताल या राज्य का कोई और सरकारी अस्पताल सभी की हालत बहुत खराब है। कैसे बदलेंगे हालात, कैसे अस्पतालों की हालत सुधरेगी, यह एक प्रश्न बना हुआ है।  

सुधीर जोशी (महाराष्ट्र)

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