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पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में गौओं की महिमा

Madhya Pradesh, May 26(ANI): A group of Cow drinking water in a water tank on a hot, sunny day on the outskirts of Jabalpur on Sunday. (ANI Photo) National

सनातन धर्म में गाय की विशेष महिमा बताई गई है। गोशाला सम्पूर्ण देवताओं का निवास स्थान है। पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में गायों की महिमा (glory of cows) का वर्णन किया गया है। पुराणानुसार नारद जी द्वारा गौओं की महिमा के विषय में प्रश्न करते हैं तथा ब्रह्माजी द्वारा गौओं की महिमा के विषय में बताते हैं। सर्वप्रथम भगवान क मुख से महान तेजोमय पुंज प्रकट हुआ। उस तेज से सर्वप्रथम वेद की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात क्रमशः अग्नि, गौ और ब्राह्मण- ये पृथक-पृथक उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी द्वारा वेदों का चार भाग में विस्तार हुआ। अग्नि और ब्राह्मण देवताओं के लिए हविष्य ग्रहण करते हैं और हविष्य (घी) गौओं से उत्पन्न होता है, इसलिए ये चारों ही इस जगत के जन्मदाता हैं।

गौओं की प्रत्येक वस्तु पावन

ब्राह्मण, देवता और असुरों को भी गौ की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गौ सब कार्यों में उदार तथा वास्तव में समस्त गुणों की खान है। वह साक्षात सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। सब प्राणियों पर उसकी दया बनी रहती है। गौओं की प्रत्येक वस्तु पावन है और समस्त संसार को पवित्र कर देती है। गौ का मूत्र, गौ का गोबर, दूध, दही और घी- इन पंचगव्यों का पान करने पर शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता। इसलिए धार्मिक मनुष्य प्रतिदिन गौ के दूध, दही और घी खाया करते हैं। गव्य पदार्थ सम्पूर्ण द्रव्यों में श्रेष्ठ, शुभ और प्रिय है। जिसको गाय का दूध, दही और घी खाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के समान है। अन्न आदि पांच रात्रि तक, दूध सात रात्रि तक, दही बीस रात्रि तक और घी एक मास तक शरीर में अपना प्रभाव रखता है।

गाय को स्पर्श करने से मिट जाते हैं सारे पाप

पुराणानुसार जो लगातार एक मास तक बिना गव्य (दूध, दही व घी) के भोजन करता है, उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है। इसलिए प्रत्येक युग में सब कार्यों के लिए एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गई है। गौ सदा और सब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली है। जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है। गौ वन्दनीय और पूजनीय है। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर गौ और उसके घी का स्पर्श करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। गौएँ दूध और घी प्रदान करने वाली हैं। जैसे गौ आदरणीय है, वैसे भगवान विष्णु। जैसे भगवान श्री विष्णु हैं, वैसी ही श्री गंगाजी भी हैं। ये सभी धर्म के साक्षात स्वरूप माने गए हैं।

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गौएँ मनुष्य की बंधु हैं और मनुष्य गौओं के बन्धु हैं। छहों अंगों, पदों और क्रमों सहित सम्पूर्ण वेद गौओं के मुख में निवास करते हैं। उनके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गौओं के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में महादेव जी, सींगो के अग्र भाग में इंद्र, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती देवी, अपान (गुदा) में सम्पूर्ण तीर्थ, मूत्रस्थान में गंगाजी, रोमकूपों में ऋषि, मुख और पृष्ठभूमि में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण और कुबेर, वाम पार्श्व में तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुख के भीतर गन्धर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं, गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में पार्वती, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज में प्रजापति और थनों में भरे हुए चारों समुद्र निवास करते हैं।

गौ का दान करने से मिलता है स्वर्ग

जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है, वह मनुष्य सब प्रकार के स्थूल पापों से भी मुक्त हो जाता है। जो गौओं के खुर से उड़ी हुई धूल को सिर पर धारण करता है, वह मानो तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सब पापों से छुटकारा पा जाता है। गौ प्रेमी सदाचारी ब्राह्मण को श्वेत गौ का दान करके मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सदा महल में निवास करता है तथा भोग-सामग्रियों से सम्पन्न होकर सुख-समृद्धि से भरा-पूरा रहता है। धुएं के समान रंग वाली गौ स्वर्ग प्रदान करने वाली तथा भयंकर संसार से पापों से छुटकारा दिलाने वाली है। एक ही रंग की गाय (कपिला गाय) का दान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।

भूरे रंग की गौ, गौर वर्ण गौ समस्त कुल को आनन्द प्रदान करने वाली होती है। लाल नेत्र वाली गौ रुप की इच्छा रखने वाले मनुष्य को रूप प्रदान करती है। एक ही कपिला गौ का दान करके मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो जाता है। जो प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुट्ठी भर घास देता है या रोटी देता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है तथा वह अक्षय स्वर्ग का उपभोग करता है। बचपन, जवानी और बुढ़ापे में जो पाप किया गया है, क्रिया से, वचन से तथा मन से भी जो पाप बन गए हैं, उन सबका कपिला गौ के दान से क्षय हो जाता है और दान करने वाला बैकुंठ में निवास करता है।

यदि पिता के जीते-जी माता की मृत्यु हो जाए, तो उसकी स्वर्ग-प्राप्ति के लिए चन्दन-चर्चित गौ का दान करना चाहिए। ऐसा करने से दाता पितरों के ऋण से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग को प्राप्त करता है। सब प्रकार से शुभ लक्षणों से युक्त, प्रतिवर्ष बच्चा देने वाली नई दूधार गाय पृथ्वी के समान मानी गई है। उसके दान से मनुष्य इन्द्र के तुल्य होता है। उसके दान से भूमि दान के समान फल होता है।

लोकेन्द्र चतुर्वेदी

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