Holi 2024, लखनऊः नवाबों के शहर में होली का त्योहारर बड़े उमंग के साथ मनाया जाता है। यहां तमाम नई होलिकाओं को हर साल शामिल किया जाता है। एक अनुमान है कि करीब एक हजार से ज्यादा होलिकाएं होली के मौके पर जलाई जाती हैं। यद्यपि लखनऊ में तमाम अन्य जगहों की तरह अलग-अलग समय पर होली जलाई जाती है। इनके जलाने का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता है। पहले सिर्फ शहर के प्रमुख क्षेत्रों जैसे- अमीनाबाद, नाका बाजार, गणेशगंज, चैक, शआदतगंज और मौलवीगंज में होलिकाएं जलाई जाती थीं, आज इनकी संख्या बढ़कर एक हजार से ज्यादा पहुंच चुकी है।
सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन अलर्ट
प्रशासन के लिए सबसे ज्यादा मशक्कत सुरक्षा व्यवस्था को लेकर है। होली के मौके पर जिस तरह से होलिकाओं की संख्या बढ़ गई है, वह चिंताजनक भी है। होली का त्योहारर जहां मेल-मिलाप का होता है, वहीं इसमें तमाम आपराधिक वारदातें भी होती हैं इसलिए प्रमुख स्थलों पर अमन कमेटियां भी सक्रिय रहती हैं। किसी तरह की अशांति से निपटने की जानकारी प्रशासन के पास इनको पहुंचाना और शांति व्यवस्था के लिए काम करना भी जिम्मेदारी होगी। होली के मौके पर लकड़ियां काफी महंगी हो चुकी हैं। जाड़े के मौके पर जलाने वाली लकड़ियों के भाव पर ही बाजार में खराब लकड़ियां बिकने लगी हैं।ॉ
15 रुपए प्रति किलो से अधिक मिल रही लकड़ियां
आरामशीन पर पटरों से निकली गांठ व खराब लकड़ी की कीमत भी 15 रुपए प्रति किलो से अधिक है। हालांकि, हर बार की तरह ही परंपराओं में थोड़ा बदलाव भी देखा जाता है। इसका असर इस बार भी है। तमाम स्थलों पर लकड़ियां जलाने की मात्रा में कटौती भी की जा रही है। शहर के प्रमुख बाजारों को होलिका दहन से पहले सजा दिया जाता है। होलिकाओं को रंगीन कागजों की झंडियों से घेरा बनाकर बेहद सुंदर बनाने में व्यापारी आगे हो रहे हैं।
ये भी पढ़ें..Holi 2024: होली के रंग में रंगे फारसिबगंज विधायक,राजस्थान के कलाकारों ने मचाई घूम
नई बस्तियों में भी लोग होलिकाओं को गुब्बारे से सजाते हैं। कुछ स्थानों पर होलिका दहन शुभ मुहूर्त के अनुसार किया जाता है, लेकिन तमाम स्थानों पर होलिकाओं के जलाने का समय लोगों की उमंग तय करता है। जिस समय कुछ लोग इकट्ठे हो सकते हैं, उसी समय होलिकाएं जला दी जाती हैं। इसके अलावा तमाम स्थानों पर होलिका जलाने की जिम्मेदारी पुजारियों के हाथ होती है।
कई जगहों पर आज भी जाति विशेष के लोगों के हाथों होलिकाएं जलाई जाती हैं। शहर के तमाम स्कूलों में 20 व 21 मार्च से होली की छुट्टी कर दी गई। इस मौके पर बच्चों का उत्साह भी देखने लायक रहा। टीचर्स के तमाम मना करने के बाद भी गुलाल खेलने से अपने को नहीं बचा पाए। कुछ स्कूलों में छात्र-छात्राओं सहित अध्यापकों ने भी फूलों की होली खेली।
सदियों पुरानी होलिका जलाने की परंपरा
दरअसल, होलिका जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन यह त्योहारर मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि हिरण्यकश्यप् नाम का असुर राजा अपने पुत्र प्रहलाद से नफरत करता था, क्योंकि प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसने प्रहलाद को मृत्यु दंड देने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली।
होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती है। इस बात का भी जिक्र है कि आग में प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ, जबकि होलिका उसमें भस्म हो गईं। यह दिन फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि का था। तब से होलिका दहन की परंपरा निभाते आ रहे हैं।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)