नई दिल्ली: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट ने शुक्रवार को गृह मंत्रालय में केंद्र और असम सरकारों के साथ तीन-स्तरीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की गई। समझौते पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा की उपस्थिति में 29 सदस्यीय वार्ता समर्थक उल्फा प्रतिनिधिमंडल ने हस्ताक्षर किए, जिसमें उल्फा के 16 प्रतिनिधि और नागरिक समाज संगठनों के 13 प्रतिनिधि शामिल थे।
समझौते के तहत, उल्फा प्रतिनिधि हिंसा का रास्ता छोड़ने, सभी हथियार छोड़ने और अपने सशस्त्र संगठन को खत्म करने पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा उल्फा अपने सशस्त्र कैडरों के कब्जे वाले सभी शिविरों को खाली करने, कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने और देश की अखंडता बनाए रखने पर भी सहमत हुआ है।
उल्फा प्रतिनिधि छोड़ेंगे हिंसा का रास्ता
इस मौके पर अमित शाह ने कहा कि आज असम के लिए स्वर्णिम दिन है जब लंबे समय से हिंसा का दंश झेल रहे उत्तर-पूर्व और असम में शांति स्थापित होने जा रही है। उन्होंने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दिल्ली और उत्तर-पूर्व के बीच की दूरी कम करने की कोशिश की गई और सभी से खुले मन से बातचीत शुरू हुई। शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने उग्रवाद, हिंसा और संघर्ष मुक्त पूर्वोत्तर की दृष्टि से काम किया। उन्होंने कहा कि पिछले 5 वर्षों में पूरे उत्तर-पूर्व भारत में विभिन्न राज्यों के साथ 9 शांति और सीमा संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अब तक 9000 से ज्यादा कैडर आत्मसमर्पण कर चुके हैं और असम के 85 फीसदी हिस्से से सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (AFSPA) हटा लिया गया है। उन्होंने कहा कि आज भारत सरकार, असम सरकार और उल्फा के बीच त्रिपक्षीय समझौते के कारण मोदी सरकार पूरे असम के सभी हिंसक समूहों को मुख्यधारा में शामिल करने में सफल रही है। उन्होंने कहा कि आज हुआ समझौता असम और पूरे उत्तर-पूर्व में शांति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आज के समझौते के तहत उल्फा प्रतिनिधि हिंसा का रास्ता छोड़ने, सभी हथियार सौंपने और अपने सशस्त्र संगठन को खत्म करने पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा उल्फा अपने सशस्त्र कैडरों के कब्जे वाले सभी शिविरों को खाली करने, कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने और देश की अखंडता बनाए रखने पर भी सहमत हुआ है।
शांति के एक नए युग की शुरुआत
शाह ने कहा कि उल्फा संघर्ष में दोनों पक्षों के करीब 10 हजार लोग मारे गये थे, जो इस देश के नागरिक थे, लेकिन आज इस समस्या का पूरी तरह से समाधान हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार भी असम के विकास के लिए एक बहुत बड़े पैकेज और परियोजनाओं पर सहमत हुई है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार समझौते के हर पहलू को पूरी तरह से लागू करेगी और उस पर खरी उतरेगी। शाह ने कहा कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद असम में हिंसक घटनाओं में 87 प्रतिशत, हत्याओं में 90 प्रतिशत, अपहरण में 84 प्रतिशत की कमी आई है और अब तक अकेले असम में 7500 कैडरों ने आत्मसमर्पण किया है, जिसके आज 750 और जोड़े जाएंगे। इस प्रकार, अकेले असम में 8200 से अधिक कैडरों का आत्मसमर्पण असम के लिए शांति के एक नए युग की शुरुआत है।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने 2019 में एनएलएफटी, 2020 में ब्रू, बोडो, 2021 में कार्बी, 2022 में आदिवासी समझौता, असम-मेघालय सीमा समझौता, 2023 में असम-अरुणाचल सीमा समझौता और यूएनएलएफ और आज उल्फा के साथ समझौता किया है। उन्होंने कहा कि आज इस समझौते से पूरे उत्तर-पूर्व और विशेषकर असम के लिए शांति का एक नया युग शुरू होने जा रहा है।
सीएम सरमा ने बताया ऐतिहासिक दिन
अमित शाह ने कहा कि भारत सरकार का गृह मंत्रालय उल्फा की मांगों को पूरा करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाएगा और इसकी निगरानी के लिए एक समिति भी बनाई जाएगी, जो असम सरकार के साथ समझौते को पूरा करने का प्रयास करेगी। शाह ने कहा कि 2019 के बाद जितने भी समझौते हुए हैं, उनमें मोदी सरकार समय से आगे है और सभी शर्तों को समय से पहले पूरा करने का प्रयास किया गया है। गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के उग्रवाद मुक्त पूर्वोत्तर के व्यापक दृष्टिकोण के बिना यह संभव नहीं होता।
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असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि आज असम के लिए ऐतिहासिक दिन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में असम की शांति के लिए हमेशा काम होता रहा है। आज प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के प्रयासों से उल्फा के साथ केंद्र और राज्य सरकार का समझौता हुआ। आज के समझौते से असम में आदिवासी विद्रोह ख़त्म हो गया है।
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