नई दिल्लीः समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पांचवे दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि ये एक सामाजिक मुद्दा है और कोर्ट को इसे विचार करने के लिए संसद पर छोड़ देना चाहिए । चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर 27 अप्रैल को भी सुनवाई जारी रखेगी ।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को विवाह के लिए सामाजिक मान्यता चाहिए, यह प्रमुख मुद्दा है । उन्होंने कहा कि 160 ऐसे प्रावधान हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उनको विवाह की मान्यता नहीं दी जा सकती । मेहता ने कहा कि इससे पहले एक बहस होनी चाहिए । मेहता ने कहा कि इस पर सिविल सोसायटी समूहों और राज्यों के बीच चर्चा की जरूरत है । सभी कानून में महिला और पुरुष को एक परंपरा में बाटा गया है । राइट ऑफ सेक्सुअल ऑटोनमी पर किसी को ऐतराज नहीं है ।
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मेहता ने कोर्ट से याचिकाओं पर सुनवाई बंद करने को कहा । उन्होंने कहा कि इसका असर विपरीत लिंग वाले जोड़े पर भी पड़ेगा । इस पर संसद को फैसला करने दें । उन्होंने कहा कि जिन देशों में सेम सेक्स मैरिज की इजाजत है, वहां वो संसद के जरिए लाया गया है, कोर्ट के जरिए नहीं । अगर अदालत कोई फैसला करती है तो इसमें कई बदलाव करने होंगे और ये काम केवल संसद ही कर सकता है । मेहता ने कहा कि इसका विभिन्न कानूनों और पर्सनल लॉ पर प्रभाव पड़ता है ।
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