“सर्वे भवन्तु सुखिनः” की नित्य प्रार्थना करने वाले तथा समूची विश्व वसुधा को अपना कुटुंब मान कर जीवनयापन वाले सनातनी हिन्दू समाज को हिंसक कहे जाने से न केवल देश के सनातनी हिन्दू धर्मावलम्बी अपितु इस राष्ट्र का समूचा संत भी बेहद क्रुद्ध, आहत और आक्रोशित है। विगत माह संसद में नेता प्रतिपक्ष की हिन्दुओं को हिंसक बताने की टिप्पणी वस्तुतः उनकी हिन्दू धर्म और हिंदुत्व के प्रति अधूरी व अपरिपक्व जानकारी की ही द्योतक है। बीते दिनों राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए राहुल गांधी ने एक बार फिर यह साबित किया कि वे अभी भी राजनीतिक रूप से बेहद अपरिपक्व राजनेता हैं।
उनको पता ही नहीं कि संसद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कितनी महत्वपूर्ण होती है और समूचा देश ही नहीं, अपितु पूरा विश्व उसे वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में देखता है। लोकसभा में बोले गये शब्द भविष्य की पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए संसद की लिखित कार्यवाही में अंकित होते हैं, लेकिन राहुल गांधी अपनी इस पहली ही परीक्षा में विफल हो गये। जिन मतदाताओं की धारणा थी कि राहुल गांधी ने दो यात्राओं के जरिए देश के मन को समझ लिया है और इन यात्राओं में मिले अनुभवों से अब वे पहले ज्यादा परिपक्व हो चुके हैं, उन्हें राहुल गांधी के हिन्दुओं को हिंसक बताने वाले बयान ने गहरी चोट पहुंचायी।
जहां एक ओर सामान्य बुद्धि वाला देश दुनिया का हर जागरूक व्यक्ति उनके इस कथन को बेहद बचकाना और हास्यास्पद बता रहा है, वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों की एक अन्य जमात इसे सनातन धर्म को अपमानित करने का सुनियोजित षड्यंत्र मान रही है। इन लोगों का तर्क है कि 2014 में सत्ता से दूर हुई कांग्रेस दरअसल सत्ता से दूर रहने का दर्द पचा ही नहीं पा रही है, उसकी धारणा है कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में देश के जागृत हिन्दू समाज का सबसे बड़ा योगदान है, उसे हिन्दुओं की यह एकजुटता खटक रही है।
उनका यह हिन्दू विरोधी बयान उनकी इसी कुंठा व आक्रोश का प्रतिफलन प्रतीत होता है। गौरतलब हो कि राजनीति में आया हर व्यक्ति इतना तो सामान्य ज्ञान रखता ही है कि किसी भी राष्ट्र के बहुसंख्यक समुदाय को अपमानित कर राजनीति में सफलता नहीं हासिल की जा सकती। यदि उनको लगता है कि वो इस तरह की सोच के साथ भारत में वैकल्पिक नेतृत्व देने में सफल होंगे तो यह दिवास्वप्न के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
दरअसल हिंसक हिन्दू नहीं बल्कि वे हैं जो हिन्दुओं के नरसंहार की बात करते हैं। देशवासियों को समझना होगा कि यदि हिन्दू वाकई हिंसक होते तो क्या देश का विभाजन होने देते? यदि हिन्दू हिंसक होते तो क्या कश्मीर घाटी के मूल निवासियों को विस्थापन की त्रासदी झेलनी होती? क्या यदि हिन्दू हिंसक होते तो इस देश में “सर तन से जुदा” जैसे नारे लग पाते? यदि हिन्दू सच में हिंसक होते तो क्या वे अपने हिन्दू देवी देवताओं का इतना अपमान सहन करते!! जरा गहराई से विचार कीजिये यदि हिन्दू वास्तव में हिंसक होते, तो क्या विभाजन के बाद देश में बचे 3.5 करोड़ मुस्लिमों की आबादी आज 20 करोड़ तक पहुँच पाती?
