नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों को सरकारी आवास खाली करने के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जो कश्मीरी विस्थापित सेवानिवृत्त हो चुके हैं उन्हें सरकारी आवास में रहने का हक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार कश्मीरी सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ कोई भेदभाव नहीं कर रही है। अगर हम उन्हें सरकारी आवास में रहने की छूट देंगे तो उनका क्या होगा जो सरकारी आवास के इंतजार में खड़े हैं। सरकार के पास असीमित आवास नहीं है। दरसअल 16 फरवरी को जस्टिस वी कामेश्वर राव की सिंगल बेंच ने तीन सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों को 31 मार्च तक सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया था। सिंगल बेंच ने इन पूर्व अधिकारियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि वे कश्मीर से विस्थापित किए जा चुके हैं। सिंगल बेंच के इस फैसले के खिलाफ एक याचिकाकर्ता सुशील कुमार धर ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी।
सिंगल बेंच के समक्ष जिन तीन सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों ने याचिका दायर की थी उनमें सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना और प्रिदमान कृषण कौल शामिल हैं। तीनों ने केंद्र सरकार के आवास खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता कश्मीरी विस्थापित हैं। याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के केंद्र बनाम ओंकार नाथ धर के फैसले के मुताबिक उन्हें तीन साल तक और सरकारी आवास में रहने की अनुमति दी जाए।
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सिंगल बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिस स्कीम के लिए था उस स्कीम के तहत याचिकाकर्ता नहीं आते हैं। कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1989 में श्रीनगर से दिल्ली में ट्रांसफर हुए केंद्रीय कर्मचारियों के लिए था और उन्हें सुरक्षा के आधार पर रिटायर होने के बाद भी आवास उपलब्ध कराया गया था। ऐसे में याचिकाकर्ता रिटायर होने के बाद भी सरकारी आवास के हकदार नहीं हो सकते।
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