इस देश में लड़कियां पहन रही हैं खून के धब्बों से सने कपड़े, जानिए क्या है वजह

 

नई दिल्ली: इस समय जापान की सड़कों पर बहुत-सी युवतियां अजीबो-गरीब ड्रेस और मेकअप में दिखने लगी हैं। जिन्हें देखकर आप चौंक भी सकते हैं। बता दें, यहां की सड़कों पर युवतियां खून के धब्बों से सने कपड़े, आंखों के नीचे काले घेरे और गले में खूनभरी सिरिंज में दिखने लगी हैं। इतना ही नहीं इनके कपड़ों पर लिखा होता है कि मैं मरना चाहती हूं। जापान में ट्रेंड कर रहे इस फैशन को यामी कवई (Yami kawaii) कहा जा रहा है। आइए आपको बताते हैं ये लड़कियां ऐसी वेशभूषा में क्यों दिख रही हैं..

बता दें, ये फैशन डिप्रेशन और खुदकुशी से जुड़ा हुआ है। दरअसल, जापान में कुछ सालों से युवतियों में खुदकुशी की दर तेजी से बढ़ी है। वहीं यामी कवई दो जापानी शब्दों से मिलकर बना है। यामी का मतलब बीमार और कवई का मतलब क्यूट होता है। जापान की गलियों में बहुत सारी लड़कियां इस तरह से तैयार दिखती हैं। इस तरह के फैशन से लड़कियां बताना चाह रही हैं कि उनका इरादा आत्महत्या करने का है और उन्हें मदद चाहिए। वैसे यामी कवई टर्म का इजाद साल 2015 में ही हुआ था, लेकिन जापान में इसकी लोकप्रियता अब बढ़ी है।

जापान में आत्महत्या का प्रतिशत

जापानी युवतियों में डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट में नेशनल पुलिस एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त महीने में ही जापान में 1854 रिपोर्टेड मामले आत्महत्या के थे। यह आंकड़ा पिछले साल के अगस्त से 16 फीसदी ज्यादा है। इसमें भी महिलाओं में आत्महत्या की दर में 40 फीसदी की बढ़त है।

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इसलिए बढ़ रही है जापान में आत्महत्या की दर

जापान में बढ़ रही खुदकुशी के दर को लेकर लगातार पड़ताल की जा रही है। बता दें कि जापान में मरने के इस कदम को जिम्मेदारी उठाने की तरह देखा जा रहा है। वहीं इस देश के इंश्योरेंस नियम खुदकुशी के बाद मरने वाले का कर्ज चुकाते हैं।

काम का एडिक्शन भी ले रहा जान

बता दें कि कोरोना काल में जापान में आत्महत्या की दर में कमी आई है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, फरवरी से जून में आत्महत्या की औसत दर में 13.5 फीसदी की कमी देखने को मिली है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि काम के एडिक्शन के कारण लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। कोरोना काल में जापान की कई कंपनियों ने एक अच्छा कदम उठाते हुए काम के घंटे जबरन कम कर दिए ताकि कर्मचारी परिवार के साथ वक्त बिताएं। बता दें कि हिरोशिमा-नागासाकी में परमाणु हमला झेल चुके और लगातार बाढ़ या भूकंप जैसी आपदाएं झेलते आए इस देश में लोगों में काम की आदत एडिक्शन बन चुकी है। वे दिन के औसतन 16 घंटे काम करते हैं। ऐसे में कोरोना के दौरान कंपनियों के काम के घंटे कम करने से लोग तनाव में रहते हैं।