यहां यह तथ्य भी गौरतलब है कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिन्दुओं की जो आबादी 20 फीसदी थी, वह आज मात्र दो फीसदी बची है। ये तो मात्र कुछ उदाहरण आपके संज्ञान के लिए प्रस्तुत हैं, वर्ना यह सूची अंतहीन है जो स्पष्ट करती है कि सही मायने में हिंसक कौन है!! विचारणीय बिंदु है कि यदि हिन्दू धर्मावलम्बी हिंसक होते तो क्या यह देश इतने विदेशी आक्रमणों को सहन करता! सोने की चिड़िया कही जाने वाली इस भारतभूमि पर लालची विदेशी आक्रान्ताओं ने बीते एक हजार वर्षों में सैकड़ों आक्रमण किये।
भारत के सहिष्णु निवासियों ने मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में फारस का आक्रमण, महमूद गजनबी के नेतृत्व में अरब का आक्रमण, मोहम्मद गौरी के नेतृत्व में तुर्कों का आक्रमण, चंगेज खान के नेतृत्व में मंगोलों का आक्रमण और बाबर के नेतृत्व में मुगलों का आक्रमण झेला और फिर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सुनियोजित षड्यंत्र में फंसकर 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी झेली, किन्तु अपनी सरलता व उदारता का मूल स्वभाव नहीं छोड़ा।
वस्तुतः हिन्दू हिंसक नहीं बल्कि सर्वाधिक सहनशील है, यह उसकी सहनशीलता ही है जब भी किसी के मन में जो भी आता है, वो बोल देता है और स्वभाव से क्षमाशील हिन्दू सबको सहज ही माफ़ कर देता है। सहिष्णुता और उदारता हिन्दू धर्म के खून में है तभी तो पिछले सैकड़ों वर्षों से उसका खून बहाया जाता रहा है। देश में सालों से छल, बल व लोभ लालच के आधार पर हिन्दुओं के धर्मांतरण का षड्यंत्र रचा जाता रहा है। हिन्दू धर्म में उदारता और सहिष्णुता का कारण यह है कि इस धर्म में परहित को पुण्य माना गया है। न्याय और मानवता (इंसाफ और इंसानियत) को धर्म से भी ऊंचा माना गया है।
न्याय और मानवता की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए हिन्दुओं को प्रेरित किया जाता रहा है। यही कारण है कि इस धर्म में प्राचीनकाल से ही कभी कट्टरता नहीं रही और इस उदारता, सह-अस्तित्व और सहिष्णुता की भावना के चलते ही हिन्दुओं ने कभी भी किसी दूसरे धर्म या देश पर किसी भी प्रकार का कोई आक्रमण नहीं किया। इसी का परिणाम हुआ कि आक्रांताओं ने समय-समय पर गुलाम बनाकर हिन्दुओं को धर्म, जाति और पंथों में बांट दिया, उनका कत्लेआम किया गया और उन्हें उनकी ही भूमि से बेदखल कर दिया। अगर आप इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो पाएंगे कि भारत कई विदेशी हुकूमतों के आक्रमण का शिकार रहा, लेकिन इस बात का एक भी उदाहरण नहीं है कि भारत ने किसी देश पर हमला किया हो। भारतीयों का व्यवहार इस तरह का कभी नहीं रहा। हमने सदा ही सभी धर्मों का पूर्ण सम्मान किया है। यही भारतभूमि के जीवंत जीवन मूल्यों की महानता है।
महापुरुषों को हिन्दू होने पर था गर्व
गौरतलब हो कि आज से 131 साल पहले वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन के मंच से जिस हिन्दू धर्म का गौरवगान किया था, उसी हिन्दू धर्म को देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के शीर्षस्थ नेता द्वारा लोकतंत्र के मंदिर से हिंसक कहा जाना वाकई अत्यंत खेदजनक वक्तव्य है। बताते चलें कि समूचे पाश्चात्य जगत में भारत की सनातन हिन्दू संस्कृति को गौरवान्वित करने वाले भारतभूमि के इस युवा संन्यासी ने उस धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हे अमेरिकावासी बहनों और भाइयों! आपने जिस सौहार्द और स्नेहपूर्णता के साथ हमारा स्वागत किया है, उससे मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से आप सभी को हृदय से धन्यवाद देता हूं।
मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों व मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को को शरण दी है। स्वामी जी ने हिन्दू जाति के कर्तव्यबोध पर जोर देते हुए कहा था कि जब कोई व्यक्ति स्वयं को हीन मान कर अपने पूर्वजों के प्रति लज्जान्वित हो जाता है, तब समझो उसका सर्वनाश निकट है। हेय मानने के बजाए हम अपनी कृति से यह सिद्ध करें कि विश्व की किसी भी भाषा के किसी भी शब्द से श्रेष्ठ हिन्दू शब्द है। स्वामी विवेकानंद की इसी हिन्दुत्व सम्बन्धी जीवन दृष्टि की और अधिक स्पष्ट करते हुए स्वामी शिवानंद कहते हैं कि हिन्दू धर्म मनुष्य के तर्कसंगत दिमाग को पूर्ण स्वतंत्रता देता है।
यह कभी भी मानवीय तर्क की स्वतंत्रता, विचार, भावना और इच्छा की स्वतंत्रता पर किसी अनुचित प्रतिबंध की मांग नहीं करता है। हिन्दू धर्म स्वतंत्रता का धर्म है, जो आस्था और पूजा के मामलों में स्वतंत्रता का व्यापक अंतर देता है। यह ईश्वर की प्रकृति, आत्मा, पूजा के रूप, सृष्टि और जीवन के लक्ष्य जैसे प्रश्नों के संबंध में मानवीय तर्क और हृदय की पूर्ण स्वतंत्रता की अनुमति देता है। यह किसी को विशेष अनुष्ठान या पूजा के रूपों को स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं करता है। यह हर किसी को चिंतन करने, जांच करने, पूछताछ करने, विचार करने की अनुमति देता है। हिन्दू धर्म के प्रति गौरवशाली उद्गार व्यक्त करते हुए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने समाचार पत्र केसरी से यह उदघोष किया था कि हिन्दुत्व को छोड़ देने से राष्ट्रीय दृष्टि से आगे अच्छा परिणाम होगा, अगर किसी को ऐसा लगता है तो वह पूर्ण भ्रम में है। हमें आगे देश की जो ऊर्जित अवस्था प्राप्त करनी है, वह हिन्दू राष्ट्र के नाते ही प्राप्त होगी।
हिन्दू भारत की मूल आत्मा है। हिन्दू उदारता और कृतज्ञता का पर्याय है। वो हिन्दू जो केवल सहिष्णु नहीं है, अति सहिष्णु है, वो हिन्दू जो प्राणी मात्र की पूजा करता है, वो हिन्दू जो प्रकृति और प्रकृति के हर जीव की पूजा करता है, वो हिन्दू जो सूर्य की पूजा करता है, वो हिन्दू जो नर में नारायण को देखता है, वो हिन्दू जो सारे विश्व के कल्याण की बात करता है, जो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की बात करता है। हमारा हिन्दू समाज सर्वाधिक दयावान समाज है। हम परोपकार पर विश्वास रखते हैं। हम चींटी से लेकर पशु पक्षियों और सांप को भी भूखा नहीं रखते। हमारे धर्म में इनकी भी पूजा बताई गई है। हमारा समाज शांति का पाठ पढ़ाता है। ईश्वर और मनुष्य के बीच कोई द्वैत नहीं है। यह हिन्दू धर्म की सार्वभौमिक दृष्टि है और यही हिन्दू धर्म का सार्वभौमिक दर्शन है।
हिन्दू की सार्थक परिभाषा
11 दिसंबर 1995 को जस्टिस जेएस वर्मा की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट में हिंदुत्व को भारतीय लोगों की जीवन शैली कहा था। पीठ ने कहा कि हिन्दुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता है। एक विद्वान ने हिन्दू (HINDU) शब्द की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है-जो आज के संदर्भ में उतनी ही प्रासंगिक है– H का मतलब Humanity अर्थात मानवता, I का मतलब Integrity अर्थात एकात्मकता, N का मतलब Nationality अर्थात राष्ट्रीयता,D का मतलब Duty अर्थात कर्तव्य और U का मतलब Unity अर्थात एकता। शास्त्र वाणी कहती है- धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात- जो स्वधर्म (हिंदू) विमुख होकर धर्म का विनाश कर देता है, उस का विनाश धर्म कर देता है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। हमारे सनातन धर्म ने ही पूरे विश्व को शांति, अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। हमारा समाज च्सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाज् के सिद्धांत का परिपोषक है। हमारे यहां धर्म, अहिंसा, सत्य, शांति, परोपकार, दया को धर्म का मूल तत्व माना जाता है। हिंदुत्व या हिंदू धर्म ईश्वर तक नहीं ले जाता, बल्कि यह परम सत्ता के साथ एकत्व की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए कहा भी जाता है, शिवो भूत्वा, शिवम्यजेतज् अर्थात् शिव बनो, फिर शिव की पूजा करो।
हिन्दुओं का अपमान मात्र संयोग है या प्रयोग: मोदी
हिन्दुओं को हिंसक कहने की नेता विपक्ष की टिप्पणी से आहत प्रधानमंत्री मोदी ने उनके इस बयान को देश की महान संस्कृति व परंपरा पर गहरा तमाचा बताया है। उनकी देशवासियों से अपील है कि देश का हर सनातनी हिन्दू उनके इस निर्लज्ज वक्तव्य को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए यह विचार करे कि हिन्दुओं का यह अपमान मात्र एक संयोग है या सुनियोजित प्रयोग! ज्ञात हो कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल के इस वक्तव्य पर कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि कांग्रेस संविधान और आरक्षण पर झूठ बोलती है। यह लगातार तीसरी बार है, जब कांग्रेस पार्टी 100का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी है और उनका यह हिन्दुत्व विरोधी बयान इसी कुंठा का प्रतिफलन प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि आपातकाल के इस 50वें वर्ष में आज मैं देश की 140 करोड़ जनता के सामने कांग्रेस की क्रूर सच्चाई सामने रख रहा हूं।
इमरजेंसी सिर्फ सत्ता के लोभ और तानाशाह मानसिकता के कारण देश पर थोपी गयी थी। उस आपातकाल की क्रूरता को याद कर आज भी आत्मा कांप उठती है। उस तानाशाही शासन के दौरान कांग्रेस पार्टी ने क्रूरता की सभी हदें पार कर देश के ताने-बाने के छिन्न-विछिन्न करने का पाप किया था। आपातकाल का हर कारनामा संविधान की मूल भावना के पूर्ण खिलाफ था। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये वो लोग हैं, जिन्होंने प्रारंभ से देश के दलितों के साथ, पिछड़ों के साथ घोर अन्याय किया है। कांग्रेस की इसी दलित विरोधी, पिछड़ा विरोधी मानसिकता के कारण ही बाबा साहब अंबेडकर ने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दिया था। बाबा साहब अंबेडकर ने कैबिनेट से इस्तीफा देते हुए जो कारण बताए थे, वो इनके दलित व पिछड़ा विरोधी चरित्र को दर्शाते हैं।
बीते दिनों इनके साथियों ने हिन्दू आतंकवाद शब्द गढ़ने की साजिश कर हिन्दू धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया जैसे शब्दों से की थी। आज एक सोची समझी रणनीति के तहत इनका पूरा इकोसिस्टम हिन्दू परंपरा, हिन्दू समाज, इस देश की संस्कृति, इस देश की विरासत को नीचा दिखाने, गाली देने, अपमानित करने व मजाक बनाने में जुटा है। हमारे देवी-देवताओं का अपमान 140 करोड़ देशवासियों के दिलों को चोट पहुंचा रहा है। निजी राजनीति स्वार्थ के लिए हमारे ईश्वर के विविध स्वरूपों का इस प्रकार का अपमान यह देश भला कैसे माफ कर सकता है? अब समूचे भारत के हिन्दू समाज को पूरी गंभीरता से विचार करना होगा कि उन्हें हिंसक कहने का यह अपमानजनक बयान मात्र एक संयोग है या हिन्दू विरोधी किसी बड़े प्रयोग की तैयारी !
राष्ट्र को कमजोर करने का सुनियोजित षड्यंत्र
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के अनुसार सनातन विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रही कांग्रेस लगातार हिन्दुओं और उनकी आस्था पर कुठाराघात कर रही है। समझना होगा कि देश की संसद से देश के बहुसंख्यक हिन्दू धर्मियों को हिंसक बताने वाला अपमानजनक बयान क्या सिर्फ तुष्टिकरण की ओछी राजनीति का प्रदर्शन मात्र है या इसके पीछे सनातनधर्मी राष्ट्र के मूल निवासियों की उदारता व सहिष्णुता को अपमानित करने का राष्ट्र विरोधी शक्तियों का सुनियोजित षड्यंत्र निहित है, यह विचारणीय बिंदु है। कांग्रेस द्वारा हिन्दुओं का यह अपमान कोई नयी बात नहीं है। लम्बे समय से देश में हिन्दुओं की सहिष्णुता और शांतिप्रियता का मजाक उड़ाया जा रहा है और तो इन्हें आतंकी और हिंसक तक कहा जाने लगा है तथा राजनीतिक स्वार्थ के लिए कई विपक्षी पार्टियों को उनके इस नेगेटिव का समर्थन भी मिल रहा है।
इतिहास गवाह है कि 1947 में देश का बंटवारा हो गया और हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान बन गया, लेकिन देश के कुछ तथाकथित महान नेताओं के कारण कुछ मुसलमान यही रह गये और अब वह इस देश को एक बार फिर से तोड़ने का षड्यंत्र रच रहे हैं। उनका शरीर तो हिंदुस्तानी है, लेकिन दिल-दिमाग पाकिस्तानी है, वह खाते यहां का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं। देशवासियों, खासकर देश की युवा पीढ़ी को इस षड्यंत्र को समझने और इस साजिश से सावधान रहने की आज नितांत आवश्कता है। हिन्दुओं को हिंसक बताने वाले नेता प्रतिपक्ष के बयान पर देश के चर्चित राजनीतिक विश्लेषक और संघ विचारक संगीत रागी भी कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हिन्दू धर्म की मूल विशेषताओं और इसके रूप स्वरूप को जानने समझने की वर्तमान समय में अत्यधिक आवश्यक है।
वे कहते हैं कि आजादी के बाद देश के विभाजन के बाद जिस कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में पाकिस्तान और चीन ने हम पर हमला किया था और एक दशक पूर्व जिस कांग्रेस सरकार के शासन के दौरान इस्लामी आतंकवादियों ने मुंबई में 26/11 का हमला किया किया था, जिस पार्टी के शासनकाल में ISIS, पीएफआई, सिमी, हुजी और लश्कर ऐ तयबा जैसे आतंकी संगठनों को सिर उठाने और सरल व शांतिप्रिय हिंदुओं पर हावी होने का मौका मिला था, उसी पार्टी के नेता का हिन्दुओं को हिंसक कहना तुष्टिकरण की राजनीति की पराकाष्ठा है। देश के हिन्दुओं ने कभी भी किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया, फिर भी आप हिन्दुओं को हिंसक बताते हैं, यह अच्छी बात नहीं है। देश को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। आपको सलाह है कि आप देश के हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा न लीजिए और न ही देश को कमजोर बनाइए।
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इसी तरह जूनापीठाधीश्वर महामंडलेश्वर आचार्य अवधेशानन्द गिरि जी महराज हिन्दुओं को अपमानित करने वाले इस बयान की घोर निंदा करते हुए तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि देश की सौ करोड़ हिन्दू धर्मावलम्बी जनता को हिंसक बताने वाले इस बयान को बेहद गंभीरता से लेने और इसका समुचित प्रत्युत्तर देने की आवश्यकता है। वे कहते हैं कि तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य और शास्त्रीय उद्धरण हिन्दू धर्म को दुनिया का सर्वाधिक उदार, सहिष्णु, करुणाशील, धैर्यवान व सर्व समावेशी धर्मावलम्बी साबित करते हैं। भारतभूमि के मूल निवासियों को हिंसक बताना इस धर्म का घोर अपमान है, जिसे देश का सनातन हिन्दू समाज कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
पूनम नेगी
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